मालेगांव मामले में हिंदू आतंकवाद भगवा आतंकवाद की कहानी बनाई गई

अवधेश कुमार

मंगलवार, 12 अगस्त 2025 (09:49 IST)
साबित हो जाता तो भारत विश्व में आतंकवाद पर सिर उठाकर बात नहीं कर पाता
 
एनआईए विशेष न्यायालय द्वारा मालेगांव द्वितीय विस्फोट पर दिए गए फैसले के बाद तत्काल टिप्पणी के लिए शब्द तलाशना कठिन है। विश्व में कोई देश नहीं होगा जहां स्थानीय पुलिस को आतंकवादी हमले के पीछे की साजिशें के सच की गंध होने के बावजूद राजनीति के लिए नई कहानी गढ़े जाएं, निर्दोष लोगों को गिरफ्तार कर व्यापक दुष्प्रचार हो तथा उन्हें सजा दिलाने के लिए नकली गवाह, फर्जी सबूत यहां तक कि जांच अधिकारी तक पैदा कर दिया जाए। आतंकवादी हमला देश पर हमला माना जाता है और उनसे संघर्ष के लिए सभी राजनीतिक दलों अधिकारियों और आम लोगों को एकजुट होकर दोषियों के विरुद्ध टूट पड़ने की आवश्यकता होती है। 
 
न्यायालय ने सातों आरोपियों के विरुद्ध किसी तरह के सबूत न मिलने पर बरी कर दिया। जिन निर्दोष लोगों की जिंदगी नष्ट हो गई तथा संगठनों की छवि पर कालिख पोती गई उनके साथ न्याय कैसे हैगा। जमीयत उलेमा ए हिंद इसके विरुद्ध उच्च न्यायालय जाएगा। हालांकि जिन लोगों ने पूरे मामले पर दृष्टि रखी थी उनके लिए यही फैसला अपेक्षित था। उन्हें पता था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा तथा कुछ हिंदू संगठनों को आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त साबित करने के लिए हिंदू आतंकवाद, भगवा आतंकवाद जैसे शब्द कहे गए और निर्दोष लोग आरोपी बनाए गए।
 
जरा सोचिए, 2008 से 2025 तक इन आरोपियों को किन-किन अवस्थाओं से गुजरना पड़ा होगा। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को तो भाजपा ने 2019 में भगवा आतंकवाद, हिंदू आतंकवाद, संघी आतंकवाद के विरुद्ध स्वयं को देश का सबसे बड़ा झंडाबरदार साबित करने वाले दिग्विजय सिंह के विरुद्ध लोकसभा चुनाव लड़ाकर संसद बना दिया था। अन्य ऐसे सौभाग्यशाली साबित नहीं हुए। लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को 2008 से ही निलंबन में जीवन गुजारना पड़ा। इन सबको आरंभ में महाराष्ट्र आतंक निरोधी दस्ता या एटीएस और फिर एन आई एन ए ने जैसी यंत्रणाएं दी, नदी थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया उसकी उसके विवरण से ही कलेजा कहां पर जाता है।
 
न्यायालय ने कहा है कि इन लोगों पर लगे आरोपों की पुष्टि के सबूत नहीं है। 29 सितंबर, 2008 को मालेगांव के भिखू चौक पर हुए विस्फोट में जिस मोटरसाइकिल के प्रज्ञा ठाकुर के होने की बात की गई उसके नंबर नकली थे तो चेचिस और इंजन तक के नंबर गायब कर दिए गए थे। कर्नल प्रसाद पुरोहित ने विस्फोट के लिए कश्मीर से आरडीएक्स लाकर अपने घर में बम बनाया इसके कोई चिन्ह नहीं थे। हां, न्यायालय ने आदेश दिया है कि सुधाकर चतुर्वेदी के घर में विस्फोटक किसने रखा इसकी जांच की जाए।
 
भोपाल और एक अन्य बैठक में सबके शामिल होने और विस्फोट करने की योजना का इसमें जिक्र है किंतु वहां ऐसी बातचीत के भी प्रमाण नहीं है। अगर मेजर रमेश उपाध्याय या किसी ने हिंदू राष्ट्र बनाने की बात की तो इसके आधार पर वे आतंकवादी नहीं माने जा सकते। न्यायालय में एक समय मेजर रमेश उपाध्याय ने चीखकर कहा कि मैं फौजी हूं, आतंकवादी नहीं हो सकता। उनकी कोई सुनने वाला नहीं था।

फॉरेंसिक जांच की सामग्री में जालसाजी हुई। उपयुक्त पंचनामा नहीं, कोई फिंगर प्रिंट नहीं। 323 गवाह आए जो केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद 34 गवाहों ने स्वीकार किया कि उनसे झूठी गवाही दिलवा कर दस्तखत करवाए गए। कल्पना करिए जिस राजनीतिक नेतृत्व और सुरक्षा अधिकारियों के जिम्मे देश की सुरक्षा का दायित्व हो षड्यंत्र कर आतंकवाद के मामले में लोगों को फसाने में सत्ता का दुरुपयोग करने लगें तो उन्हें क्या कहा जाएग?
 
तत्कालीन महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे अब दिवंगत हो चुके हैं। जब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने उनको राक्षस कहकर टॉर्चर कि आप बीती सुनाई तो नेताओं, पत्रकारों, एक्टिविस्टों आदि के प्रभावी वर्ग ने विरोध किया। स्वर्गीय करकरे की दिग्विजय सिंह के साथ बातचीत का लंबा ऑडियो वायरल हो गया। तत्काल महाराष्ट्र पुलिस के एक अधिकारी महबूब मोहव्वर ने कहा है कि उन्हें संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत को पकड़ने के लिए कहा गया और इससे इनकार करने पर उनके साथ बुरा बर्ताव किया। उन्होंने तत्कालीन एटीएस प्रमुख परमवीर सिंह पर आरोप लगाया कि जब उन्हें पता चला कि मुझे पूरे षडयंत्र की जानकारी है तो आरोप लगाकर फंसाया और निलंबित करवा दिया। 
 
निलंबन में उनकी सेवा निवृत्ति हो गई और उन्हें केवल 10 हजार पेंशन मिलता है। उनका बयान न्यायालय की रिकॉर्ड में अंकित है। हालांकि पहले के उनके कुछ आप जांच पर सच साबित नहीं हुए। ऐसे कई बयान हैं जिनसे पता चला है कि संघ, उससे जुड़े संगठनों और भाजपा नेताओं तक के नाम लेने के लिए आरोपियों और गवाहों पर दबाव डाले गए। ऐसी धमकियां दी गई ताकि उनके सामने कोई चारा न बचे। पुलिस के अंदर जिनने भी साथ नहीं दिया वे परेशान किए गए। सोचिए केंद्र में सरकार नहीं बदलती तो क्या होता?
 
ध्यान रखिए, मालेगांव ऐसा अकेला मामला नहीं था। इसमें भगवा या हिंदू आतंकवाद का आरोप लगने के साथ  इसके पूर्व के दो विस्फोटों और मालेगांव प्रथम को भी हिंदू संगठनों की साजिश मानकर जांच शुरू की गई। 19 फरवरी, 2007 को 4001 अप अटारी समझौता एक्सप्रेस में हरियाणा के पानीपत जिले के चांदनी बाग पुलिस थाना में आने वाले शिव गांव के नजदीक विस्फोट हुआ था जिसमें तत्काल 68 लोगों की मृत्यु हुई तथा डेढ़ सौ से ज्यादा घायल हुए। 18 मई, 2007 को हैदराबाद के मक्का मस्जिद में विस्फोट हुआ जिसमें तत्काल नौ लोगों की मृत्यु हुई और 58 घायल हो गए थे। इन दोनों में भी हिंदू आतंकवाद के नाम से गिरफ्तार आरोपियों को न्यायालय ससम्मान आरोपों से मुक्त कर चुका है। 
 
समझौता एवं मक्का मस्जिद दोनों में इस्लामी आतंकवादियों का नाम आया, मक्का मामले में  आंध्र एटीएस ने दो को गिरफ्तार किया और डीजीपी ने बयान दिया कि लश्कर ए तैयबा के कहने पर सिमी ने विस्फोट कराए हैं। सार्वजनिक रूप से कुछ तथ्य भी पेश किये। समझौता मामले में भी अमेरिकी एफबीआई ने लश्कर ए तैयबा के हाथ होने की ऑन रिकॉर्ड बात कही।

मालेगांव प्रथम में भी पांच आरोपी गिरफ्तार हुए। तत्कालीन कर्नाटक के एसएफएल प्रमुख पी ए मोहन ने कई इंटरव्यू दिए जिसमें कहा कि आरोपियों ने न केवल नारको, बल्कि लाई डिटेक्टर, पोलीग्राफी सभी टेस्ट में बताया था कि हमने कैसे विस्फोट किए। तब महाराष्ट्र एटीएस द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत आरोप पत्र में सारी बातें हैं। हिंदू आतंकवाद कहानी गढ़ने के बाद उन सबको रिहा कर दिया गया। आखिर इन हमलों में मारे गए निर्दोष लोगों के अपराधियों को सजा न दिलाने का दोषी किस मानेंगे?
 
तब आधे दशक के आतंकवाद पर हुए विमर्श को याद करिए। पत्र पत्रिकाओं में आलेखों, रिपोर्टों, टीवी डिबेटों, एनजीओ, अन्य संगठनों की विचार गोष्ठियों यहां तक कि संसद के अंदर भी आतंकवाद पर हिंदू संगठनों को लांछित करने का लगातार अभियान चला।

इसी अभियान की एक परिणति 26 नवंबर, 2008 के भयानक मुंबई विस्फोटों को भी हिंदुओं का षड्यंत्र साबित करने की शर्मनाक कोशिश हुई। मुंबई हमला आरएसएस की साजिश नामक पुस्तक के मुंबई विमोचन में दिग्विजय सिंह भी थे और उनके भाषण के वीडियो देख लीजिए। तत्कालीन महाराष्ट्र पुलिस प्रमुख राकेश मारिया ने अपने संस्मरण में लिखा है कि अगर अजमल कसाब जिंदा नहीं पकड़ा जाता तो जिस तरह सभी आतंकवादियों ने हाथों में कलावा बांध रखे थे उसे भी हिंदू आतंकवादियों का ही षड्यंत्र साबित कर दिया जाता। 
 
जिन पापियों ने षड्यंत्र रचा उन्होंने वास्तव में सीमा पर आतंक के षडयंत्र रचने वालों को भी साहस दे दिया कि हमला कर हिंदू संगठनों पर इसके आरोप मढ़वा सकते हैं। पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ तक में हिंदू आतंकवाद विषय को उठाया। अगर यह साबित हो जाता तो भारत का आतंकवाद विरोधी संघर्ष वैश्विक स्तर पर विफल रहता। आज देश की क्या स्थिति होती इसकी कल्पना से भय पैदा होता है।

जिस साहस के साथ भारत पश्चिमी देशों को आईना दिखाता है कि आतंकवाद पर दोहरा रवैया नहीं चलेगा पाकिस्तान को घेर पता है वह संभव ही नहीं रहता। भारत का सिर्फ शर्म से झुका रहता है। इसके साथ इसका लाभ भी में देश में आतंकवाद के विरुद्ध सुरक्षा एजेंसियों ने कैसी भूमिका अपनी होगी? सच कह तो केंद्र से लेकर अनेक राज्यों तक के आतंकवादी विरोधी ढांचे की विचारधारा बदल गई।
 
इन तथ्यों को देखिए और निष्कर्ष निकालिए। इन चारों विस्फोटों के अपराधी आज तक बाहर हैं और पता नहीं वे क्या-क्या कर रहे होंगे। स्वाभाविक ही किसी भारतीय की पहली प्रतिक्रिया यही होगी कि जो इन षडयंत्रों के पीछे थे उन सबको कानून के तहत कठोर सजा दिलवाई जानी चाहिए। नेताओं से लेकर सुरक्षा व प्रशासनिक अधिकारियों तथा एक्टिविस्टों तक को न्याय के दायरे में खड़ा किया जाना आवश्यक है ताकि भविष्य में कोई देश की सुरक्षा के साथ ऐसा घृणित षड्यंत्र नहीं कर सके।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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