त्रेता युग में जन्मे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम द्वारा जिस मार्यादा और और विचारशीलता का बीज बोया है, वह आज भी प्रासंगिक और प्रेरक है। उनके द्वारा पग-पग पर किया गया त्याग और तपस्या का बखान आज पूरी दुनिया पढ़ती है और सदैव उनका स्मरण करती है। राम नाम से एक ऐसी सजीव मूर्ति का विश्लेषण होता है जिसमें गुण, धीर-गंभीर, न्यायमूर्ति, दृढ़ -प्रतिज्ञा, अपने वचनों पर सदैव अटल रहना जैसे कई गुण समाहित थे।
आज कई लोग सिर्फ राम नाम से मन में अपार शांति महसूस करते हैं। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है श्रीराम का उच्चारण। सैकड़ों और हजारों संतों ने राम नाम जपकर मोक्ष प्राप्त कर लिया। मृत्यु के बाद भी लोगों ने राम नाम को सत्य कहा है।
राम नाम में कितनी शक्ति है इसके कई उदाहरण हमारे सामने हैं। जब किसी राज्य को स्थापित किया जाता है तो कहते हैं रामराज्य जैसा होना चाहिए। जहां प्रत्येक व्यक्ति के साथ न्याय किया जाता है, किसी तरह के जात-पात का भेदभाव नहीं, जहां हर आयुवर्ग का इंसान उस रामराज्य में सिर्फ सुख की अनुभूति करता है।
जब हनुमान जी को लंका जाना था लेकिन समुद्र इतना बड़ा और गहरा था कि उसे पार करना उनके लिए संभव नहीं था। लेकिन तभी वहां मौजूद वानरों की सेना ने पत्थरों पर राम का नाम लिखा और सेतु/बांध बन गया। एक छलांग में हनुमान जी ने उस बांध को पार कर लिया।
आज कलियुग में सबकुछ महंगा है लेकिन कहते हैं राम नाम ही सबसे सस्ता हैं। जिनके नाम मात्र उच्चारण से दुखों का संकट टलने लगता है। वैज्ञानिकों द्वारा पुष्टि की गई है कि राम नाम की ध्वनि मात्र से मन शांत हो जाता है। वर्तमान में भागती जिंदगी, गलाकाट प्रतिस्पर्धा, धोखा, मोह-माया के बीच जब इंसान आत्महत्या का विचार मन में लाता है तब सिर्फ राम नाम ही एक सहारा रह जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर जिन्होंने ने भी उनके जीवन की गहनता को समझा, उनके त्याग और बलिदान को समझा, अपने कर्तव्यों का पालन किया, पत्नी से दूर रहकर प्रजा की भलाई के बारे में सोचा यह सब आज के युग में शायद मुमकिन नहीं है।
प्रभु श्रीराम ने अपने सुखों से समझौता कर एक सुखी राज्य की स्थापना का उदाहरण दुनिया के समक्ष रखा। इस रामराज्य के लिए आज जनता तरसती है। अपने जीवन के चिंता नहीं करते हुए माता कैकेयी की आज्ञानुसार वन में 14 वर्ष का वनवास काटा। यह उनके धैर्य और सहनशीलता का उदाहरण है। समुद्र पर सेतु बनाने का धैर्य रखा, माता सीता के निर्दोष होते हुए भी प्रजा की बात सुनी और माता को फिर से वनवास भेज दिया। उनकी सहनशीलता की परीक्षा मानो कभी न खत्म होने वाली रही। राजा होने के बाद भी उन्होंने सन्यासी की भांति अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। जमीन पर ही बिछाकर सो जाते, सिर्फ सामान्य रोटी ही खाते थे।
भगवान श्री राम ने अपनी सेना में सिर्फ इंसानों को ही नहीं बल्कि पशुओं को भी शामिल किया। प्रभु श्रीराम में मैनेजमेंट की भी सारी स्किल्स थी। वह लीडर की भी भूमिका बखूबी निभाते नज़र आए। वक्त रहते उन्होंने हुनमान जी को निर्देशित करने के साथ सुशासन का भी पाठ पढ़ाया। हर जाति, हर वर्ग के साथ समानता का भाव रखा। फिर चाहे वह सुग्रीव रहे हो या केवट, विभीषण रहे हो। इतने बड़े राजा के बेटे होने के बाद भी उन्होंने शबरी के झूठे बेर खाए। इतनी सरलता आज के वक्त में असंभव है।
राम जी ने अपने परिवार से लेकर अपनी प्रजातक सभी से समानता का व्यवहार किया। इसके परिणाम स्वरूप राम जी के वनवास के दौरान उनके भाई भरत ने कभी भी राजा का दर्जा स्वीकार नहीं किया। बल्कि उनकी अनुपस्थिति में भरत ने राम जी की चरण पादुका को सिंहासन पर रखकर राज्य को संभाला। लक्ष्मण तो प्रभु श्रीराम के साथ ही वनवास पर चले गए थे।
भगवान श्री राम थे तो एक ही लेकिन सभी ने उन्हें अलग-अलग रूप में अपने साथ पाया। जी हां, हनुमान जी के लिए वह स्वामी, प्रजा के लिए वह न्याय प्रिय राजा, सुग्रीव और केवट के लिए वह परम मित्र तो भरत के लिए आदर्श भाई।
श्रीराम लला ने सिर्फ अपने गुणों से व्यक्तित्व और मानवता की पहचान कराई। इसलिए त्रेता युग में जन्मे राम लला को कलियुग में भी पूजा जा रहा है और उनके राम नाम से ही कष्टों का हरण हो रहा है।