देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू एक मानवतावादी, बहुलतावादी, समतावादी और वैश्विक सोच के साथ देश गढ़ने वाले शिल्पकार थे। उनकी इसी सोच ने ही उन्हें दुनिया का नेता बनाया था। उनके इस सोच ने ही चर्चिल को गलत सिद्ध किया जो कहता था कि ये लंपट हिन्दुस्तानी देश क्या चलायेंगे, गिड़गिड़ा के वापिस आयेंगे।
नेहरू की मृत्यु के 57 साल बाद आज भी उन पर तीखे हमले हो रहे हैं क्योंकि उनकी नीतियों को आज भी दक्षिणपंथी अपने रास्ते की बाधा मानते हैं। उनकी लीगेसी उन विचार झरनों की रक्षक है जो निर्माण में विश्वास करते हैं। इस पर विचार करना समय की जरुरत है।
जवाहरलाल नेहरू ने हर वो कदम उठाया और उसे संस्थान का रूप दिया जिससे देश में भाषाई,सांस्कृतिक और पारंपरिक दूरी को पाटा जा सके। यही प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत से किया और गैर बराबरी के खिलाफ आवाज बुलंद की।
स्थानीयता के समानांतर भारतीयता की सोच को ताकत देने और समता का विस्तार ही उनकी नीति थी। उन्होंने जागीरदारी, जमींदारी, बेगारी प्रथा के उन्मूलन के साथ शोषक ताकतों को भी समाप्त किया, जो छोटे-बड़े और छूत-अछूत की भावना रखने वाले संगठनों के वित्त पोषक थे। खेत पर काम करने वाले मजदूर को उन्होंने मालिक बनाया और ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों का विस्तार किया, जिससे वो गांव गुजारा खेती से बाहर निकलकर सरप्लस खेती तक पहुंचे। भारत के गांव, खलिहानों की सीमाओं से निकलकर सामुदायिक भंडारण की दिशा में आगे बढ़े।
नेहरू की सोच सामुदायिक भावना और सहिष्णुता का विकास करने की थी जो परस्परता से आत्मनिर्भरता की ओर ले जाती है जिसमें मजदूर से लेकर मालिक तक का रोल निर्धारित है और कानूनों से बंधा है। श्रम कानूनों से लेकर, मोनोपाली कानूनों ने आत्मसम्मान और सुरक्षा का भाव पैदा किया और देश निर्माण में समतापूर्ण भागीदारी सुनिश्चित की।
नेहरू ने संस्थागत तरीके से भारतीयता की भावना का निर्माण किया और सांप्रदायिक शक्तियां जिन विभाजक नीतियों को लागू करना चाहती थीं, उसमें उन्हें 70 साल लग गये। भिलाई स्टील प्लांट, बोकारो, भेल, इसरो, विशाखापत्तनम जैसी संस्थाओं ने हर संस्थान में मिनि भारत का निर्माण किया जिससे भारत की हजारों साल की बहुलतावादी संस्कृति को बल मिला। निजीकरण पूंजीवादी समाज पैदा करता है जबकि मिश्रित अर्थव्यवस्था राष्ट्रवादी समाज का।
इन सार्वजनिक उपक्रमों ने न केवल लाखों लोगों को रोजगार दिया बल्कि पूंजी का निर्माण भी किया। 1956 में मात्र 5 करोड़ से शुरू हुई जीवन बीमा निगम की आज 38 लाख 40 हजार करोड़ की संपत्ति है। जीवन बीमा निगम ने एक लाख 14 हजार लोगों को नौकरियां दी हैं और भारत सरकार को विगत वर्ष 2666 करोड़ डिविडेंट दिया है। नेहरू की इसी नीति के तहत जनरल इंश्यूरेंस कारपोरेशन को 1986 में 100 करोड़ से शुरू किया गया था आज उसकी एक लाख 11 हजार करोड़ की संपत्ति है।
स्टील प्लांटों की स्थापना 1954 में हुई जिनकी आज कुल परिसंपत्ति एक लाख 26 हजार 927 करोड़ की है और 65 हजार लोगों को नौकरी दी है। भारत निर्माण की यही तो कहानी है। नेहरू के रोपे इन्हीं पौधों ने देश को छाया दी और दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनाया।
विज्ञान, तकनीकी और शिक्षा आधुनिक युग की ताकत है। इसे नेहरू ने न केवल समझा बल्कि उसे गति देने में अपनी ताकत झोंक दी। इसरो, भाभा अटामिक सेंटर, आइआईटी, आइआइएम, मेडीकल कालेजों का निर्माण भविष्य के मानव संसाधन के विकास की जरूरत थे। उसे नेहरू जी ने न केवल समझा बल्कि आलोचनाओं की परवाह किये बिना उन्हें आगे बढ़ाया।
पंडित नेहरू ने जब भाखरा नंगल बांध बनाया और बिजलीघर स्थापित किया तब तत्कालीन विपक्षी नेता भाषण देते थे कि पानी से बिजली निकालकर नेहरू पानी की ताकत निकाल रहे हैं जैसे कोई दही को मथकर मक्खन निकाल लेता है। इससे खेत बिगड़ जायेंगे। ऐसे गैर वैज्ञानिक दुष्प्रचार का नेहरू हमेशा शिकार रहे लेकिन वे कल भी समय से आगे खड़े थे और आज भी आगे खड़े हैं। उनकी मृत्यु के 57 साल बाद भी उनकी आलोचना की तीक्ष्णता सिद्ध करती है कि आज भी उनके आलोचक उनसे आगे नहीं निकल पाये हैं। वे उनसे आज भी पीछे हैं और इसी कमतरी की भावना से वे उनके पीछे लगते हैं जबकि नेहरू आज अपना पक्ष रखने इस दुनिया में ही नहीं हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं) (आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)