लता जी : वसंत उदास कर गईं...

स्मृति आदित्य
सुर स्तब्ध,राग गमगीन, ताल लय सब भीगे नयन....संगीत की देवी ने वसंत का मौसम चुना अलविदा के लिए.... जैसे साक्षात सरस्वती आई हो लेने स्वर कोकिला को....एक आवाज जो भीतर तक जाकर सोए तार सप्तकों को झंकृत कर देती थी... एक आवाज जिसके होने से हम आश्वस्त थे कि जीवन का कोई आयोजन हो, मन का कोई मौसम हो....रुलाई फूट रही हो या झूम जाने का मन हो एक आवाज नेपथ्य से हमेशा उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए होगी....
 
जुबान पर कोई एक गाना लताजी का होगा ही....आज सब सन्नाटा है..शून्य है....बिखरा हुआ है..... मीठी सी वह तान साक्षात नहीं सुन सकेंगे अब हमारे कान.....लेकिन वे सिर्फ देह से मुक्त हुई हैं सच तो यह है कि वे यहीं हैं हर कहीं हैं....हम सबमें हैं हम सबके साथ हैं.... आह!! इस बार ये कैसा वसंत, कोयल का भी बैठा जा रहा कंठ....
 
उनका शालीन व्यक्तित्व, गरिमामयी मुस्कान,सादगीपूर्ण आचरण और फिर खिलखिलाती उनकी वो हंसी उन्हें सबसे अलहदा बनाती थीं.... विवादों में भी रहीं तो कभी अपनी भाषिक मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया....उन जैसे लोग सच में विरले होते हैं....बहुत खास और करोड़ों दिलों के पास होते हैं....
 
जब तक इस दुनिया में आवाज है,स्वर हैं, राग रागिनियां हैं....यह सुरीला नाम 'लता' हमेशा जिंदा रहेगा-.....
 
क्योंकि ऐसी 'लता' कभी नहीं मुरझाया करती है जिनकी आवाज उनकी पहचान हुआ करती है..... 
 
हर साल वसंत आएगा...कोयल कूकेगी,फूल मुस्कुराएंगे और आप बहुत शिद्दत से याद आएंगी....मानस में विराजित सरस्वती के साथ आपको भी शब्दों और सुरों के फूल अर्पित करेंगे... इस वक़्त शब्द थरथरा रहे हैं और पार्श्व में बज रहा है  ....मेरी आवाज ही पहचान है गर याद रहे.... अश्रुपूरित नमन स्वर कोकिला....

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