घोटालों के होते, चौकीदारी के चलते देश गरीब कैसे?

चुनाव का माहौल है, साथ ही चौकीदारी का माहौल भी। हर राजनीतिक दल जनता की चौकीदारी कर रहा है कि जनता को परेशानी तो नहीं। जनता भी खुश है कि फ्री-फुग्गे में चौकीदार मिल गए हैं। चौकीदार परेशान कि पहले ही ठेकेदार कम पगार देता है और तीसों दिन 12 घंटे ड्यूटी कराता है। अब मोदीजी को क्या सूझी, जो चाय से चौकीदारी पर आ गए। जनता खुद तो 1 टाइम (कभी 2 टेम भी) फाका करती है, क्या औकात कि चौकीदार रख ले। फिर ये चौकीदारी किसकी... घोटालेबाजों की?
 
और घोटालेबाज भी छोटे-मोटे नहीं बड़े-बड़े नामीगिरामी। बड़े-बड़े धनाढ्य कैसे चुपके से घोटाले करते हैं पता ही नहीं चलता। जनता बस ये समझती है कि देश की जनता गरीब है। वर्तमान के मशहूर घोटालेबाज विजय माल्या और नीरव मोदी विदेशों में मजे ले रहे हैं। दोनों विदेश भाग गए तब तक सरकार सोती रही। मप्र में जब भाजपा सरकार आई तो लगा कि प्रदेश में रामराज आ जाएगा। लेकिन यहां भी घोटालों ने पीछा नहीं छोड़ा। इसकी कहानी आगे।
 
कई सफेदपोश देश की बैंकों व आदि-इत्यादि को लाखों-करोड़ों का चूना लगा गए और सरकार कुछ नहीं कर सकी। उन घोटालेबाजों की चौकीदारी? कौन कहता है कि हमारा देश गरीब है। अगर देश गरीब होता तो इतने घोटाले कहां से होते? फालतू में ही गरीबी रेखा बना रखी है। जब गरीबी ही नहीं है तो रेखा कैसी? देश की आजादी से लेकर 2019 तक जितना धन घोटालेबाजों की झोली में गया है, उससे कम से कम एक ऑस्ट्रेलिया तो जरूर खरीदा जा सकता था। कांग्रेस शासन में भी घोटाले हुए, लेकिन भाजपा शासन के घोटालों ने तो सबको पीछे छोड़ दिया।
 
बैंक डकैती बनाम माल्या-मोदी
 
बैंकों में जमा आपके और हमारे पैसों पर 'डकैती' हुई है। पंजाब नेशनल बैंक में 11,300 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया है। इस घोटाले के सभी आरोपी एक-एक करके देश छोड़कर फरार हो गए हैं। इसके बाद सीबीआई ने लुकआउट नोटिस जारी किया। देश के बड़े अमीरों में शुमार और मामले के मुख्य आरोपी डायमंड कारोबारी नीरव मोदी की संपत्ति को सीज करने की घोषणा कर दी गई है। घोटाले के बाद विदेश भाग जाने का ये पहला मामला नहीं है। शराब कारोबारी विजय माल्या, क्रिकेट को आईपीएल 'गिफ्ट' करने वाले ललित मोदी इसके बड़े उदाहरण हैं। बता दें कि नीरव, माल्या और ललित मोदी को मिलाकर कुल 21 हजार करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार हुआ है।
 
इंडियन बैंक
 
1992 में बैंक से छोटे कॉर्पोरेट और एक्सपोर्टर्स ने बैंक से करीब 13,000 करोड़ रुपए उधार लिए। ये धनराशि उन्होंने कभी नहीं लौटाई। उस वक्त बैंक के चेयरमैन एम. गोपालाकृष्णन थे।
 
बोफोर्स घोटाला
 
1987 में स्वीडन की एक कंपनी बोफोर्स एबी से रिश्वत लेने के मामले में राजीव गांधी समेत कई बड़े नेता फंसे। मामला था कि भारतीय 155 मिमी के फील्ड होवित्जर की बोली में नेताओं ने करीब 64 करोड़ रुपए का घपला किया है। 1987 के बाद से यह चर्चित बोफोर्स घोटाला है। बोफोर्स घूसकांड करीब 70 करोड़ रुपए का था, तो 700 करोड़ के किसी घोटाले को 10 बोफोर्स-पॉवर का घोटाला कहना चाहिए। हालांकि उसी बोफोर्स की बदौलत हमने कारगिल का युद्ध भी जीता।
 
1947 से लेकर 2011 तक 40 से अधिक घोटाले हो चुके हैं। आजादी के बाद से ही देश में घोटाले नाम का बीज बो दिया गया था। 1948 में ही जीप घोटाला सबके सामने आ गया था। इसके बाद तो मानो भ्रष्टाचार ने देश में पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी। इसके बाद साइकल घोटाले से लेकर हरिदास मुंध्रा स्कैंडल तक हर 1-2साल के अंतराल पर एक न एक नया घोटाला सामने आने लगता था।
 
आजाद भारत का पहला घोटाला
 
1958 में ये घोटाला सामने आया था। इस घोटाले ने पं. जवाहरलाल नेहरू और उनके दामाद के रिश्ते खराब हो गए थे, क्योंकि इसे उजागर करने वाले फिरोज गांधी ही थे। इस वजह से तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णामाचारी को इस्तीफा देना पड़ा था।
 
हरिदास मूंदड़ा
 
हरिदास मूंदड़ा एक मारवाड़ी था। कलकत्ता का एक व्यापारी और सटोरिया। हरिदास पहले-पहले बल्ब बेचने का काम करता था। कंपनियों के शेयर्स में उसकी दिलचस्पी थी। मंदड़ियों और तेजड़ियों के खेल में हरिदास एक शातिर खिलाड़ी बनकर उभरा। 1956 तक आते-आते कई बड़ी कंपनियों में उसकी अच्छी-खासी हिस्सेदारी हो गई थी।
 
जनता के सामने हुई सुनवाई
 
भारत में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी केस की सुनवाई जनता के सामने हुई हो। कोर्ट रूम के बाहर बड़े-बड़े लाउडस्पीकर लगाए गए ताकि जो लोग अंदर बैठकर कार्यवाही देख न पाएं, वे कम-से-कम इसे सुन सकें। 
एचडीएफसी बैंक के संस्थापक हंसमुख ठाकोरदास पारेख ने आयोग के सामने अपनी बात रखते हुए मूंदड़ा कंपनियों की कारगुजारी सामने रख दी।
 
जीप खरीदी (1948)
 
आजादी के बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से 2,000 जीपों का सौदा किया। सौदा 80 लाख रुपए का था लेकिन केवल 155 जीपें ही मिल पाईं। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वीके कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई। लेकिन 1955 में केस बंद कर दिया गया। जल्द ही मेनन नेहरू कैबिनेट में शामिल हो गए। वसूली 1 रुपए की भी नहीं हो पाई।
 
साइकल आयात (1951)
 
तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सेकरेटरी एसए वेंकटरमन ने एक कंपनी को साइकल आयात कोटा दिए जाने के बदले में रिश्वत ली।
 
तेजा ऋण
 
1960 में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कंपनी शुरू करने के लिए सरकार से 22 करोड़ रुपए का लोन लिया लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और 6 साल की कैद हुई, लेकिन वसूली इसमें भी नहीं हो पाई।
 
पटनायक मामला
 
1961 में उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। उन पर अपनी निजी स्वामित्व कंपनी 'कलिंग ट्यूब्स' को एक सरकारी कॉन्ट्रेक्ट दिलाने के लिए मदद करने का आरोप था।
 
मारुति घोटाला
 
मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया। मामले में पैसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।
 
कुओ ऑइल डील
 
1976 में तेल के गिरते दामों के मद्देनजर इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन ने हांगकांग की एक फर्जी कंपनी से ऑइल डील की। इसमें भारत सरकार को 13 करोड़ का चूना लगा। माना गया कि इस घपले में इंदिरा और संजय गांधी का भी हाथ है।
 
अंतुले ट्रस्ट
 
1981 में महाराष्ट्र में सीमेंट घोटाला हुआ। तत्कालीन महाराष्ट्र मुख्यमंत्री एआर अंतुले पर आरोप लगा कि वे लोगों के कल्याण के लिए प्रयोग किए जाने वाला सीमेंट, प्राइवेट बिल्डर्स को दे रहे हैं।
 
एचडीडब्लू दलाली (1987)
 
जर्मनी की पनडुब्बी निर्मित करने वाले कंपनी एचडीडब्लू को काली सूची में डाल दिया गया। मामला था कि उसने 20 करोड़ रुपए बतोर कमीशन दिए हैं। 2005 में केस बंद कर दिया गया। फैसला एचडीडब्लू के पक्ष में रहा।
 
सिक्योरिटी स्कैम (हर्षद मेहता कांड)
 
1992 में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंकों का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया जिससे स्टॉक मार्केट को करीब 5,000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ।
 
चारा घोटाला
 
1996 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और अन्य नेताओं ने राज्य के पशुपालन विभाग को लेकर धोखाबाजी से लिए गए 950 करोड़ रुपए कथित रूप से निगल लिए।
 
स्टॉक मार्केट
 
स्टॉक ब्रोकर केतन पारीख ने स्टॉक मार्केट में 1,15,000 करोड़ रुपए का घोटाला किया। दिसंबर, 2002 में इन्हें गिरफ्तार किया गया।
 
स्टांप पेपर स्कैम
 
यह करोड़ों रुपए के फर्जी स्टांप पेपर का घोटाला था। इस रैकट को चलाने वाला मास्टरमाइंड अब्दुल करीम तेलगी था।
 
सत्यम् घोटाला
 
2008 में देश की चौथी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी सत्यम कम्प्यूटर्स के संस्थापक अध्यक्ष रामलिंगा राजू द्वारा 8,000 करोड़ रुपए का घोटाले का मामला सामने आया। राजू ने माना कि पिछले 7 वर्षों से उसने कंपनी के खातों में हेराफेरी की।
 
मनी लॉन्ड्रिंग
 
2009 में मधु कोड़ा को 4 हजार करोड़ रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग का दोषी पाया गया। मधु कोड़ा की इस संपत्ति में होटल्स, 3 कंपनियां, कलकत्ता में प्रॉपर्टी, थाईलैंड में एक होटल और लाइबेरिया ने कोयले की खान शामिल थीं।
 
मप्र में घोटाले
 
मप्र में कब और कैसे घोटाले हुए? इसका पता कांग्रेस सरकार में दबा-छुपा रहा। लेकिन भाजपा सरकार में घोटाले मक्का के दानों की तरह उछले। प्रदेश में व्यापमं, सिंहस्थ, कुशाभाऊ मेमोरियल, प्याज खरीदी, अवैध रेत उत्खनन, शौचालय निर्माण, विज्ञापन, इंदिरा आवास, मनरेगा, बिजली खरीदी, बुंदेलखंड पैकेज, बांध निर्माण, पेंशन, सुगनीदेवी भूमि घोटाला, डम्पर, पशु आहार, सहकारी बैंकों में भर्ती, फसल बीमा और अब भांवातर योजना के नाम पर घपले/ घोटाले/ भ्रष्टाचार का चरित्र सामने आया है।
 
इसके अलावा मप्र में डीमेट घोटाला, केएमएसवाई योजना, मुख्यमंत्री निवास में 7 वर्षों से लगा टेंट, मुख्यमंत्री के परिजनों द्वारा बुधनी के आसपास जमीन खरीदी घोटाला, मुख्यमंत्री के साले द्वारा फर्जी दस्तावेजों से पंजीयन, आदि-इत्यादि एक लंबी फेहरिस्त है।
 
इन घोटालों के मद्देनजर ये समझ में नहीं आता कि देश कैसे गरीब है? कैसी इसकी चौकीदारी हो रही है? जब घोटालेबाज आराम से घोटाले कर रहे हैं, तो देश गरीब कैसे हुआ?

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)

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