अखंड भारत को खंड-खंड करने का षड्यंत्र

वर्तमान समय में हमारे राष्ट्र में विषमता की इतनी गहरी खाई खोदी जा रही है जिससे आने वाला समय राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के लिए आपसी संघर्ष में कटकर युगों-युगों से अनेकता में एकता एवं विश्वबंधुत्व की अवधारणा में चलने वाला देश अपनी वैभवशाली सभ्यता एवं संस्कृति को नष्ट करता हुआ राष्ट्र को क्षत-विक्षत कर देगा। सभ्यता एवं संस्कृति को नष्ट करने के इस प्रकार के घ्रणित कुत्सित षड्यंत्र रचे जा रहे हैं।

यदि आप पैनी नजर से देखेंगे तो आज आपको जमीनी धरातल पर कुछ इस तरह दिखेगा कि राष्ट्र के नागरिकों को विभिन्न जाति, वर्ग, समाज के आधार पर भड़काया एवं विघटन पैदा किया जा रहा है, यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि इस प्रकार के अभियान एक सोची समझी रणनीति के तहत चलाए जा रहे हैं।

इसका एक पक्ष यह नजर आ रहा है कि:- इस आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि विदेशी आक्रांताओं द्वारा हमारे देश को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

क्योंकि संपूर्ण विश्व यह जानता है कि भारत से प्रत्यक्ष तौर पर लड़ा नहीं जा सकता है और न ही इसकी हिम्मत जुटाने की सामर्थ्य वर्तमान में किसी में है।

भारत वर्तमान समय में सामरिक दृष्टि व पौरुष बल से लबरेज़ है। ज्यादातर आबादी युवा है और यदि किसी ने हिमाकत की तो विश्व को इसके दूरगामी दुस्परिणाम भुगतने पड़ जाएंगे।

क्या यह माना जाए कि बाहरी शक्तियों द्वारा जो प्रत्यक्ष प्रणाली से भारत से नहीं लड़ सकते हैं, वे भारत के विश्व-पटल में बढ़ते रूतबे से खौफ खा रहे हैं, इसीलिये उनके द्वारा वित्तपोषित संस्थाएं चलाई जा रही हैं?

इन वित्तपोषित षड्यंत्रकारी संस्थाओं का उद्देश्य भारत को दीर्घावधि तक आपसी संघर्ष यानि कि आपसी मतभेदों जिनके मायने यह हैं कि आपको जाति,वर्ण, पूर्व की पीढ़ियों के हुए शोषण, अमीर-गरीब व ऊंच-नीच की भावना के आधार पर तोड़ते रहना है। इसका परिणाम यह होगा कि ज्यादातर अल्प-शिक्षित युवा, मध्यम पीढ़ी इनके आगोश में आ जाएगी और वह इन्हीं षडयंत्रकारियों के बताए रास्तों पर चलने लगेगी।

इनका सहयोग देने का कारण और साफ रास्ता यह है कि उन सभी को पानी की तरह रूपये दिए जाएंगे और उन्हें खास तरह के प्रशिक्षण अलग-अलग अवधि में दिए जाएंगे अन्तोगत्वा ऐसे सभी लोगों मानसिक तौर पर गुलाम बना लिया जाएगा। इसके पश्चात यही लोग एक रिमोट कंट्रोलर की भांति व्यवहार करने लगेंगे उन्हें सच वही लगेगा और वही प्रतीत होगा जो उनके तथाकथित आका निर्देशित करेंगे।

इसके लिए भी एक विशेष स्तर पर तैयारी कराई जाती है, बकायदे उनके तबके के कुछ एक लोगों को एकत्रित किया जाता है। फिर उन्हें मानसिक रूप से तैयार करने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है एक निश्चित अवधि के उपरांत उन्हें प्रायोजित तरीके से उनके तबके, समाज में लांच किया जाता है।

ऐसे ब्रेनवॉश्ड लोगों को प्रायोजित साहित्य और अन्य भड़काऊ सामग्री उनके हाथों में सौंप दी जाती है जिसमें मनगढंत घटनाओं कहानियों और तथाकथित उनके ऊपर हुए अत्याचारों एवं शोषण को दर्शाया जाता है। ऐसे कंटेंट में वर्तमान की परिस्थितियों से किसी भी प्रकार का ताल्लुकात नहीं रखा जाता है इसके बाद वह शख्स उस विशेष समाज में धीरे-धीरे उन्ही समस्त निर्देशित व प्रशिक्षित तरीकों से अन्धानुकरण करवाने में जुट जाता है।
ऐसे ब्रेनवॉश्ड लोगों की टीम सक्रिय की जाती है और उन्हें वित्तपोषित किए जाने के साथ ही उसी प्रकार के प्रशिक्षण से गुजारा जाता है। इस प्रकार से ऐसे लोगों की टीम के द्वारा जाति, वर्ण, आर्थिक-सामाजिक भेदभाव के झूठे मनगढ़ंत कुतर्कों के आधार पर उनके बांटने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है।

इसके दुस्परिणाम यह होते हैं कि एक निश्चित तबके, समाज या उस जाति के होनहार नवनिहालों को पतन के गर्त्त में भेजना प्रारम्भ हो जाता है। षड्यंत्रकारियों के जाल में फंसे हुए ब्रेनवाश्ड लोगों को यही समझ में आता है कि हम अपने समाज, जाति को गौरवान्वित व समृद्धशाली बनाने के लिए चल रहे हैं।

किन्तु उन्हें यह नहीं पता रहता है कि यह सब एक योजनाबद्ध तरीके से चलाया जाने वाला कार्य है और उन्हें पता भी कैसे लगेगा क्योंकि वे तो मानसिक गुलामी के बन्धन से जकड़े हुए हैं। इस प्रक्रिया द्वारा आपसी वर्ग, जाति संघर्ष बढ़ने लगता है जिनके कार्यों के द्वारा इस राष्ट्र की विकास व उन्नति की दशा एवं दिशा तय होनी है वे अगर इन समस्त प्रकार के षड्यंत्रों के शिकार होंगे तो निश्चित ही राष्ट्र को हानि पहुंचेगी और पहुंच भी रही है।

समय-समय पर देश के विभिन्न हिस्सों पर इसी टारगेट के हिसाब से जातीय दंगे,  उन्माद, हिंसा, हड़ताल एवं तोड़-फोड़ के वाकिए हम सभी को आए दिनों देखने को मिलते हैं। इस षड्यंत्रकारी प्रक्रिया का अंतिम परिणाम यह होगा कि हमारे पारस्परिक सयन्वय के ढांचे में धीरे-धीरे आपसी पृथकता की भावना फैलने लगती है जिसकी परिणति विभिन्न प्रकार की समस्याओं में उलझना होता है।

एक न एक दिन अलगावाद व विशेष समाज, जाति के लिए अलग से क्षेत्रवाद की भावना को बल मिलने लगेगा और आने वाली पीढ़ियां भी इसी तरह आपस में कटती-मरती रह जाएंगी और विदेशी आक्रांता अपने उद्देश्य में सफल होने लगेगें जो राष्ट्र के लिए अपूर्णीय क्षति होगी।

वर्तमान में अगर कुछ भी बड़ा या अलग अथवा संदिग्ध कार्य हो रहा है तो उसका सम्बंध राजनीति से अवश्य होता है। अगर हम इस पर भी ध्यान दें तो पाते हैं कि वर्तमान समय में प्रत्येक उन्माद, आंदोलन इत्यादि के पीछे राजनैतिक मंसूबा पाले हुए लोग ही इसे दिशा देते हैं, जिसके पीछे उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा चरम पर होती है।

इसके लिए उन्हें किसी भी हद से गुजरना पड़े बिल्कुल भी संकोच नहीं करते क्योंकि उनके द्वारा फैलाए जा रहे प्रपंच में जितनी अधिक राष्ट्रीय क्षति होगी उन राजनैतिक सिपेहसलारों को उतना ही अधिक राजनैतिक फायदा होगा।

क्या जातिवादिता की आड़ में पूर्व की पीढ़ियों के समाजिक-आर्थिक शोषण की दुहाई देकर राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु इस प्रकार के दुस्कर कार्य योजनाबद्ध तरीके से कराए जा रहे हैं?

जैसा की तथाकथित इतिहासकारों द्वारा एवं सत्ता की तलवार गर्दन पर रखकर हमारे श्रेष्ठ सामाजिक ढांचे पर व्यापक पैमाने पर गल्पों एवं सफेद झूठ परोसकर राष्ट्र की समाजिक प्रणाली में विष घोला गया उसी को आधार मानकर जो फरेब फैलाया जा रहा कि विशेष तबकों का शोषण हुआ। माना कि शोषण हुआ तो क्या वह मुगलकाल एवं अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी में किए गए बर्बर, क्रूरतम अत्याचार, बलात्कार, सामूहिक नरसंहार एवं हुकूमत के विरुद्ध आवाज उठाने के बदले जीभ काट लेने एवं कत्लेआम से ज्यादा अमानवीय हैं?

आखिर मुगलों एवं अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार को क्यों भुला दिया गया?

प्रश्न पूछिए कि मुगलों, अंग्रेजों एवं देश को को हमेशा डसने वालों को इन तथाकथित इतिहासकारों ने कठघरे में खड़ा क्यों नहीं किया है? इससे यही स्पष्ट होता है कि चूंकि ऐसे तथ्यों का उद्घाटन करने से किसी भी तरह की राजनैतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति होती नहीं दिखती।

बल्कि अगर इन संहारों एवं आत्मा को कंपा देने वाले काले इतिहास की परतें खोली जाएंगी तो निश्चित ही ख्यातिलब्ध तथाकथित स्वयंभू इतिहासकार जो पर्दे के पीछे से राजनैतिक तंत्र को नियंत्रित करते हुए देश के सामाजिक एवं सांस्कृतिक ढांचे के पारस्परिक समन्वय सौहार्द को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

ऐसे सभी गल्पकार हमाम में नंगे होकर मारे-मारे फिरेंगे लेकिन दुर्भाग्य ही कहिए कि ऐसे सभी लोगों को सत्ता सत्य जानते हुए भी पुरुस्कृत करती है और वे खटमल की तरह कुर्सी से चिपककर देश में विघटन फैला रहे हैं।

देश को इस भीषण दावानल में ढकेलने का कार्य जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय की राजनीति नहीं बल्कि नीच नीति करने वाले राजनैतिक संपोलों ने किया है।

हम चौकन्ना रहें और पैनी नजर से देंखे तो अक्सर चुनावी सरगर्मियों के समय इनकी कारगुजारियों को स्पष्ट देखा जाता है। विभिन्न उम्मीदवारों द्वारा जाति, समाज के नाम पर बहकाकर वोट प्राप्त किए जाते रहे हैं, इस अनीति का शिकार होने वाले भोले-भाले लोग आसानी से छल में पड़ जाते हैं और व्यापक तौर पर आपसी सौहार्द वातावरण बिगड़ने लगता है।

या यूं कहे तो जातिवादिता, वर्ग-संघर्ष इत्यादि के जन्म देने के पीछे राजनैतिक महत्वाकांक्षा ही सम्मिलित है और यही इसका पूर्ण उद्देश्य है।

अपनी राजनैतिक स्वार्थपरता को साधने हेतु विभिन्न कार्यों को धरातलीय स्वरूप देने के लिए एक मशीनरी सिस्टम के तहत प्रयोगशाला में शोध होते हैं कि किस प्रकार से फला  जाति, समाज के लोगों को बरगलाना है, जिसका अपने निजी हित के लिए उपयोग करना है।

इसके लिए विधिवत मनगढ़ंत साहित्य एवं स्थानीय स्तर पर जाति-समाज की राजनीति करने वाले नेताओं को मुख्य भूमिका में लाकर अपने भ्रामक प्रचार प्रसार को फैलाया जाता है।

इनमें केवल वही भ्रामक जानकारियां रहती हैं और उन्हें किसी विशे घटनाक्रम से तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है और इस चीज का विशेष ध्यान रखा जाता है किस वर्ग की आपसी प्रतिद्वंदिता है और इसके प्रयोग के बाद किस स्तर तक का विद्वेष फैल सकता है।

उस विशेष तबके को टारगेट करते हुए उसके विरुद्ध  साहित्य उपलब्ध कराया जाता है और फिर छोटी-छोटी सभाएं की जाती हैं जिनका मुख्य उद्देश्य अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु आपसी संघर्ष को जन्म देना होता है चाहे यह जातिगत हो या सामाजिक हो।

यह सब विधिवत ढंग से चलाया जाता है और उन लोगों को षडयंत्रकारियों के द्वारा झूठी दिलासा दी जाती है कि हम ही आपके लिए कर्तव्यपरायणता के साथ संघर्ष कर रहे हैं।

यदि आप हमारा संघर्ष में साथ नहीं देना चाहते हैं, तो कोई बात नहीं हमारा क्या जाता है? लेकिन इतना ध्यान रखिए कि आप अपने समाज के साथ सही नहीं कर रहे हैं।

इसी तरह के विभिन्न नैरेटिव तैयार कर भोले भाले अल्पशिक्षित विशेष तबके के लोगों को अपने झूठे तंत्र में शामिल करने के हथकंडों के द्वारा उन तबकों को विश्वास में लेकर षड्यंत्रों का खेल खेला जाने लगता है। उन लोगों द्वारा यह मान लिया जाता है कि यही (षडयंत्रकारी) हमारे सर्वदाता हैं तथा यह तो हमारी ही विशेष जाति/समाज से आते हैं, इनके द्वारा ही हमारे सारे कार्य होंगे तथा हम इनकी बात नहीं सुनेंगे तो किसकी सुनेंगे?

इस अभियान में स्त्री-पुरूष एवं खास तौर पर उन विशेष तबकों के नवयुवकों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जो आसानी से भ्रमित हो जाते हैं।

इस प्रकार से विशेष समाज या जाति के लोगों को अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा की रोटियां सेंकने के लिए भरपूर आपसी वर्ग संघर्ष की आग में जलने के लिए छोड़ दिया जाता है, जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि वे लोग जो आपस में घर, गांव, गली, बस्ती शहर इत्यादि में आपसी भाईचारे और सद्भाव के साथ रहते हैं।

वह एक दूसरे को हेय दृष्टि सी देखने लग जाते हैं यहां तक कि शत्रुभाव भी उत्पन करवा दिया जाता है।

इससे सामाजिक और पारंपरिक पद्धति के अनुरूप संगठनात्मक तरीके में फूट पड़ने लगती है, जिससे एक दूसरे की विपत्ति में भी यह लोग साथ नहीं आ पाते हैं और यहीं से राजनैतिक वोट बैंकों का ध्रुवीकरण हो जाता है तथा अपनी मात्र राजनीतिक पदलोलुपता हेतु अखंडता को नष्ट किए जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

जबकि इसके अलावा एक सच और यह होता है कि यही राजनैतिक व्यक्ति बाद में जाकर उन्हीं सब लोगों के साथ आपसी सामंजस्य बनाने लगते हैं जिनके विरुद्ध इन्होंने एक विशेष समाज या तबके को बरगलाकर वोट बैंकों का ध्रुवीकरण किया है।

किन्तु यह सामान्य लोग इस चीज को समझ नहीं पाते हैं और इनके बनाए हुए जाल में फंस जाते हैं। यह चीज किसी से छिपी नहीं है कि जितने भी नेता जातिवाद की अवधारणा लेकर राजनीतिक पृष्ठभूमि में आए उन्होंने केवल और केवल अपने घर और परिवार की ही समृद्धि की है।

उसके अलावा उन्होंने उस जाति या समाज का उत्थान नहीं किया है और ना ही आगे आने वाले समय में कुछ कर सकते हैं लेकिन यह पीड़ित तबका कब समझेगा कि आखिरकार हमारा दुरुपयोग क्यों किया जा रहा है? इनका शोषण और कब तक किया जाता रहेगा?

इसमें तो गलती तो जितनी ऐसे राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की है उससे ज्यादा गलती प्रभावित लोगों की है।
आप देखिए जातिवाद या समाजवाद के आधार पर जितने नेतृत्व में आए उन्होंने केवल वित्त पोषण से अपने वंश को ही बढ़ाया है उसके बाद उनके जीवन शैली बदल गई लेकिन उनकी जीवनशैली नहीं बदली जिन्होंने उन्हें इस स्तर तक पहुंचाया।

समझिए! इस तरह के कुत्सित षडयंत्र आज से नहीं बल्कि सदियों से राष्ट्र की एकात्म चेतना को नष्ट करने के लिए लगातार विदेशी आक्रांताओं, देश के अंदर निवासरत तथाकथित बुध्दिजीवियों, इतिहासकारों, राजनेताओं, पत्रकारों सहित भारी संख्या में विभिन्न पेशों में कार्य करने वाले लोग अपने-अपने स्तर लगे हुए हैं।

इनका उद्देश्य क्षणिक स्वार्थपरता, लोभ के लिए केवल और केवल राष्ट्र संस्कृति की जड़ों को खोखला कर राष्ट्र की एकता-अखण्डता एवं अक्षुण्णता को छिन्न-भिन्न कर दिया जाए। वर्तमान समय की मांग है कि इन बिन्दुओं पर विश्लेषण एवं लोगों के सामने ऐसे षड्यंत्रकारियों को बेनकाब करने के साथ ही मुंह तोड़ जवाब देने का कार्य करना होगा।

अगर हमने इसको संजीदगी के साथ प्राथमिकता में नहीं रखा तो आने वाला समय हमारे लिए खतरे का शीर्ष चिन्ह होगा चाहे सरकार इस पर कार्य करे या न करे लेकिन हमें इस तरह के षडयंत्रों को समझकर उसका प्रतिकार करने में किसी भी तरह की देरी नहीं करनी चाहिए। हमें चाहिए कि इन विषयों पर गहनता से अध्ययन किया जाए एवं प्रचार-प्रसार के साथ प्रभावपूर्ण परिणाम देने वाले विशेष तौर-तरीके अपनाए जाएं अन्यथा जन जागृति के अभाव में हमारा राष्ट्र आपसी संघर्ष की उस भयावह अग्नि में जलता रहेगा जिसमें धू-धूकर धीरे-धीरे हम अखण्ड से खण्ड-खण्ड हो जाएंगे।

इसी सन्दर्भ में शिवमंगल सिंह सुमन जी की यह पंक्तियां प्रकाश डालती हैं

जाति-धर्म गृह-हीन
युगों का नंगा-भूखा-प्यासा
आज सर्वहारा तू ही है
एक हमारी आशा।
ये छल छंद शोषकों के हैं
कुत्सित, ओछे, गंदे
तेरा खून चूसने को ही
ये दंगों के फंदे।
तेरा एका गुमराहों को
राह दिखानेवाला
मेरा देश जल रहा
कोई नहीं बुझानेवाला।


इसी आशा के साथ मेरा देश अखण्ड रहे एकता आपसी भाईचारे व सद्भाव की भावना से इस राष्ट्र को पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए हम एक स्वर में कृतसंकल्पित हों एवं ऐसे षड्यंत्रकारियों के नापाक इरादों को चकनाचूर कर देंगे।

नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया का इससे कोई संबंध नहीं है।

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