जीवन के हर क्षेत्र में तकनीक के चलन से जहां लोगों को बहुत-सी सुविधाएं मिली हैं, वहीं इनकी वजह से कई परेशानियां भी पैदा हो गई हैं। यह कहना गलत न होगा कि तकनीक के इस आधुनिक युग में व्यक्ति की निजता पर लगातार हमले हो रहे हैं। जिस तेजी से तकनीक का विकास हो रहा है, उसी तेजी से साइबर अपराध भी बढ़ रहे हैं, जो बेहद चिंता की बात है। इस सबके बीच सर्वोच्च न्यायालय का फैसला राहत देता नजर आता है। यह अच्छी खबर है कि अब लोगों की निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं होगी। सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार को संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार करार दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा है कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अंतर्भूत हिस्सा है। काबिले-गौर है कि 24 अगस्त को दिए अपने फैसले में पीठ ने शीर्ष अदालत के उन दो पुराने फैसलों को खारिज कर दिया, जिनमें निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था। इन फैसलों की वजह से निजता के अधिकार पर असर पड़ता था। एमपी शर्मा मामले में छह जजों ने साल 1954 में और खडग सिंह मामले में आठ जजों ने साल 1962 में ये फैसले सुनाए थे। सर्वोच्च न्यायालय के इस अहम फैसले से सरकार के उस रुख को करारा झटका लगा है, जिसके तहत वह निजता के अधिकार को संवैधानिक मौलिक आधार नहीं मानती।
गौरतलब है कि तकरीबन चार साल पहले उस वक्त निजता के अधिकार को लेकर सवाल उठने शुरू हुए थे, जब अमेरिका में करोड़ों नागरिकों की निजी जानकारियां ऑनलाइन लीक हो गई थीं। एक अमेरिकी इंटेलीजेंस एजेंसी सीआईए के पूर्व एजेंट एडवर्ड स्नोडन ने सारी जानकारियां ऑनलाइन लीक कर दी थीं। भारत में भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जब इस साल मई में आधार कार्ड के लिए इकट्ठी हुईं कई भारतीयों की निजी जानकारियां ऑनलाइन लीक हो गईं। देश में यह मामला इसलिए भी खास है, क्योंकि सरकार ने आधार कार्ड को विभिन्न योजनाओं के लिए अनिवार्य कर दिया है। मसलन आयकर रिटर्न भरने, बैंकों में खाता खोलने, कर्ज लेने, पेंशन पाने और वित्तीय लेन-देन यहां तक कि मत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के लिए भी आधार कार्ड को अनिवार्य बना दिया है। याचिकाकर्ता आर चंद्रशेखरने आधार कार्ड को निजता के अधिकार में दखल अंदाजी बताते हुए इसकी अनिवार्यता खत्म करने की मांग की थी। इस पर सरकार ने अदालत में कहा था कि निजता का अधिकार तो है, लेकिन वो संपूर्ण अधिकार नहीं है। भारत के संविधान में कोई भी अधिकार संपूर्ण अधिकार नहीं होता है, हर अधिकार के साथ कुछ शर्तें होती हैं। इसलिए देश में इस पर बहस छिड़ गई कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं। मामला की गंभीरता को देखते हुए इसे पहले तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ के पास भेजा गया, उसके बाद सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ के पास मामला गया। फिर 18 जुलाई को नौ सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया गया। इस पीठ ने नियमित सुनवाई करके पिछले 2 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान कई अजीबो-गरीब दलीलें पेश की गईं, मसलन पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने एक दलील में कहा था कि नागरिक के शरीर पर ख़ुद उसका नहीं, बल्कि राज्य का अधिकार है। यह जुमला सुर्खियों में खूब रहा। इस पर भाजपा सरकार की खासी किरकिरी भी हुई।
बहरहाल, कांग्रेस नेताओं ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए इसे सरकार की फासीवादी सोच के खिलाफ व्यक्तिगत अधिकारों की जीत करार दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय का निजता का मूलभूत अधिकार के बारे में आया फैसला वैयक्तिक अधिकार, वैयक्तिक स्वतंत्रता व मानवीय गरिमा के एक नए युग का संदेशवाहक है। यह आम आदमी के जीवन में राज्य व उसकी एजेंसियों द्वारा की जा रही निरंकुश घुसपैठ एवं निगरानी के खिलाफ प्रहार है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी और उसकी सरकारें तथा विपक्षी दल इस अधिकार के पक्ष में इनको सीमित करने के भाजपा सरकार के अहंकारपूर्ण रवैये के खिलाफ अदालत और संसद में आवाज उठा चुके हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से फासीवादी ताकतों पर करारा प्रहार हुआ है। निगरानी के जरिए दबाने की भाजपा की विचारधारा को मजबूती से नकारा गया है। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हम स्वागत करते हैं, जिसमें निजता के अधिकार को व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं गरिमा का मूलभूत अंग बताया गया है।
कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम का कहना है कि भाजपा सरकार ने अनुच्छेद-21 का जिस तरह से मतलब निकाला है, उससे निजता के अधिकार का हनन हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि आधार में कोई कमी नहीं है, लेकिन यह सरकार जिस तरह से आधार का इस्तेमाल या गलत इस्तेमाल करना चाहती है, गड़बड़ी उसमें है। उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है और भारत के संविधान के अस्तित्व में आने के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए सबसे महत्वपूर्ण फैसलों में शामिल किया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले के कारण अनुच्छेद-21 को एक नई भव्यता मिली है। निजता वैयक्तिक स्वतंत्रता के मूल में है तथा यह स्वयं जीवन का अविभाज्य अंग है। उन्होंने यह भी कहा कि यूपीए सरकार द्वारा आधार को एक प्रशासनिक उपाय के रूप में विचारित किया गया था, ताकि लक्षित लोगों तक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचना सुनिश्चत हो सके। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने इसे एक दूरगामी फैसला बताते हुए कहा कि दिनोदिन हमारी जिंदगी में तकनीक की भूमिका बढ़ती जा रही है। विदेशी तकनीकी कंपनियों द्वारा डाटा का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में फैसले से हमारे अधिकारों को सुरक्षित रखने का मार्ग प्रशस्त होगा। दूसरी तरह भारती जनता पार्टी के नेता अपनी सरकार का बचाव करते नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि निजता का अधिकार संभवत: मौलिक अधिकार है, लेकिन कुछ मामलों में इसमें जायज पाबंदियां रहेंगी। याचिकाकर्ता आर चंद्रशेखर का कहना है कि पूरी दुनिया डिजिटल युग की तरफ बढ़ रही है। ऐसे में नागरिकों के पास सूचना के दुरुपयोग के खिलाफ जरूरी अधिकार होने चाहिए।
बहरहाल, देखना यह है कि निजता के अधिकार पर सरकार सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को कितनी गंभीरता से लेती है, क्योंकि सरकार के पास आधार को लेकर अपनी बहुत सी दलीले हैं।