डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद हिलेरी क्लिंटन के शहर में एक शिक्षिका ट्रम्प विरोधी रैली में शामिल हुई, तो वहां के सरकारी अधिकारियों ने उस महिला के खिलाफ कार्रवाई की। कार्रवाई कुछ इस तरह हुई कि जब वो महिला स्कूल में पढ़ा रही थी, तभी उसे क्लास से बाहर कर दिया गया। शिक्षिका को कक्षा से बाहर करने के इस प्रकरण पर अमेरिका में सोशल मीडिया पर तूफान मच गया। फेसबुक पर ट्रम्प के समर्थकों ने लिखा कि ‘वह मोटी महिला अपने आप को समझती क्या है?’
मोटी महिला लिखे जाने से अमेरिका के तमाम सामाजिक क्षेत्रों में हड़कंप सा मच गया। हालत यहां तक हो गई कि महिलाओं ने मोर्चे निकालने शुरू कर दिए और यह नारा दिया कि महिलाओं का उत्थान ही देश का उत्थान है। अगर महिलाओं का भला नहीं सोच सकते, तो देश का भला कैसे सोच सकते हो। सोशल मीडिया पर उस कमेंट को लोगों ने बेहद अश्लील और फूहड़ माना। लगभग पूरा शिक्षा विभाग ही शिक्षिका के पक्ष में खड़ा हो गया है। चाहे नर्सरी के शिक्षक हो या विश्वविद्यालय के प्रोफेसर।
इसके विपरीत एक वर्ग ऐसा भी है, जो अभी भी यह मानता है कि डोनाल्ड ट्रम्प राजनैतिक रूप से सही हैं। सोशल मीडिया पर लोग अभी भी ट्रम्प के खिलाफ टिप्पणियां देने से नहीं हिचकते, जबकि वे राष्ट्रपति पद की शपथ ले चुके हैं। राष्ट्रपति के खिलाफ सोशल मीडिया पर कमेंट्स करने वालों के खिलाफ लगातार कार्रवाई की खबरें भी आ रही हैं। सेटर-डे नाइट के एक पत्रकार को नौकरी से निलंबित कर दिया गया, क्योंकि उसने ट्रम्प के दस वर्षीय पुत्र के बारे में अशोभनीय बातें लिखी थी, जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तब उसने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया और उसकी माफी भी मांग ली, लेकिन उसकी माफी को स्वीकार नहीं किया गया और नौकरी से निकाल दिया गया।
फेसबुक पर अमेरिका के लोगों की टिप्पणियां यह बताती हैं कि सहिष्णुता के मामले में अमेरिकी समाज भी पीछे नहीं है। इंडियाना राज्य के एक सेनेटर ने ट्रम्प की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा कि पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा की तुलना में और मोटी महिलाएं सड़कों पर घूम रही है और व्हॉइट हाउस की तरफ जा रही है।
अमेरिका में आजकल ट्विटर के खिलाफ ही आजकल बहुत सारे कई लोग लगातार टिप्पणियां कर रहे हैं। यह भी लिखा जा रहा है कि अब ट्विटर के बुरे दिन शुरू हो गए है। ट्रम्प के समर्थक इसे गलत कहते है और मानते है कि ट्विटर पर बढ़ती तवज्जो का श्रेय तो ट्रम्प को ही मिलना चाहिए। उन्होंने ही ट्विटर को संवाद का बेहतरीन माध्यम बनाया है। जो भी लोग चुने गए हैं, उनका बौद्धिक स्तर कम आंकना ठीक नहीं है।
सोशल मीडिया पर आंदोलन करने वाले शिक्षकों के खिलाफ की गई टिप्पणी के कारण स्कूल के प्रबंधकों की जान अटक गई है। एक अधिकारी को तो तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देना पड़ा है, जिसमें आंदोलनकारी शिक्षिका को ट्विटर पर ‘फार्स’ और ‘वजीना स्क्रीचर्स’ लिखा था। यह अधिकारी अब मीडिया से बचता फिर रहा है और अपने तमाम सोशल मीडिया पोस्ट डिलीट कर चुका है। दूसरे अधिकारियों ने कहा है कि शिक्षा विभाग के उस अधिकारी का हट जाना अन्य अधिकारियों के लिए भी एक अच्छा सबक है। हटाए गए अधिकारी के पक्ष में भी लोगों ने बयान दिए है। उनका यह कहना है कि अगर शिक्षिका को कक्षा से निकाला गया, तो इसका यह अर्थ न माना जाए कि शिक्षा का मूल्य खत्म हो चुका है या स्थानीय शिक्षा अधिकारी मामले की तह तक नहीं जा रहे है। ट्विटर पर की गई इन टिप्पणियों को शिक्षा विभाग ने महिला विरोधी मानने से इनकार किया। अधिकारियों का कहना है कि कुछ शिक्षिकाएं उनके साथ ब्लैकमेल करना चाहती है और वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
राजनीति विज्ञान के एक प्रोफेसर कॉर्नफील्ड ने इस पूरे मामले पर यह टिप्पणी की है कि ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद लोगों को अब धीरे-धीरे यह बात समझ में आ रही है कि सोशल मीडिया पर कभी भी अपनी जिम्मेदारी से आप बच नहीं सकते और शालीनता की सीमा में रहकर भी कोई भी टिप्पणी की जानी चाहिए। जब ई-मेल का दौर शुरू हुआ था, तब भी कई लोग ई-मेल पर बुरे शब्दों का इस्तेमाल करते थे, धीरे-धीरे वे थोड़े परिपक्व हुए और अब ई-मेल पर इस तरह की बातें नहीं लिखी जा रही है। जल्द ही लोग सोशल मीडिया के बारे में भी अपना नजरिया बदलेंगे और समझेंगे कि वहां इस तरह की बातें लिखना अच्छी बात नहीं है।