‘बेटी बचाओ पार्टी’ से ‘बेटी सताओ पार्टी’ तक

# माय हैशटैग
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नारा दिया है बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। उनके नारे की हवा उत्तरप्रदेश भाजपा के नेता दयाशंकर सिंह ने मायावती के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त करके निकाल दी थी। अब दयाशंकर सिंह पद पर नहीं हैं और उनके खिलाफ बहुजन समाज पार्टी देशभर में आंदोलन कर रही है। ये आंदोलन अभी थमे नहीं हैं। लखनऊ में ही बसपा के प्रदर्शन के दौरान दयाशंकर सिंह की मां, बेटी और पत्नी के बारे में नारेबाजी की गई। अभद्र शब्दों का इस्तेमाल भी हुआ। सोशल मीडिया पर इसके विरोध में लोगों ने बसपा को ‘बेटी सताओ पार्टी’ निरूपित किया। दयाशंकर सिंह के बयान की भी जमकर आलोचना हुई थी और बसपा के आंदोलन में दिए गए नारों की भी निंदा भरपूर हुई। 
दयाशंकर सिंह के समर्थक अब सोशल मीडिया पर मायावती को कोस रहे है और कह रहे है कि वे अपने उन कार्यकर्ता पर कार्यवाही करें और पार्टी से निकालें, जिन्होंने दयाशंकर सिंह की बेटी और पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करने तक की बात कही। अगर मायावती बेटी हैं, तो दयाशंकर सिंह की पत्नी और बेटी भी किसी न किसी की बेटी हैं ही। फिर बेटी तो बेटी होती है, सभी बेटियों का सम्मान होना ही चाहिए। बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने लिखा कि मायावती जी का सम्मान रखने के लिए बीजेपी ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। कई लोगों ने तो बसपा के कार्यकर्ताओं की नारेबाजी को नीचता तक लिख दिया। अनेक ने कहा कि यह बेहद घटिया हरकत थी और मायावती जी की सहमति के बिना यह नहीं हो सकती थी। 
 
सोशल मीडिया पर लोगों ने इस बात की तरफ भी ध्यान दिलाया कि प्रदर्शन के दौरान जितनी नारेबाजी हुई, उसमें हिन्दू देवी-देवताओं को जमकर गालियां दी गई। दयाशंकर सिंह की पत्नी ने भी इसके खिलाफ खुलकर आवाज उठाई और कहा कि अगर मायावती जी को महिलाओं के सम्मान की फिक्र है, तो वे उन कार्यकर्ताओं के खिलाफ भी एक्शन लें, जो उनके बारे में अपशब्द कह रहे है। मायावती यह तो नहीं कर रहीं, उल्टे अपने कार्यकर्ताओं की पीठ थपथपा रही है। 
दयाशंकर सिंह ने जो टिप्पणियां की थीं, उसके खिलाफ उन पर कार्यवाही की गई। दयाशंकर सिंह को सजा मिल चुकी, अब उन बसपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही अपेक्षित है। अगर मायावती जी का अपमान उनके समर्थक नहीं सह पाए, तो क्या एक 12 साल की बेटी का अपमान यह देश सहन कर लेगा? राजनीति के चक्कर में मायावती के असामाजिक कार्यकर्ता निष्ठुर और निर्दयी हो गए हैं। उनकी निगाह से 12 साल की बच्ची भी नहीं बची। बीजेपी ने कभी दयाशंकर सिंह की बात का समर्थन नहीं किया, लेकिन मायावती जी ऐसी बातों का समर्थन कर रही है। 
 
अनेक लोगों ने लिखा कि उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए मायावती की यह सक्रियता उन्हें फायदा पहुंचाने के बजाय नुकसान ही पहुंचाएगी। बसपा के पुराने चुनावी नारों का भी जिक्र लोग बार-बार कर रहे हैं और याद दिला रहे हैं कि तिलक, तराजू और तलवार के बारे में उन्होंने क्या कहा था? लोगों ने यह भी याद दिलाया कि एक इंटरव्यू में उन्होंने अनुसूचित जाति के लोगों को हरिजन शब्द कहे जाने पर आपत्ति उठाई थी और कहा था कि हरिजन का अर्थ भगवान की संतान। हम सभी भगवान की संतान हैं, तो फिर महात्मा गांधी ने अनुसूचित जाति के लिए हरिजन शब्द क्यों कहा? क्या गांधीजी भगवान की संतान नहीं थे? क्या वे हरिजन नहीं थे? क्या वे शैतान की औलाद थे?
 
दयाशंकर सिंह को पार्टी से निकालने पर कई लोगों ने बहुत तीखे-तीखे तंज भी कसे है। किसी ने लिखा कि गालियां और बकवास दयाशंकर सिंह की रोजी-रोटी है। ऐसे लोगों को तो पार्टी द्वारा प्रमोशन दिया जाना चाहिए। मायावती को अहंकारवती भी कहा गया और आरोप लगाए कि वे राजनीति के जरिये इतना धन कमा चुकी हैं कि किसी भी समय भारत छोड़कर विदेश में बस सकती है। मायावती खुद स्वीकार कर चुकी हैं कि उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है, वे जो कुछ करती हैं, पार्टी के लिए करती हैं। खुद के लिए तो केवल साल में एक बार जन्मदिन मनाती हैं। टीवी वाले मायावती की खबरें इसलिए दिखा रहे हैं कि उन्हें मायावती की खबरों में ‘हमारी बहू रजनीकांत’ से ज्यादा अच्छी टीआरपी मिल रही है। 
 
दयाशंकर सिंह के बयान के बाद पूरे देश की सहानुभूति मायावती के साथ थी। राज्यसभा में मायावती ने अपने भाषण से पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा भी था, लेकिन बसपा कार्यकर्ताओं ने अति उत्साह में मायावती को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। सोशल मीडिया पर तो यही बात परिलक्षित हो रही है। 
 

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