पता हो कि इस समाज ने न सिर्फ साहूकार और व्यवसाही ही नहीं दिए हैं, बल्कि नामवर नेता, डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, लेखक, कवि, पत्रकार, समाज सुधारक, संत, महात्मा तक दिए हैं। इसीलिए इस समाज के लोगों के प्रति देश में एक विशेष प्रकार का अनुराग देखा जाता है। मतलब यह नहीं अन्य समाज के लोग कम खुदा होते हैं, लेकिन यहां एक संदर्भ विशेष की बात हो रही है। विडंबना है कि जो मीडिया हाउसेस राजनीति और समाज के ओपिनियन मेकर होने का दम भरते नहीं थकते, वे उक्त मामले में अभी तक तो सिर्फ खानापूर्ति करके चुप बैठे हैं, जबकि कई मीडिया घरानों के संचालक जैन समाज से ही आते है।