राहुल ने विदेश में भारत की नकारात्मक छवि पेश की, नहीं मिलेगा भारतीयों का समर्थन

अवधेश कुमार
अमेरिकी यात्रा के दौरान राहुल गांधी के बयानों पर भारत में मचा हंगामा बिलकुल स्वाभाविक है। भारत में किसी भी राजनीतिक पहलू वाले बयान पर राजनीतिक दलों द्वारा विवेकसम्मत तार्किक प्रतिक्रियाओं की संभावनाएं तत्काल लगभग खत्म है। इस कारण राहुल गांधी के कुछ बयानों पर भाजपा स्वाभाविक ही आपत्ति जता रही है और देश में एक बड़े समूह को भी लगता है कि देश के बाहर इस तरह के बयान नहीं दिए जाने चाहिए, पर एक बड़ा समूह उनके समर्थन में भी खड़ा है। 
 
सामान्य समर्थक कह रहे हैं कि राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं तो वे सरकार की आलोचना करेंगे। कांग्रेस और भाजपा विरोधी पार्टियों की प्रतिक्रिया है कि उन्होंने गलत कुछ नहीं कहा। तो राहुल गांधी के वक्तव्य को कैसे देखें? क्या इसे विरोधी नेता का स्वाभाविक वक्तव्य मान लिया जाए या विदेश की धरती पर भारत की छवि खराब करने वाली?
 
इनका उत्तर देने के पहले राहुल गांधी के ऐसे वक्तव्यों को कुछ बिंदुओं में समेटने की कोशिश करें। 
 
- एक, 'बे एरिया मुस्लिम कम्युनिटी' के एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि जिस तरह आप (मुसलमानों) पर हमला हो रहा है, मैं गारंटी दे सकता हूं कि सिख, ईसाई, दलित, आदिवासी भी ऐसा ही महसूस कर रहे हैं। 
 
- दो, भारत में राजनीति के जो सामान्य टूल थे (जैसे जनसभा, लोगों से बातचीत, रैली) वे अब काम नहीं कर रहे हैं। हमें राजनीति के लिए जिन संसाधानों की जरूरत पड़ती है, उन्हें बीजेपी और आरएसएस नियंत्रित कर रहे हैं। लोगों को धमकी दी जा रही है, एजेंसियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। 
 
- तीन, उन्होंने (भाजपा) पूरी कोशिश की कि हमारी भारत जोड़ो यात्रा को रोका जा सके। उन्होंने पुलिस और एजेंसियों का इस्तेमाल किया, लेकिन वे अपनी हर कोशिश में असफल हुए। 
 
- चार, मानहानि के लिए अधिकतम सजा पाने वाला मैं पहला व्यक्ति हूं। ..मेरी सांसदी चली गई। ..मैंने हिंडनबर्ग रिपोर्ट और अडानी पर बोला।
 
राहुल गांधी के अमेरिका में कई कार्यक्रम हुए। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी ने मुसलमानों पर हमले के साथ सिख, दलित और अनुसूचित जाति को भी जोड़ दिया। हालांकि उन्होंने इसको समझाने के लिए 1980 के दशक में उत्तर प्रदेश में दलित अत्याचार की बात की। यह इसलिए समझ से परे है कि उस समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का शासन था। मायावती ने अपनी प्रतिक्रिया में राहुल के इस बयान का समर्थन भी कर दिया। 
 
राहुल गांधी आज भी भाजपा के बाद केंद्र से राज्य तक अकेले दूसरे नंबर की पार्टी के सर्वमान्य शीर्ष नेता हैं। उनके बयानों में आम भारतीय को परिपक्वता एवं विदेश की धरती पर जिम्मेदार भारतीय नेता की छवि दिखनी चाहिए। भाजपा, संघ, नरेन्द्र मोदी से विरोध को कोई अस्वाभाविक नहीं कह सकता। किंतु क्या विदेश की धरती पर भी देश के विपक्षी नेता की ऐसी भूमिका उचित मानी जाएगी? 
 
•आप विदेश की धरती पर भारत में मुसलमानों के साथ दलितों, सिखों, आदिवासियों के विरुद्ध हिंसा और उत्पीड़न की बात करते हैं तो संदेश यही निकलता है कि यह वर्तमान भारत की नीति है।
 
• ऐसे में उन विदेशी शक्तियों का समर्थन होता है जो इस तरह का लगातार दुष्प्रचार कर रहे हैं। पिछले महीने ही अमेरिका के एक आयोग ने रिपोर्ट देते हुए भारत को  अल्पसंख्यकों के लिए प्रतिकूल चिंताजनक देश की श्रेणी में रखने का अनुरोध किया था। भारत में ऐसी भयानक स्थिति है भी नहीं। 
 
•ओवरसीज कांग्रेस का नेतृत्व सैम पित्रोदा के हाथों है। विदेश में कांग्रेस का पूरा संगठन है। जाहिर है, उनकी यात्राएं कार्यक्रम अत्यंत सोच-समझ कर निर्धारित होते हैं। उन्हें बोलने और उत्तर देने के लिए पूरी सामग्री टीम प्रदान करती है। 
 
क्या राहुल सहित ओवरसीज कांग्रेस के लोगों ने यह सोचा कि ये विदेशी शक्तियां राहुल गांधी को अपनी रिपोर्ट में उद्धृत करते हुए भारत को अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न वाला देश घोषित कर ब्लैक लिस्ट करने की मांग करेगी तो वे क्या जवाब देंगे?
 
हालांकि राहुल गांधी ने कहा कि हम यहां किसी से मदद मांगने नहीं आए हैं। यह हमारी लड़ाई है और हम लड़ रहे हैं। इसी तरह रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में उन्होंने कहा कि इस पर हमारी नीति वही है जो मोदी सरकार की है। किंतु दूसरी ओर उन्होंने भारत की ऐसी डरावनी तस्वीर पेश की मानो यहां लोकतंत्र और संवैधानिक शासन खत्म हो गया है, फासिस्ट प्रवृत्ति वाली सरकार काम कर रही है जिसने नफरत और हिंसा को बढ़ावा दिया है तथा मीडिया, न्यायपालिका सब उसके नियंत्रण में है।

चार उदाहरण देखिए।
 
- •एक, आम आदमी किसी से नफरत नहीं करता। किसी को मारने के बारे में नहीं सोचता है। ये चंद लोग हैं जिनका सिस्टम पर कंट्रोल है। उनका मीडिया पर कंट्रोल है। उन लोगों के पीछे पैसे वालों लोगों का पूरा समर्थन है।
 
- • दो, मीडिया और प्रचार तंत्र सरकार के हाथों हैं। भाजपा आगे के चुनाव हारने जा रही है लेकिन भारतीय मीडिया कहेगा कि ऐसा नहीं होगा।
 
- •तीन, बीजेपी ने संस्थानों पर कब्जा कर लिया है। हम लोकतांत्रिक तरीके से लड़ रहे हैं। 
 
- • चार, संसद सदस्यता जाने पर उन्होंने कहा कि ये ड्रामा असल में छह महीने पहले शुरू हुआ। हम संघर्ष कर रहे थे। 
 
क्या मीडिया की स्वतंत्रता केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की भाजपा सरकारों द्वारा खत्म कर दी गई है? क्या कर्नाटक चुनाव के पहले ज्यादातर मीडिया के सर्वेक्षणों ने कांग्रेस को आगे नहीं बताया था? क्या राहुल की संसद सदस्यता अडाणी के साथ सरकार के सांठगांठ के आरोप लगाने के कारण गई? भारत के बाहर वे तस्वीर पेश कर रहे हैं मानो न्यायालय ने भी सरकार के डर से ही फैसला दिया। क्या ऐसी तस्वीर विदेश में पेश कर राहुल गांधी भारत की छवि पर बट्टा लगाने की कोशिश नहीं कर रहे?
 
• 2017 से लेकर अभी तक उन्होंने विदेशों में भारत के बारे में ऐसी ही तस्वीर पेश की है जिसे स्वीकार कर लिया जाए तो मानना पड़ेगा कि भारत में हिटलर और मुसोलिनी के शासन की पुनरावृत्ति हो गई है, शासन में संतुलन बनाने वाली संस्थाएं और मीडिया लाचार है, लोकतांत्रिक संस्थाएं खत्म हो गई हैं, दूसरे विचारों व धर्मों के लोगों का जीना मुहाल है तथा विपक्ष में राजनीतिक संघर्ष करने वालों के विरुद्ध एजेंसियां व संस्थाएं दमनात्मक कार्रवाई आकर रही है।
 
•पिछले मार्च में इंग्लैंड में उन्होंने कह दिया कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो रहा है, और यूरोप व अमेरिका उसकी ओर देख नहीं रहे। हालांकि बाद में उन्होंने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया लेकिन एक बार बोलने के बाद इसका कोई अर्थ नहीं रह गया था। 
 
ओवरसीज कांग्रेस उनकी सार्वजनिक यात्राएं आयोजित कर रही है तो इसका उद्देश्य नरेंद्र मोदी के समानांतर वैश्विक मंच पर राहुल गांधी को भारत का सबसे कद्दावर विपक्षी नेता साबित करना है। दरअसल, भारत की राजनीति में किसी एक परिवार के विदेशी राजनेताओं से सर्वाधिक संबंध थे तो वह नेहरू इंदिरा परिवार है। किंतु विदेशों में भी पुरानी पीढ़ी के नेताओं और परिवारों के हाशिए में जाने, भारत में खंडित राजनीति के कारण अनेक नेताओं के शीर्ष पर आने के कारण यह स्थिति आज नहीं है। 
 
आज विदेशों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ख्याति और लोकप्रियता विश्व के किसी भी नेता की तुलना में ज्यादा है। कांग्रेस विदेश की धरती पर प्रधानमंत्री के दो तीन वक्तव्यों को एकपक्षीय तरीके से उद्धृत करती है। वह गहराई से छानबीन करे तो पता चलेगा कि मोदी ने न केवल अपनी सरकार के अंदर भारत के बदलाव की प्रभावी सकारात्मक तस्वीरें विदेशी मंच पर पेश की, बल्कि दुनिया की समस्याओं को लेकर भी मुखर होकर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। इससे उनकी एक विजनरी, मजबूत तथा साहस के साथ निर्णय करने वाले नेता की छवि बनी है। 
 
अपने देश की नकारात्मक छवि और नेता को भी देश की धरती पर खलनायक बनाकर आप सम्मान हासिल नहीं कर सकते। इसके विपरीत आपकी छवि अपरिपक्व और कमजोर नेता की बनती है। राहुल अगर विदेश में भारत का पक्ष रखते, अंतरराष्ट्रीय मामलों पर अमेरिका, यूरोप या बड़े देशों की नीतियों की सकारात्मक आलोचना करते तो उनकी छवि मजबूत और परिपक्व नेता की बनती।
 
हिमाचल और कर्नाटक में भाजपा के अंदरूनी कलह ने उसे हराया है, भाजपा के उत्साही निष्ठावान कार्यकर्ता, नेता और समर्थक अपनी अनदेखी के कारण धैर्य खो रहे हैं। इसमें विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को विजय मिली है। नरेंद्र मोदी के प्रति आज भी भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं के अंदर सम्मान और श्रद्धा का भाव व्याप्त है।

राहुल गांधी, उनके रणनीतिकारों और ओवरसीज कांग्रेस के संचालकों का नरेंद्र मोदी, भाजपा और संघ परिवार के प्रति सनातन वैर भाव समझ में आता है लेकिन यह किसी भी लोकतांत्रिक देश में राजनीति करने की स्थायी प्रवृत्ति नहीं हो सकती।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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