किन्नर सभी जगह एक समूह बनाकर रहते हैं। इनके आपसी व्यवहार की बात ही निराली होती है। एक किन्नर दूसरे किन्नर के यहां मेहमान बतौर आता-जाता रहता है। वे इस प्रक्रिया को मेहमाननवाजी की तरह निभाते आ रहे हैं और आने वाले मेहमान किन्नर का स्वागत और बिदाई जी-जान से करते हैं।
मेहमान किन्नर को विदा करते समय इनकी आंखों में आंसू देखे गए हैं। वे कहते हैं कि बस ये ही तो हमारा परिवार है, जहां पर हम एक-दूसरे के सुख-दु:ख में सम्मिलित होते रहते हैं। किन्नरों का सम्मेलन भी होता रहता है, जहां वे अपने मुखिया किन्नर के समक्ष अपनी समस्या को रखते हैं। सिंहस्थ में किन्नर अखाड़ा भी है।
फिल्म 'कुंवारा बाप' में ये गीत काफी चर्चित हुआ था- 'सजी रही गली मेरी...'। जब कहीं पहली संतान होती है, तो वे वहां पहुंचकर व नाच-गाकर कर नेग मांगते हैं एवं बधाई पर बच्चे के लिए ऊपर वाले से दुआ भी मांगते हैं। सवाल ये है कि अधिकांश आवेदन में महिला-पुरुष का उल्लेख तो रहता है किंतु किन्नर का उल्लेख नहीं मिलता है, ऐसा क्यों? इनसे समाज की दूरियां भी समझ में नहीं आती। महिला-पुरुष इनसे दूरियां बनाकर रहते हैं जबकि वे भी इंसान हैं। धरती पर इनका भी अधिकार है।
थर्ड जेंडर को अब तक सामाजिक और पारिवारिक सहयोग पूर्ण रूप से नहीं मिल पाया है। थर्ड जेंडर का मालूम होते ही इनके समुदाय में किन्नरों द्वारा शामिल किया जाता है। पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते छोड़कर इनको जाना होता है। कई किन्नर इतने सुन्दर होते हैं कि फिल्मी हीरोइन भी उनके सामने कुछ नहीं है। कहते हैं कि इनकी दुआएं काफी असरदार होती हैं।
अपनी आजीविका ये नाच-गाकर ही चलाते हैं। इन्हें सुविधाएं प्रदान कर इनकी समस्याओं का निदान होना चाहिए। जो हक महिला-पुरुष को प्राप्त है, वैसा ही हक थर्ड जेंडर को भी मिलना चाहिए। उनकी अपनी दुनिया है। भागदौड़भरी दुनिया में उनकी समस्याओं को अनदेखा न करें, आखिर वे भी तो इंसान हैं।