अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस पर कविता

जीना चाहता
होंठों से लगी शराब 
होगी इतनी ख़राब 
कभी सोचा ना था
इसकी लत मौत के मुहाने पर 
ला खड़ा कर देगी 
ऐसा जाना ना था
वाणी में शुद्धता को 
ले जाएगी अपनों से कोसों दूर 
ऐसा होना ना था
परिवार में सभी के 
तनाव बिखराव भरे मन होंगे 
ऐसा देखा ना था
आर्थिकता की कमी लेकर 
फटी जेब से बाजारों में झांकेंगे 
ऐसा माना ना था
निकलना चाहता है इंसान व्यसनों से 
जीना चाहता है सुनहरे पलों को 
ऐसा जाना ना था... 

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