गति, सद्गति, दुर्गति

अनिल त्रिवेदी (एडवोकेट)

बुधवार, 24 जून 2020 (15:36 IST)
गति का शाब्दिक अर्थ है किसी स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की क्रिया। सद्गति यानी सदा चलते रहने वाला, जैसे सूर्य या हवा। दुर्गति का सामान्य अर्थ होता है बुरी गति या दुर्दशा। इस रूप में जीवन को समझें तो जीवन में भी हर पल यही क्रम दिखाई देता है। जन्म से मृत्यु तक जाने की क्रिया या बीज से अंकुरण, पौधे में रूपांतरण फिर फूल से फल और फल से पुन: बीज निर्माण की अंतहीन क्रिया भी जीवन की गति है।
 
गति को प्रवाह से भी समझा जा सकता है। जीवन का प्रवाह एक तरह से जीवन की सद्गति या दुर्गति का कारक बन जाता है। कभी-कभी यह भी लगता है कि जीवन का साकार और निराकार स्वरूप मूलत: प्रवाह ही है। जीवन में सबकुछ गतिशीलता आधारित है। स्थिरता या जड़ता का जीवन की गति पर गहरा प्रभाव पड़ता है। पर जीवन की ऊर्जा या प्रवाह में यह ताकत होती है कि स्थिरता या जड़ता एकाएक या धीरे-धीरे पुन: प्रवाहमान हो जाती है।
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प्रकाश और वायु की गतिशीलता सर्वकालिक है, पर विचार की गति का कोई माप नहीं है। विचार कब, क्या और कैसा रूप-स्वरूप धारण करेंगे, यह निर्धारित नहीं है। पर विचार ही हमारी गति, सद्गति और दुर्गति के निर्धारक होते हैं। हम सबके विचार और व्यवहार ही हमारे व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन की गतिशीलता के स्वरूप का निर्माण भी करते हैं। एक तरह से जीवन की गंभीर समझ हमें स्वयं और हमारे समकालीन तथा पूर्ववर्ती मनुष्यों के विचारों से ही प्राय: मिलती रहती है। जीवन की गतिशीलता का स्वरूप हर मनुष्य की सोच और समझ की गहराई पर निर्भर है।
 
हमारी इस धरती पर न जाने कितनी तरह के जीवों में जीवन का एक निश्चित प्रवाह है, पर हमारी धरती पर मनुष्य ने अपनी गतिशीलता को कई दिशाओं में बढ़ाया-घटाया है जिसका परिणाम जीवन की सद्गति और दुर्गति के रूप में या जीव के जीवन की असमय समाप्ति के रुप में अभिव्यक्त होता भी दिखाई पड़ता है।
 
मनुष्य ने भी नए-नए विचारों का बुद्धि और युक्ति के रूप में प्रयोग कर नए-नए साधनों का निर्माण एवं उपयोग करना सीख लिया है जिससे कि मनुष्य के जीवन की दशा और दिशा ही पूरी तरह बदल गई है। आज के कालखंड में मनुष्य जीवन गति का दिवाना हो चला है। उसे जीवन के हर आयाम में गति चाहिए।
 
आज के मनुष्य में पुराने काल के मनुष्य के मुकाबले धीरज और एकाग्रता में कमी दिखाई पड़ती है। हर बात में जल्दबाजी का व्यापक प्रभाव हम सब महसूस कर रहे हैं। कभी-कभी तो यह भी लगता है कि हम सब ऐसे साधनों के आदी होते जा रहे हैं, जो हमें फटाफट समाधान उपलब्ध कराए। आधुनिक साधनों के प्रयोग और गति वाले साधनों के बल से 1 जन्म में 2-3 या उससे भी ज्यादा जन्मों की जिंदगी में लगने वाले समय को इसी जन्म में हासिल कर जीना चाहते हैं।
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मनुष्य को इतनी अधिक गति वाले साधन आज के कालखंड में जिस सहजता, सरलता और सुलभता के साथ हर किसी को प्रचुरता के साथ उपलब्ध होने लगे हैं कि मनुष्य की जीवन को लेकर सोच-समझ और आचार-विचार ही एकाएक उलट-पलट गए हैं। तन और मन की एकाग्रता और धीरगंभीर, शांत, स्थानीय संसाधनों और अवसरों वाला पारिवारिक, सामाजिक लोकजीवन लुप्तप्राय श्रेणी की ओर चल पड़ा है। भागादौड़ी की भेड़चाल गतिशीलता की नई निशानी बनती जा रही है।
 
पेट्रोल और बिजली की खोज ने व्यक्ति और समाज में मनुष्य की प्राकृतिक गतिशीलता को शायद पहली बार तेजी से आगे बढ़ाया था, पर सूचना संसाधनों की 1-2 दशकों की गति की सुनामी ने मनुष्य की व्यक्तिगत और सामूहिक सोच, व्यक्तित्व और कृतित्व को जो गति प्रदान की है, वह हमें सद्गति की दिशा में ले जाएगी या हम सबको यांत्रिक सभ्यता का एक छोटा पुर्जा बनाकर मनुष्य जीवन की दशा और दिशा को बदल देगी।
 
यह सीधा सवाल हम सबके सामने है जिससे हम जूझ रहे हैं। पर हम सवाल को उलट-पलटकर देखने-समझने के बजाय इस सवाल को ही समाधान मानने लगे हैं। साथ ही जीवन की सनातन गति को सद्गति के बजाय यांत्रिक दुर्गति की ओर बावलेपन की हद तक अधीरे होकर ले जाने को जीवन की गतिशीलता समझने की शायद भूल कर रहे हैं।
 
तरंगों पर आधारित सूचना तकनीक ने मानव जीवन की संकल्पनाओं को एकाएक इस तरह बदल दिया है कि मनुष्य की दैनंदिन जीवन की अवधारणाएं बदल गई हैं। बिना गतिशील हुए बैठे-बैठे मनुष्य अपने अधिकांश कार्यों को संपादित करने की हैसियत पा गया, जो आज से पहले संभव नहीं थी।
 
तरंगों की तकनीक ने मनुष्य को यह ताकत दी कि दुनिया के किसी भी हिस्से में सशरीर गए बिना ही मनुष्य अपनी आभासी उपस्थिति से कार्य संपादित करने का कौशल पा गया है। यह कार्यक्षमता तत्काल जीवंत रूप में कर पाना मनुष्य की गतिशीलता की बड़ी छलांग है।
 
इस उपलब्धि ने मनुष्य जीवन के आचार, व्यवहार और विस्तार को वैश्विक रूप देने की आधारभूमि तैयार की है, पर साथ ही मनुष्य की व्यक्तिगत स्वाधीनता, निजता और मौलिकता के सामने गंभीर संकट भी उपस्थित किए हैं। इससे सारी दुनिया के लोग राज, बाजार और प्रचार तंत्र की जकड़बंदी की गिरफ्त में चाहे-अनचाहे उलझते जा रहे है। तरंगों की तकनीक का स्वरूप विश्वव्यापी है, तरंगों का विस्तार सीमा से परे है।
 
दिमाग की गतिशीलता के लिए दुनिया खुल गई है, फिर भी देश-विदेश में शरीर या नागरिकों की गतिशीलता पर कई तरह की पाबंदियां दुनिया के हर देश में देशी और विदेशी दोनों के लिए है। यह मनुष्य की गतिशीलता के इतिहास का अनोखा विरोधाभास है, जो मनुष्य के विचार, व्यापार और संवाद को तरंगों के माध्यम से करने की इजाजत देता है। पर मनुष्य की सशरीर गतिशीलता पर देश की सीमा के आधार पर नियंत्रण पर सब सहमत हैं, मनुष्य के विचार संवाद को तरंगों की तकनीक से करने की आजादी पर मनुष्य की गतिशीलता पर नाना प्रकार से नियंत्रण।
 
मनुष्य के जीवन की कल्पना में मनुष्य ने ही अंतहीन भेदों और नियंत्रणों को जन्म दिया जबकि प्रकृति ने धरती के हर जीवन को एक समान प्रकाश, वायु, भोजन और जीवन की निरंतर श्रृंखला उपलब्ध की, जो अपनी सनातन गति से चलती आई है और चलती रहेगी। पर मनुष्य की बुद्धि मनुष्य जीवन की गति को सद्गति और दुर्गति के बीच झुलाती रहती है। यही प्रकृति और मनुष्य की बुद्धि की प्रकृति की भिन्नता और अभिन्नता का अनूठा मेल है।

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