गांधी महज़ सिद्धांत नहीं सरल व्यवहार है...

पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को यानी आज से डेढ़ सौ साल पहले जो बालक जन्मा था। वह डेढ़ सौ साल बाद भी आज समूची मनुष्यता के लिए प्रेरक पुंज की तरह हमारे निजी और सार्वजनिक जीवन के सवालों में किसी न किसी रूप में मौजूद हैं।गांधी हम सबके लिए सवाल नहीं समाधान हैं।गांधीजी जीवन की जटिलता को विपन्न से लेकर सम्पन्न सभ्यताओं के लिए सरलतम समाधान सुझाते हैं।गांधी से पहले और बाद भी ईश्वर को लेकर कई मत-मतांतर हम सबके दिल-दिमाग में रचे-बसे हैं।साकार-निराकार की बहस भी कायम है, पर गांधीजी ने सिखाया कि सत्य ही ईश्वर है।

अब सवाल यह है कि सत्य क्या है? तो गांधीजी ने न केवल समझाया वरन निजी और सार्वजनिक जीवन जी-कर भी सिखाया कि सत्य सनातन सहज व्यवहार है।सत्य से परे मानव व्यवहार जीवन का संकुचन है।जैसे प्रकृति प्राणवायुमय है, वैसे ही सत्य मनुष्य की जीवनी शक्ति है।शायद इसी समझ को लोगों को समझाने के लिए गांधी ने अपनी आत्मकथा को सत्य का प्रयोग कहा।सत्य और अहिंसा जीवन के प्राकृतिक वैभव हैं, जैसे वनस्पति में पत्ते, फूल और फल वृक्ष का वैभव हैं।इनके बिना वृक्ष ठूंठ कहलाता है, वैसे ही सत्य और अहिंसा के बिना मानव महज हड्डियों का ढांचा है, निष्प्राण है।सत्य और अहिंसा मानव समाज की सहजता का सनातन विचार है।

गांधीजी को बचपन में अंधेरे से भय लगता था।उस उम्र में प्राय: सभी के मन में अंधेरे का भय होता है, पर गांधीजी ने सबके मन से भय को दूर करने के लिए सत्याग्रह के रूप में सत्य और अहिंसा के साधन से मन में निर्भयता लाने का व्यावहारिक उपाय समूची दुनिया को समझाया।न डरेंगे, न डराएंगे।असत्य न बोलेंगे, न सत्य को कभी छोड़ेंगे।साधारण से साधारण मनुष्य के मन में निर्भयता से ही मनुष्य जीवन को सत्यनिष्ठ बनाने और सत्यनिष्ठा ही व्यक्ति और समाज में निर्भयता लाने का सरलतम उपाय है। उन्‍होंने यह सिद्धांत लोगों के दिल-दिमाग में उतारा। जिससे भारत की आजादी की लड़ाई ने सारी मनुष्यता को नया और अनोखा रास्ता दिखाया।सादगी और सरलता जीवन जीने के सहज उपाय हैं जिसे हम सब बिना किसी जटिलता के अपने जीवन में आजीवन खुद ही निभा सकते हैं।गांधीजी ने जीवन की जरूरतों को कम से कम रखते हुए निजी और सार्वजनिक जीवन की मर्यादाओं को आत्मसात करके स्वराज्य के संकल्प को साकार बनाया।प्रामाणिकता को व्यापक अर्थ देते हुए हमारे शब्द, आचरण और समय की प्रामाणिकता हमारी जिन्दगी में हर समय होनी ही चाहिए तभी मनुष्य जीवन के साधन से जीवन का साध्य साकार हो पाता है।

गांधीजी न तो किसी काम को छोटा मानते थे और न ही मनुष्यों में किसी को छोटा-बड़ा। शरीर श्रम नियमित दिनचर्या का अंग है, श्रम करने से मन और तन दोनों तन्दुरुस्त बने रहते हैं, यह गांधी का आरोग्य शास्त्र है।खाने को अस्वादव्रत से जोड़कर गांधी ने जीने के लिए खाना, न कि खाने के लिए जीना, को आरोग्य की कुंजी निरूपित किया।भोजन भवन और भूषा स्थानीय साधनों से निर्मित होने से टिकाऊ और प्राकृतिक स्वावलंबन हर कोई सहजता से अपने निजी और सामाजिक जीवन में खुद ही ला सकता है।गांधीजी विकेन्द्रीकरण से स्वावलंबी समाज की जरूरतों को स्थानीय प्रयासों से समन्वय के साथ पूरा कर ग्राम स्वराज्य का विस्तार करना ही प्राकृतिक विकास का क्रम समझते थे।जो जहां है, उसकी रोजी-रोटी की व्यवस्था यथासंभव स्थानीय साधनों से हो तो हमारा समाज सदैव सुरक्षित और खुशहाल बना रहेगा।

विकेन्द्रित और स्वावलंबी भारतीय समाज ही देश के सात लाख गांवों को आत्मविश्वास से परिपूर्ण व आत्मनिर्भरता के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने को सनातन रूप में कायम रखेगा। आर्थिक-राजनीतिक ताना-बाना भी गांव निर्भर होने से आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन का सतत प्रवाह हमारे लोकजीवन का अविभाज्य अंग बना रहेगा।गांधीजी गांवों की मजबूती से समूचे देश को सदैव सतर्क स्वावलंबी और तेजस्वी बनाने के रास्ते पर चलने को ही देश की मजबूती का स्थाई कार्य समझते थे।गांधीजी कमजोर से कमजोर व्यक्ति की बेहतरी को केन्द्र में रखकर नीति और योजना बनाने की दृष्टि हम सबको दे गए।।गांधीजी ने सरकार के लिए एक पैमाना दिया था कि जब भी हम कोई योजना बनाते हैं तो हमारा पैमाना यह होना चाहिए कि देश समाज के विपन्नतम नागरिक को उससे कोई लाभ हो रहा है या नहीं, यही हमारा योजना लागू करने का पैमाना होना चाहिए।

गांधी ने सरल, सहज जीवन के लिए जीवन की जरूरतों को कम से कम रखते हुए श्रमनिष्ठ जीवन को जीने का सरलतम रास्ता अपने निजी और सार्वजनिक जीवन में अपनाया।गांधीजी का मानना था हमारी धरती में प्राणीमात्र की आवश्यकताओं को पूरी करने की क्षमता है पर किसी एक के भी लोभ-लालच को पूरा करने की क्षमता नहीं है।आवश्यकता की सीमा को समझना और लोभ -लालच से दूर रहने की समझ विकसित करना सरल और आनंदमय शाश्‍वत जीवन की बुनियाद है।गांधीजी स्वयं तो आत्मविश्वास से परिपूर्ण तो थे ही साथ ही प्राणीमात्र पर पूरा विश्वास रखकर जीने के सनातन तरीके में विश्वास रखते थे।सेवा-सादगी और सत्य निजी और सार्वजनिक जीवन का मूल है।गांधीजी ने सुधार से ज्यादा व्‍यवहार से ही सबको अपना साथी सहयोगी माना।एक बार साबरमती आश्रम में देर रात एक भाईसंदेहात्मक रूप से चोरी करने की नियत से घुसे आश्रमवासियों ने उन्हें पकड़कर एक कमरे में बन्द कर दिया।सुबह की प्रार्थना के बाद आश्रमवासी उन भाई को गांधीजी के पास लेकर गए और कहा ये भाई रात को चोरी के इरादे से आश्रम में घुसे थे।

गांधीजी ने आश्रमवासियों से पूछा, इन भाई को सुबह का नाश्ता दिया कि नहीं?उन्हें लाने वाले आश्रमवासी हैरान हो गए और बोले बापू ये तो चोर है, चोरी करने आए थे, इन्हें क्यों नाश्ता?गांधीजी ने कहा ये भी आपके जैसे ही मनुष्य हैं, आपने नाश्ता किया तो इन्हें भी सुबह का नाश्ता देना था।उन भाई की आंखों में आंसू आ गए और वे भावविभोर हो गए। उनका मन ऊर्जा से भर गया और वे गांधीजी के साथ आजादी की लड़ाई में पूरी तरह जुट गए। गांधीजी मनुष्य की ताकत को बढ़ाने वाले अनोखे संगठक थे।आजादी की लड़ाई में जो लोकसंग्रह गांधीजी ने किया वह मानव इतिहास की धरोहर है।उस कालखंड में देश के कोने-कोने में गांधी की दृष्टि को समझकर आजादी की लड़ाई में सत्यनिष्ठा से जुड़ने वाले लोग स्वयंस्फूर्त रूप से जुटने लगे।

गांधीजी का आजादी के आन्दोलन में खड़ा किया लोकसंग्रह आजादी के आन्दोलन की सबसे बड़ी लोकशक्ति बनी, जो सत्य और अहिंसा को आजादी पाने का साधन वैचारिक रूप से जानती और मानती थी।तभी तो गांधीजी की शहादत पर दुनिया के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था आने वाली पीढ़ियां बहुत मुश्किल से विश्वास कर पाएंगी कि हाड़-मांस का ऐसा इंसान कभी इस दुनिया में हमारे बीच हुआ था। गांधीजी स्वयं वकील थे, पर गांधी ने अदालत में सच्चाई को पकड़कर रखा कभी छोड़ा नहीं।सत्य से डिगे भी नहीं तभी तो हिन्दस्वराज्य में गांधीजी ने लिखा है कि मेरे सपनों का भारत मैं तब बना हुआ समझूंगा जब भारत के वकील और डॉक्टर कोई काम-धन्धा न मिलने के कारण भूख से तड़पने लगे यानी मेरे सपनों का भारत वह भारत है जिसमें एक भी विवाद न हो और कोई भी बीमार न हो।

पर आज गांधी के सपने को अपना सपना मानने वाला भारत हिलमिलकर एकजुट न होकर अंतहीन विवादों वाला भारत बनता जा रहा है।एक भी बीमार न हो के बजाय अंतहीन बीमारों का देश बनता जा रहा है।गांधी की सादगी सरलता सत्य और अहिंसा को हम आज जटिलतम सिद्धांत समझने लगे हैं।हमारे जीवन को हम जीने का सहज-सरल व्यवहार बनाने के बजाय अपनी ही ताकत को समझे बिना उधार की कसरत से पहलवान बनने का सपना देखने लगे हैं।गांधी भारत के साधनों से ग्रामस्वराज्य लाने का रास्ता दिखा गए, पर हम बाहरी चकाचौंध के लोभ-लालच में भारत की सनातन सादगी सत्य-अहिंसा के साधन को नकार कर परावलंबी विकास की दिशा के लोभ-लालच में पड़ते जा रहे हैं।

गांधी के जाने के बहत्तर साल बाद भी हम न तो खुद पर विश्वास कर पा रहे हैं, न ही हमें एक-दूसरे पर विश्वास है। ऐसी स्थिति के लिए ही गांधी ने कहा था कि पानी की एक बूंद की अकेले की अपनी कोई ताकत नहीं होती है, पर जब वह बूंद समन्दर में मिल जाती है तो समुद्र की ताकत बूंद की ताकत बन जाती है।हमारी भी अकेले मनुष्य की कोई ताकत नहीं है, पर हम सब भारत के विशाल लोकसागर में विलीन हो जावें तो सारे लोगों की सम्मिलित ताकत हमारी ताकत हो जाती है।

गांधी ने लोगों को अपने अंदर छिपी लोकशक्ति की ऊर्जा का भान कराया, लोग अपने अंदर छिपे सनातन सत्य, अहिंसा और आपसी विश्वास को जाने-समझे और माने यही जीवन का सरल-सहज व्यवहार है, जिसे गांधी ने अपने जीवन में जाना और आजीवन माना भी।यही हम सबके सहज, सरल जीवन का व्यवहार बने तो भारत लोकऊर्जा का ऐसा देश बन सकेगा, जिसमें न कोई बीमार होगा, न हमारे बीच कोई विवाद जन्म लेगा। गांधी के सरलतम विचार और व्यवहार ही हम सबके जीवन का प्राकृतिक आनंद है।

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