शून्य से शिखर तक...

विभूति शर्मा
अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में जब जनसंघ के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ था, तब शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि एक दिन यह पार्टी पूरे देश पर राज करने वाली पार्टी कांग्रेस को नेस्तनाबूद कर अपना परचम लहराएगी। लेकिन आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने यह कारनामा कर दिखाया।
 
 
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी भाजपा की पहली सरकार ने देश को चतुर्भुज सड़क परियोजना से जोड़ा था। अब मोदी के नेतृत्व में उन्हीं सड़कों (नीतियों) पर चलते हुए मोदी ने भाजपा को देश के लगभग हर कोने की सत्ता पर काबिज करा दिया है। मोदी के इस कारनामे ने कांग्रेस की सबसे ताकतवर मानी जाने वाली नेता इंदिरा गांधी को भी पछाड़ दिया। इंदिरा के प्रधानमंत्री रहते चार साल में 19 चुनाव हुए थे, जिनमें कांग्रेस 13 राज्यों में जीती थी, जबकि मोदी के चार साल में अब तक 21 राज्यों में चुनाव हुए और भाजपा 14 में जीत हासिल कर चुकी है।
 
 
इस माह तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के चुनाव परिणामों के संकेत साफ हैं। कांग्रेस के सफाये का लक्ष्य लेकर चल रही भाजपा के अभियान में वामपंथ का सफाया अपनेआप ही हो गया लगता है। त्रिपुरा में भाजपा की प्रचंड जीत बताती है कि देश में अब वामपंथ के लिए स्थान नहीं है, हालांकि अभी केरल में वामदल की सरकार है, लेकिन हालात के मद्देनजर यह अनुमान गैरवाजिब नहीं माना जाना चाहिए कि अगले चुनाव में उसका बचना मुश्किल होगा। यह भी माना जा सकता है कि केंद्रीय सत्ता के लिए उलटी गिनती शुरू हो गई है। ये घोषणाएं काफी समय से की जा रहीं हैं कि वर्ष 2018 में आठ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव अगले वर्ष के आम चुनाव का दिशा निर्धारण करने वाले साबित होंगे।
 
 
त्रिपुरा में दो दशक से ज्यादा समय से वाम सरकार सत्ता में थी और मुख्यमंत्री माणिक सरकार की छवि इतनी साफ बताई जा रही थी कि भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए उन्हें हरा पाना टेढ़ी खीर नजर आ रहा था। लेकिन भाजपा ने त्रिपुरा में सारे समीकरणों को झुठलाते हुए ऐतिहासिक जीत हासिल कर साबित किया कि भारत में अब वामपंथ के लिए कोई स्थान नहीं है। त्रिपुरा में भाजपा को दो तिहाई बहुमत मिलना जितना चकित करने वाला है उतना ही अचंभित करता है कांग्रेस का शून्य पर पहुंच जाना।
 
 
किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि कांग्रेस त्रिपुरा में एक सीट भी नहीं जीत सकेगी और 2013 में शून्य पर रहने वाली भाजपा 43 सीटें जीत जाएगी। अब भले ही कांग्रेस और वामदल एक दूसरे के लिए कहते रहें कि गेहूं के साथ घुन भी पिसा गया! इसमें भी कोई दो राय नहीं कि भाजपा की जीत का श्रेय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पिछले वर्षों की मेहनत को जाता है। खासतौर से भाजपा के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी विप्लब कुमार देव और सुनील देवधर इस जीत के शिल्पकार हैं। 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात चुनाव के तुरंत बाद पूर्वी राज्यों का दौरा प्रारम्भ कर दिया था। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तो उसके पहले ही अपनी गोटियां बैठाने के लिए वहां सक्रिय हो चुके थे। यह इन दो नेताओं का ही दमखम है, जिसने पूरे पूर्वोत्तर में भाजपा का परचम फहरा दिया है। भले ही मिजोरम में अभी कांग्रेस का अस्तित्व बरकरार है, लेकिन इसके बने रहने का दावा वह अंतर्मन से नहीं कर सकती। 
 
मेघालय में कांग्रेस ने इस बार 21 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में सरकार बनाने का दावा किया लेकिन जोड़तोड़ में सिद्धहस्त हो चुकी भाजपा ने उसे पटखनी देकर बहुमत का आंकड़ा जुटाकर एनपीपी के कौनराड के. संगमा की सरकार बनाने में सफलता हासिल कर ली। कांग्रेस ने अपने दो शीर्ष नेताओं अहमद पटेल और कमलनाथ को पूरे परिणाम घोषित होने के पहले ही मेघालय भेज दिया था कि कहीं गोवा और मणिपुर की तरह यहां भी भाजपा तोड़फोड़ कर अपनी सरकार न बनवा ले। लेकिन ये नेता मास्टर माइंड भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की चालों को मात नहीं दे सके।
 
 
क्षेत्र के दूसरे राज्य नगालैंड से तो इस बार कांग्रेस का सफाया हो चुका है। यहां भाजपा नगा पीपुल्स फ्रंट के साथ पिछली सरकार के साथ सत्ता में शामिल हो चुकी थी, लेकिन इस बार उसने एनपीएफ का साथ छोड़कर एनडीपीपी से हाथ मिलाया और पुनः सत्ता का सुख हासिल करने में सफल रही। अब नागालैंड में एनडीपीपी के नेता नेफ्यू रियो के नेतृत्व में सरकार बन रही है, जिसे 32 विधायकों का समर्थन हासिल है। भाजपा ने इसके साथ ही इस मिथक को ध्वस्त कर दिया कि उत्तर पूर्व में कांग्रेस के अलावा कोई अन्य राष्ट्रीय पार्टी सरवाइव ही नहीं कर सकती। आज हालत यह है कि उत्तर पूर्व के सेवन सिस्टर्स में से सिक्स भाजपा के साथ हैं। 
 
तीन राज्यों के परिणामों ने साबित किया है कि परिस्थितियां अभी भी भाजपा के पक्ष में और कांग्रेस के विरुद्ध हैं। इसी वर्ष कांग्रेस शासित कर्नाटक और भाजपा शासित मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां इन दोनों दलों की अग्निपरीक्षा होगी, क्योंकि इन राज्यों में एंटीइंकम्बैंसी का फैक्टर भी काम करेगा। मप्र और राजस्थान के हाल के उपचुनावों ने भाजपा को कड़े संकेत दे दिए हैं, जिनमें कांग्रेस के उम्मीदवार जीते हैं। राजस्थान में तो हर चुनाव में सरकार बदलने की परंपरा है। सवाल है कि क्या छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भाजपा अपने 15 वर्षीय शासनकाल को आगे जारी रख पाएगी।

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