भाजपा के सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश और मध्यप्रदेश के प्रभारी मुरलीधर राव ने यदि सही तहकीकात कर ली तो मध्यप्रदेश भाजपा के कई दिग्गज दिक्कत में आ जाएंगे। यह सब वे दिख गए हैं जिन्होंने पार्टी द्वारा तय व्यवस्था के बावजूद विस्तारक अभियान में कोई रुचि नहीं ली और वे केवल सोशल मीडिया पर शोबाजी कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते रहे। संगठन के इस महत्वपूर्ण अभियान के प्रति लापरवाह नेताओं की सूची बहुत लंबी है। ये सब नेता अब केंद्रीय नेतृत्व के निशाने पर आने वाले हैं और वहां से मिलने वाली सजा का स्वरूप क्या होता है, यह भाजपाइयों को अच्छे से मालूम है।
राह में रोड़ा नहीं लेकिन रॉड आ गई। सूबे के पिछले लगभग 17 साल से मुखिया रहे शिवराजसिंह चौहान यूं तो कई बार बीमार हुए होंगे। लेकिन ऐसा पहली बार है, जब उनकी राह में कोई रोड़ा तो नहीं लेकिन एक रॉड आ गई। सीएम अपने विधानसभा क्षेत्र में किसी कार्यकर्ता के निवास पर शोक-संवेदना प्रकट करने पहुंचे थे। कार्यकर्ता के आंगन में लाल कपड़े से ढंका एक सरियों का जाल था। यहां चौहान चूक गए और उनका उल्टा पैर सरिये से मिल गया। शबरी के जूठे बेर खाने की तुलना के बाद वे सोशल मीडिया में जमकर ट्रोल हुए थे। अब लोहे के जाल में फसने से उनका पैर लहूलुहान हो गया है। हालांकि प्रशासन ने इस मामले को छुपाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन छुपा नहीं सके। अलबत्ता इसे सीएम की सुरक्षा में हुई चूक से जोड़ दिया गया है।
मध्यप्रदेश के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के निशाने में इन दिनों डिजिटल प्लेटफॉर्म वाले बने हुए हैं। फिर चाहे वो वेब सीरीज के प्रमोशन के लिए भोपाल आईं श्वेता तिवारी का दिया गया अशोभनीय बयान हो या फिर गांजे और चायनीज मांझे को लेकर अमेजन और फ्लिपकार्ट को नोटिस देने की बात। वैसे इसके पहले भी एक युवक ने अमेजन से जहर मंगवाकर आत्महत्या कर ली थी, वहीं गणतंत्र दिवस पर तिरंगे के प्रिंट वाले जूते को लेकर डीजीपी को कार्रवाई करने के लिए भी उन्होंने कहा था। वैसे भी डिजिटल प्लेटफॉर्म वालों पर कार्रवाई करने के लिए प्रदेश में फिलहाल तो कोई ठोस खाका तैयार नहीं है। बार-बार ऐसा हो रहा है कि कुछ-न-कुछ नई बातें सामने आती हैं और गृहमंत्री उन पर कार्रवाई करने की बात करते हैं। अब ये कार्रवाई कितनी असरदार होती है, इसका पता फिलहाल तो नहीं है।
'सिर मुंडाते ही ओले पड़े' की कहावत महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष अर्चना जायसवाल पर बिलकुल सटीक बैठ रही है। अपने दिल्ली के संपर्कों के माध्यम से प्रदेशाध्यक्ष पद पर काबिज होने वालीं जायसवाल ने पिछले दिनों प्रदेश पदाधिकारियों एवं कई शहर व जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा कर दी। इधर घोषणा हुई और उधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और पार्टी के दिग्गज नेताओं के फोन घनघनाना शुरू हो गए। तरह-तरह के आरोप जायसवाल पर लगाए गए। जब विरोध बहुत बढ़ गया तो बड़े नेताओं की नाराजगी जायसवाल तक पहुंची और इसी का नतीजा था कि अगले दिन ही जितनी नई नियुक्तियां की गई थीं, उसे उन्हें स्थगित करना पड़ा। पिछले दिनों जब कमलनाथ देवास पहुंचे थे तब तो मालवा-निमाड़ की नेत्रियों ने शशि यादव की अगुवाई में नई नियुक्तियों के मामले में उनसे मंच पर ही विरोध जताया और 'साहब' को बोलना पड़ा कि तुम लोग अपना काम करो, मैंने स्टे करवा दिया है।
मप्र के नए डीजीपी को लेकर परिदृश्य लगभग स्पष्ट होता जा रहा है। अभी तक की स्थिति में दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ सुधीर सक्सेना का नाम पवन जैन और शैलेष सिंह से आगे बताया जा रहा है। वल्लभ भवन के गलियारों में अब तो चर्चा नए मुख्य सचिव को लेकर शुरू हो गई है। प्रारंभिक दौर में अनुराग जैन और मोहम्मद सुलेमान के नाम सामने आ रहे हैं। जैन अभी दिल्ली में अहम भूमिका में हैं तो सुलेमान भोपाल में। दोनों में से कोई भी कमजोर नहीं है और इन्हें मुख्य सचिव पद पर देखने वाले भी उतने ही वजनदार हैं। देखते हैं फैसला किसके पक्ष में होता है? लेकिन इतना तय है कि नए मुख्य सचिव के मामले में वर्तमान मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की भूमिका अहम रहने वाली है।
1992 बैच के आईएएस अफसर केसी गुप्ता की अचानक केंद्र से वापसी प्रशासनिक हलकों में चर्चा का विषय बन गई है। मध्यप्रदेश के कई जिलों में कलेक्टर रहने के बाद कई अन्य महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ रहे गुप्ता 2019 में केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर गए थे और वर्तमान में सड़क परिवहन मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव के पद पर पदस्थ थे। केंद्र में प्रतिनियुक्ति का उनका 2 साल का कार्यकाल अभी शेष था, इसी बीच राज्य सरकार ने उनकी सेवाएं केंद्र से वापस मांग लीं। लग ऐसा रहा, मानो राज्य सरकार गुप्ता को मध्यप्रदेश में किसी महत्वपूर्ण पद पर पदस्थ करना चाहती है। लेकिन हकीकत यह है कि दिल्ली का मिजाज गुप्ता को रास नहीं आया और उन्होंने ही मध्यप्रदेश वापसी की इच्छा जताई थी जिस पर मुख्य सचिव ने तत्काल एक पत्र केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय को भेज उन्हें वापस मध्यप्रदेश भेजने का अनुरोध किया था।
जयदीप प्रसाद और राजाबाबू सिंह जैसे पुलिस अफसरों की मध्यप्रदेश में भले ही कद्र नहीं हुई हो, लेकिन ये दोनों अफसर इन दिनों जिन संगठनों में सेवाएं दे रहे हैं, वहां इन्हें खूब वाहवाही मिल रही है। जयदीप प्रसाद इन दिनों ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्यूरिटी के प्रभारी डायरेक्टर जनरल हैं। उन्हें संयुक्त निदेशक के रूप में वहां पदस्थ किया गया था और कुछ ही महीनों बाद वे वहां के सर्वेसर्वा हो गए। देश के हवाई अड्डों की सुरक्षा व्यवस्था की रणनीति को अंतिम रूप देने में इस संगठन की अहम भूमिका है। राजाबाबू सिंह इन दिनों कश्मीर फ्रंटियर पर बीएसएफ के आईजी हैं। देश के सबसे महत्वपूर्ण फ्रंटियर पर वे बुनियादी सुविधाओं के ढांचे को व्यवस्थित करवाने के लिए सक्रिय हैं तथा जिस अंदाज में अपने मातहतों की हौसला अफजाई कर रहे हैं, उसकी बड़ी चर्चा है।
चलते-चलते
आखिर क्या कारण है कि 3 जिलों में कलेक्टर रहने के बाद मंत्रालय में उपसचिव के पद पर पदस्थ हुए युवा आईएएस अभिषेक सिंह एक वरिष्ठ आईएएस अफसर की वक्रदृष्टि से उबर नहीं पा रहे हैं।
पुछल्ला
प्रदेश की नौकरशाही में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले आईएएस अफसर आकाश त्रिपाठी को लेकर सोशल मीडिया पर पिछले दिनों वायरल हुई खबर कुछ आईएएस अफसरों की ही उपज बताई जा रही है। ऐसा क्यों, जरा पता कीजिए?