बेगुसराय की वो शाम: ‘सुहागन जाग जाएगी’, ‘किरदार बदल दे’ और दो डरावनी मृत्यु

रविवार, 1 मई 2022 (16:58 IST)
- राजीव कुमार
कोई शाम कैसे याद रह जाती है, कोई घटना क्यों जीवन भर झकझोरती है, किसी के चले जाने पर बहुत कुछ क्यूं गया गया सा लगता है, क्या एक ही शख्स होता है जहां में। बहुत लोग आपके आसपास ज़िंदा हैं। किसी एक का चेहरा, किसी का वजूद, किसी का तेज, किसी की आंखें कैसे छूट जाती हैं, उसके ना वापस आने की शर्त पर चले जाने के बाद भी।  क्यों कोई हरदम बचा रह जाता है स्मृतियों में।

हम कौन सी दुनिया में जीते है, कि छोड़ आते है आप जिसे खाक को सुपुर्द करके, कैसे आप उसी शख्स को दफन होने के बाद अपने आसपास नए सिरे से महसूस करने लगते हैं। किसी की गंध, छुअन, नमी, खुशबू, हंसी क्यों आपका पीछा करती है बरसों।

कोई खड़ा होता है आपके सामने आपको उसकी उपस्थिति अलग दिखती है। कोई बात करता है आपसे, आप विस्मय से कभी उसे, कभी खुद को देखते है इस हर्ष के साथ कि मैं वर्तमान भारतीय सिनेमा के बहुत ही बड़े अभिनेता, दुनिया जिसकी अदाकारी का लोहा मानती है, से बात कर रहा हूं।

मेरे छोटे भाई संजीव कुमार की वजह से मुझे बेगूसराय की वह यादगार शाम नसीब हुई। जो शाम इरफान खान के गुजरने के बाद अजीब ढंग से याद आ रही है।

शूटिंग के बाद शाम में बेगूसराय के होटल युवराज में महफ़िल जमी। इरफ़ान खान, संजीव, असीम बजाज बहुत बड़े फोटोग्राफी निदेशक, अनिल पाटिल, कुछ सीनियर कलाकार और मैं था, हर चीज पर चर्चा हो रही थी। थोड़ी देर में ईश्वर ने महफ़िल मेरी झोली में डाली। मैंने शूटिंग के दौरान इरफ़ान की प्रशस्ति में पानसिंह तोमर के बेस्ट सीन पर कुछ पंक्तियां लिखी थीं वो सुनाई। इरफ़ान का ध्यान मुझ पर आया।

सुहागन जाग जाएगी...
 उन्होंने मुझसे कहा कि आपने ही ‘सुहागन जाग जाएगी’ गाना लिखा है मैंने कहा हां। यह गाना बनकर तैयार हुआ था फिल्म ‘अशोक सम्राट’ के लिए जो इरफ़ान पर ही फिल्माया जाना था। उस गाने का महत्त्व क्या है,  इरफ़ान ने पूछा और कहा हालांकि संजीवजी ने बताया है मुझे, लेकिन संजीवजी ने यह भी कहा कि भैया ज़्यादा बेहतर एक्सप्लेन कर पाएंगे।

मैंने समझाना शुरू किया। हिन्दू धर्म में सुहागन के मृतक होने पर उसके दाह संस्कार का व्यवहार किसी विधवा के मरने से अलग हो जाता है। घर से उसकी अर्थी उसे फिर से दुल्हन बनाकर निकाली जाती है। यह उस नारी और उसके सुहागन रूप के लिए उसके परिवार और परंपरा का अतिशय सम्मान है।

हिन्दू धर्म विवाह, वैवाहिक आचार व्यवहार और परिणीता के संस्कारों पर बहुत विशद चिंतन करता है। यह विशद चिंतन प्राचीन ग्रीक सभ्यता और बाईजांटाइन साम्राज्य में भी नहीं था।

रोमन साम्राज्य में स्त्री की साज-सज्जा पर तो ध्यान था, उसका सौन्दर्य काम्य था, परन्तु उसके वैवाहिक जीवन और सुहाग से जुड़ी इतनी बारीकियां नहीं थीं।

हिन्दू धर्म ने लाल रंग को प्रेम और विवाह और वैवाहिक आचार व्यवहार का रंग ही बना दिया,  महावर, कुमकुम, सिंदूर, पायल, हर अंग के अलग जेवर, कपड़े की विशिष्टता, अक्षत, चंदन, रोली, लाल चुनरी इतना परिसंस्कृत उपादान जुड़ा हुआ है इससे कि सब कुछ अलग हो जाता है एक स्त्री का उसके विवाह के बाद।

मृतक को अतिशय सम्मान के साथ विदा करना हर धर्म में है। हिन्दू धर्म में परिणीता की मृत्यु बेहद सम्मानित है। इरफ़ान समझ चुके थे।

किरदार बदल दे...
बात अशोक सम्राट के जीवन पर आ गई। कहानी में जो सबसे भयानक मोड़ है बात वहां चली गई। जब सब कुछ गंवाने लगता है नायक, हर अजीज उसके उसे छोड़ दुनिया से जाने लगते हैं तो वह विक्षिप्तता की स्थिति से गुजर रहा होता है।

बेगुसराय के इतिहास के सबसे बड़े अपराधी को उसकी दुनिया खुद ही वीरान दिखती है। मैंने कहा मेरा नायक यहां निर्देशक द्वारा अलग से व्यवहृत हो। नायक देवी का भक्त है और संभाषण वह ईश्वर से करता है, अब और नहीं मुझे या तो ले चल या मेरा किरदार बदल दे, मुझे कहीं भी अलग कर दे अब इस जीवन से। मेरा किरदार बदल दे, इरफ़ान को यह पूरा कॉन्सेप्ट कैची लगा।

कृष्ण का विराट स्वरूप...
बात महाभारत पर आ गई। कर्ण के किरदार पर। महफ़िल राजीव कुमार की झोली तक पहुंच गई थी। दिनकर की रश्मिरथी मुझे पूरी पुस्तक याद है। मैंने कई प्रसंग छिटपुट ढंग से सुनाए। इरफ़ान और महफ़िल के अन्य सदस्यों की आंखें खुशी का इजहार कर रही थीं। कृष्ण के विराट स्वरूप को इरफ़ान ने ही छेड़ा। मैंने कहा आप शूटिंग से बहुत अधिक नहीं थक गए हैं और आपके पास समय हो तो रश्मिरथी का तृतीय सर्ग मैं सुना सकता हूं। पैंतालीस मिनट लग जाएंगे। इरफ़ान ने हामी भर दी।

वो अतिशय गर्मी का दिन था। मेरी तबियत थोड़ी खराब भी थी। मैंने अपने को दम साधकर ठीक किया और रश्मिरथी के तृतीय सर्ग का मुंहजबानी पाठ अपनी स्मृति से करने लगा। बीच बीच में इरफ़ान रोकते भी थे पंक्ति और उससे जुड़े गहन अर्थ को समझने की कोशिश भी करते थे। हर पंक्ति पर इरफ़ान की आंखें मुझे आशीष देती, चमकती, कई मिश्रित भाव से भरी होती, दुनिया का सबसे बड़ा अभिनेता उसी दिन से मैं इरफ़ान की आंखों को ही मानता हूं।

ईश्वर ने कैसी संपदा उसे उन आंखों के रूप में दी थी। वो आंखें लिए चला गया। संसार जाने वाले से उसकी सबसे बड़ी धरोहर वो आंखें नहीं मांग सका। पीढ़ियां देखती और कहती देखो एक महान अभिनेता के पास ऐसी जीवंत संवाद करती आंखें थीं।

कृष्ण के विराट स्वरूप के वर्णन को वह बहुत समय देकर सुनते रहे। मैंने अनेकों बार रश्मिरथी के किसी ना किसी सर्ग का पाठ किया है, लेकिन वह मेरी सर्वश्रेष्ठ शाम थी।

इरफ़ान ने इच्छा व्यक्त की कि मुझे इस सर्ग की कॉपी चाहिए। मैंने सिमरिया गांव की लाइब्रेरी से किताब मांगकर इरफ़ान को तृतीय सर्ग का फोटो स्टेट भेंट की। इरफ़ान से उसके बाद छोटे भाई संजीव की फिल्म 'मदारी' के प्रीमियर पर ही भेंट हुई। उस दिन उन्होंने ही उस शाम का ज़िक्र दोबारा किया।

दो दो डरावनी मृत्यु...
कल से जब इरफ़ान जा चुके हैं, एक अजीब बात कौंध रही है। रात भर मैं सो नहीं पाया। आज ऑफिस भी जाना है।

मेरी उस सर्वश्रेष्ठ शाम में दो विचित्र बातें जीवन में बहुत विचित्र ढंग से दोबारा अपने भयानक परिणाम के साथ सिर्फ छह महीने के अंतराल पर घटी। मैंने स्वयं लिखित गाना ‘सुहागन जाग जाएगी’ का संदर्भ बहुत विस्तार से वर्णित किया था उस दिन। मुझे पता नहीं था, मेरी कथा की मृतक सुहागन की अर्थी मेरे ही घर से उठेगी। पिछले 22 नवंबर, 2019 को मेरी पत्नी की अर्थी मेरे ही घर से उसी सुहागन की तरह सज कर निकली। ईश्वर कहां से क्या जोड़े रहता है।

‘मेरा किरदार बदल दे’ गाने में, जो गाना बन नहीं सका, जिसकी अलग दास्तान है, नायक अपना किरदार बदलने की ख्वाहिश करता है ईश्वर से। यहां तक कि आजिज होकर कहता है नहीं संभव है किरदार बदलना तो मुझे मार ही दे, ले चल मुझे।

उस नायक का एक अभिशप्त आभासी आवाहन किस रूप में और कहां। इरफ़ान अपना किरदार बदलवाने में सफल हो गए। उस शाम से जुड़ी दूसरी बात मृत्यु की शक्ल में। ईश्वर यह इत्तेफाक़ है क्या। या दो बड़ी हृदय विदारक घटनाओं का पूर्वाभास।

उनके हिस्से का अभिनय अब किसी और को करना है, संवाद कोई और बोलेगा, जीवन के गूढ़ और जटिल प्रसंगों को कोई और जिएगा। किरदार आपका बदल गया इरफ़ान। अब आप दिवंगत हो गए। आपके जिए हुए किरदार में आप फिर भी जीवित रहेंगे।

‘किरदार बदल दे’ गाना तो बन नहीं सका, उसके बाद हमारे ऊपर कैंसर का गहन साया मंडराता रहा, पर कल से आज तक में एक कविता बन गई। यह कविता मेरे लिए उस महान कलाकार को दी गई एक श्रद्धांजलि बनकर रहेगी।

(राजीव कुमार वरिष्‍ठ कवि और लेखक हैं। वे डिजीटल साहित्‍यिक मैगजीन सुचेता डॉट कॉम का संचालन भी करते हैं और नई दिल्‍ली में निवास करते हैं) 

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