आदर्श राजनीति के सपनों की मृत्यु गाथा

दिल्ली सरकार के पूर्व जलमंत्री कपिल मिश्रा ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर अपने एक मंत्री सत्येन्द्र जैन से दो करोड़ रुपए लेने का जो आरोप लगाया है उससे तूफान मच गया है। लोगों के लिए सहसा यह विश्वास करना कठिन है कि जो अरविंद केजरीवाल कल तक भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाते थे, दूसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते थे आज वे खुद अपने ही साथी के आरोप से कठघरे में खड़े हो गए हैं। हालांकि इस मामले पर केजरीवाल के दाहिने हाथ और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया कह रहे हैं कि जिस तरह से उन्होंने बेबुनियाद आरोप लगाए, वो तो जवाब देने के लायक भी नहीं हैं।
 
कपिल मिश्रा कुमार विश्वास के करीबी माने जाते थे लेकिन उन्होंने भी यह बयान दिया कि केजरीवाल कभी घूस लेंगे यह मैं सोच भी नहीं सकता। अरविंद केजरीवाल के धूर विरोधी योगेन्द्र यादव ने भी कहा कि ऐसे आरोपों के लिए प्रमाण चाहिए। इस तरह देखा जाए तो अरविंद केजरीवाल के साथ इस मामले पर काफी लोग हैं। यह भी कहा जा सकता है कि कपिल मिश्रा को चूंकि मंत्री पद से हटा दिया गया इसलिए खीझ में वे ऐसा आरोप लगा रहे हैं। किंतु खीझ में दूसरा आरोप भी तो लगा सकते थे। सत्येन्द्र जैन से ही धन लेने का आरोप क्यों लगाया? उन्होंने यह कहा कि जब मैंने केजरीवाल से पूछा कि आप पैसा क्यों ले रहे हैं तो उन्होंने कहा कि राजनीति में बहुत बात उसी समय नहीं बताई जाती बाद में बताई जाती है। कपिल मिश्रा केवल आरोप नहीं लगा रहे, बल्कि बाजाब्ता वे पहले उप राज्यपाल अनिल बैजल से मिले और उन्हें सब बातों से अवगत कराया, उन्होंने एंटी करप्शन ब्यूरो यानी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को जाकर तथ्य दिए, वे सीबीआई तक भी गए और अनशन पर बैठ गए। 
 
इस सीमा तक जो व्यक्ति तैयार हो, वह केवल हवा में बात करने वाला नहीं कहा जा सकता है। उसे पता है कि अगर उसने झूठी गवाही दी तो उसके खिलाफ मामला बन सकता है। अपने को सच साबित करने के लिए ही लगता है कपिल पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि पर अपनी पत्नी के साथ गए। निस्संदेह, मामला न्यायालय में जाने पर अनेक सवाल उठेंगे और कपिल को उन सबका उत्तर देना होगा। यह सवाल तो उठेगा ही कि केजरीवाल ने धन लेने के लिए वही समय क्यों चुना जब कपिल मिश्रा उनके पास हों या आने वाले हों? उनको धन लेना ही था तो वे कोई दूसरा समय इसके लिए चुन सकते थे। सवाल वाजिब है और इसका जवाब देना आसान नहीं है। किंतु कपिल का कहना है कि अरविंद केजरीवाल को विश्वास था कि यह तो हमें भगवान की तरह मानता है, इसलिए संदेह नहीं करेगा। कुछ समय के लिए कपिल मिश्रा के आरोप को यही छोड़ दें। एक प्रश्न अपने आपसे कीजिए कि क्या हमको आपको यह विश्वास है कि अरविंद केजरीवाल जिस ईमानदारी, सच्चाई, सदाचार और आदर्श की राजनीति का वायदा कर सत्ता में आए थे वाकई उनकी सरकार उस पर खरी उतर रही है? अगर आप निष्पक्षता से इसका उत्तर तलाशेंगे तो कम से कम आप हां तो नहीं कह सकते। ध्यान रखिए सत्येन्द्र जैन पर हवाला से लेकर भूमि सौदे एवं अपनी बेटी को गलत तरीके से नियुक्त करने का मामला चल रहा है और पहले एंटी करप्शन ब्यूरो था, अब सीबीआई उनसे जुड़े स्थलों पर छापा मार चुकी है। हम नहीं कहते कि किसी के घर छापा पड़ने या उस पर मुकदमा हो जाने मात्र से ही वह दोषी हो जाता है, लेकिन आप आम आदमी पार्टी के ही कुछ नेताओं और विधायकों से सत्येन्द्र जैन के बारे में अकेले में बात करिए वह स्वयं वो सारी बातें बोल देगा जिसका आरोप उन पर लग रहा है। 
 
कपिल मिश्रा ने यह कहा है कि सत्येन्द्र जैन ने कहा कि उन्होंने केजरीवाल के रिश्तेदार के जमीन का सौदा कराया है। अगर यह सच है तो इसका मतलब इतना तो है कि मंत्री बनने के बावजूद सत्येन्द्र जैन प्रोपर्टी दलाली का काम कर रहे थे। इसको भी कुछ समय के लिए यहीं रहने दीजिए। अरविंद केजरीवाल सरकार के पांच मंत्रियों की दो साल में ही छुट्टी हो चुकी है। आखिर क्यों? केवल कपिल मिश्रा के बारे में कहा गया है कि वो जल विभाग को ठीक से संभाल नहीं पा रहे थे और विधायकों की इस बारे में शिकायतें थीं, लेकिन इसके अलावा जो मत्री हटाए गए उनमें से किसी को उनके प्रदर्शन के आधार पर नहीं हटाया गया। कोई फर्जी डिग्री मामले में फंसा और जेल गया,  कोई सेक्स सीडी कांड में फंसा, कोई घूस मांगने के आरोप में फंसा। तो ऐसा मंत्रिमंडल केजरीवाल ने बनाया था। ध्यान रखिए, मंत्री बनाते समय केजरीवाल को 67 में से उन्हीं लोगों को चुनना चाहिए था जिनकी विश्वसनीयता और योग्यता उनकी नजर में असंदिग्ध रही होगी। क्या केजरीवाल ने कोई दूसरी कसौटी बनाई थी? ऐसा तो होना नहीं चाहिए। भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करके सत्ता तक पहुंचने वाला व्यक्ति कम से कम ऐसे लोगों को मंत्री तो नहीं बनाएगा जिसकी ईमानदारी और सच्चाई पर उसको विश्वास नहीं होगा। जाहिर है, अरविंद केजरीवाल से या तो भूलें हुईं या वो सत्ता में आने के साथ इस मामले में भी राजनीति में व्यावहारिकता अपनानी पड़ती है के सिद्धांत का वरण करने लगे। कपिल मिश्रा को कुछ भी कह दीजिए, लेकिन आज वह यह दावा करने की स्थिति में है कि केजरीवाल के मंत्रिमंडल में एकमात्र वहीं मंत्री रहे जिन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा या जिन पर कोई मामला किसी तरह का नहीं चल रहा है। शेष सारे पूर्व एवं वर्तमान मंत्रियों पर कोई न कोई आरोप है और उन पर मामले चल रहे हैं। बिना आग के कहीं धुंआ नहीं उठता है। 
 
अरविंद और उनके सहयोगी अनके मामलों के लिए केंद्र सरकार एवं विरोधियों को दोषी ठहराते हैं कि उनके खिलाफ जानबूझकर ऐसा किया जा रहा है। लेकिन शुंगलू समिति की रिपोर्ट पर क्या कहेंगे?  इस समिति ने साफ कहा है कि केजरीवाल सरकार द्वारा प्रशासनिक फैसलों में संविधान और प्रक्रिया संबंधी नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया गया। भ्रष्ट व्यवहार की बात शुंगलू समिति ने अपनी रिपोर्ट में उजागर की है। शुंगलू समिति ने सरकार के कुल 440 फैसलों से जुड़ी फाइलों को खंगालकर यह निष्कर्ष निकाला। पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग द्वारा गठित इस समिति में पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक वीके शुंगलू के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त प्रदीप कुमार शामिल थे। इन तीनों व्यक्तियों से आप राजनीतिक पूर्वाग्रह की उम्मीद तो नहीं कर सकते। यहां इस रिपोर्ट का विस्तार से वर्णन नहीं किया जा सकता है। लेकिन इसने केजरीवाल सरकार के काम करने में बरती गई अनियमितताओं का जैसा तथ्यवार विवरण सामने रखा है उससे दिल दहल जाता है। रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार द्वारा शासकीय अधिकारों के दुरुपयोग के मामलों में अधिकारियों के तबादले, तैनाती और अपने करीबियों की पदों पर नियुक्ति करने में कानूनों और प्रक्रियाओं के पालन न करने का साफ जिक्र किया है। आम आदमी पार्टी के कार्यालय को लेकर केजरीवाल एवं उनके साथियों ने बहुत शोर मचाया कि उनसे उनका कार्यालय तक छीना जा रहा है।
 
 जरा शुंगलू रिपोर्ट को देखिए। इसमें कहा गया है कि केजरीवाल सरकार ने आम आदमी पार्टी को दफ्तर देने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई वही अवैध है। शुंगलू समिति के अनुसार दिल्ली सरकार ने इसके लिए पार्टियों को दफ्तर के लिए जमीन देने की बाकायदा नई नीति बनाई जिसमें ये भी कहा गया कि जमीन पाने योग्य पार्टियों को 5 साल तक कोई इमारत या बंगला दिया जा सकता है क्योंकि इतने समय में वह अपनी आवंटित जमीन पर दफ़्तर बना सकते हैं। इसके अनुसार यह साफ है कि राजनीतिक पार्टी को जमीन देने का फैसला इसलिए लिया गया ताकि आम आदमी पार्टी को सरकारी आवास मिल सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 जनवरी 2016 को आम आदमी पार्टी को यह घर मिल गया वह भी फुली फर्निश्ड जैसे किसी मंत्री को मिलता है। कैबिनेट फैसले में फर्निश्ड एकमोडेशन का जिक्र नहीं है तथा फाइल में किराए का भी कोई उल्लेख नहीं है। ऐसी तमाम बातें हैं जिनसे केजरीवाल का सदाचार, ईमानदार और आदर्श राजनीति की धज्जियां उड़ जाती हैं। 
 
एक ऐसा व्यक्ति जिसने देश के एक बड़े वर्ग को नई राजनीति का सपना दिखाया, जिसने दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाकर एक मॉडल के रुप में पेश करने का वायदा उसकी सरकार का ऐसा हस्र भारतीय राजनीति के लिए कोई सामान्य त्रासदी नहीं है। हालांकि अरविंद केजरीवाल पर अण्णा अनशन अभियान के समय से नजर रखने वालों के लिए इसमें आश्चर्य का कोई तत्व नहीं है। आज आप नजर उठाकर देख लीजिए अण्णा अभियान के समय जो चेहरे अरविन्द और मनीष के साथ दिखते थे उनमें से कितने साथ हैं तो आपको इनकी कार्यशैली और इनके चरित्र का बहुत हद तक प्रमाण मिल जाएगा। दरअसल, पार्टी पर पूरी तरह अपनी पकड़ बनाए रखने की एकाधिकारवादी नीति के तहत केजरीवाल ने उन्हीं लोगों को महत्व दिया और चुनाव में टिकट भी जो उनकी हां में हां मिला सके। उनमें कौन ईमानदार है, जिस राजनीति की वो बात कर रहे हैं उन पर कौन खरा उतर सकता है, किसके पास भविष्य की बेहतर सोच है तथा सत्ता की मादकता में भी कौन बचा रह सकता है इन सबका विचार करने कोई आवश्यकता ही महसूस नहीं की। आदर्श और ईमानदारी की बात करते हुए केजरीवाल ने वो सब किया जो एक व्यक्ति पर आधारित दूसरे क्षेत्रीय दल करते हैं। ऐसे सारे लोग पार्टी से बाहर हो गए या कर दिए गए जो कोई प्रश्न उठा सकते थे। तो इसका हस्र हम आज देख रहे हैं। वास्तव में कपिल मिश्रा प्रकरण नहीं होता तब भी एक आदर्श सपने की राजनीति की मृत्युगाथा हमें लिखनी ही पड़ती। 

वेबदुनिया पर पढ़ें