बसंत : सकारात्मक ऊर्जा की मोहक ऋतु

वसंत ऋतु सुनते ही कानों में नवरस घुल जाता है। यह भारत देश में हिन्दू पंचांग के माघ मास से प्रारंभ होने वाली ऋतु है। आंग्ल मास के अनुरूप इसका समयचक्र फरवरी, मार्च व अप्रैल के मध्य होता है। 
 
माघ मास की पंचमी अर्थात् वसंत पंचमी से यह ऋतु प्रारंभ होती है। इस पंचमी पर ही सब प्रकार के ज्ञान, कलाएं, नृत्य, संगीत व सकल सिद्धी प्रदान करने वाली माँ सरस्वती का प्राकट्योत्सव, ब्रह्मा जी के मुख से ॐ उच्चारण से हुआ था, ऐसी मान्यता वेद-पुराणों में उल्लेखित है। इसलिए पंचांग के अनुसार वसंत पंचमी को श्री शारदे प्रकटोत्सव के रूप में मनाए जाने की परंपरा है। 
 
यह दिन अपने आप में सिद्ध दिवस होने से सनातनी धर्मावलंबियों द्वारा देवी सरस्वती जी की विशेष पूजा-आराधना की जाती है। साथ ही सभी प्रकार की विद्याएं व कलाओं की ज्ञानप्राप्ति को आरंभ करने का भी इसे शुभ दिन माना जाता है।
वहीं पौराणिक मान्यताओं में वसंत को कामदेव के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। कवि देव ने वसंत ऋतु हेतु कहा है कि-"रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही प्रकृति झूम उठती है। पेड़ उसके लिए नव पल्लव का पालना डालते है। फूल वस्त्र पहनाते हैं, पवन झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है।" इसलिए वसंत का संबंध कामदेव से होने के प्रमाण मिलते है। तभी इस दिन बिन मुहूर्त के प्रणय सूत्र में बंधने का विधान भी है। 
 
वहीं वसंत में ही देवों के देव महादेव और जगजननी पार्वती का विवाहोत्सव महाशिवरात्रि पर्व के रूप में आता है। इस दिन शिवमंदिरों में अतिविशेष पूजाएं व रात्रि जागरण कर उल्लास मनाया जाता है। 
 
इसके अतिरिक्त भगवान श्री कृष्ण ने गीता के उपदेश में कहा है कि - "ऋतुओं में मैं वसंत हूँ।" वसंत ऋतु में ही फाल्गुन पर्व मथुरा, वृन्दावन व बरसाने में अति उत्साह से मनाया जाता है। इसी ऋतु में फाल्गुन मास के अंतिम दिवस होली-धुलेड़ी पूरे देश में अभूतपूर्व उत्साह के साथ मनाई जाती है।  
 
वसंत ऋतु भारत और उसके निकट देशों की छह ऋतुओं में से एक जो ऋतुराज की संज्ञा से विभूषित है। इसे मात्र धार्मिक पर्वो के कारण ही मौसमों का राजा होने से ऋतुराज नहीं कहा जाता बल्कि इस समय प्रकृति में होते सकारात्मक आमूलचूल परिवर्तन स्वतः ही जीवन को नई ऊर्जा से भरते है। 
 
वसंत यानी वह ऋतु जिसमें शीतलता तो कम है पर ग्रीष्म की भी अनुभूति नहीं। इसलिए यह मधुमास है। जिसमें प्रकृति भी समभाव से नवसृजन में कलात्मकता दिखाती है। सूर्य की किरणें निखर उठती है। रात्रि छोटी हो जाती है और दिनमान के छोर बढ़ जाते है वहीं नव अंकुरण से प्रकृति की हरितिमा, वृक्ष-लताओं के श्रृंगार, आम के वृक्षों पर लदे मोर, दहकते पलाश, फलते सेमल, केशर की उड़ती सुरभि, महकते महुआ, पीली सरसो से भरे खेत-खलियान, विभिन्न रंगीन फूलों की सुंदरता और सुंगध से सराबोर उद्यान, मोर के नृत्य, तितलियों के रंग, भँवरों की भ्रमर, कोयल की कूक तो अन्य पशु-पक्षियों के गुंजित होती राग रागिनी, वहीं सरोवर में खिलते कमल, नदियों की लहरों पर पड़ती स्वर्णिम आभा में मनमोहित हो जाता है। 
 
इसी नवयौवन से युक्त ऋतु में धरती का सुनहरा आँचल तन-मन और मस्तिष्क नव उल्लास, उमंग, उत्साह से भर देता है।
 
वसंत ऋतु सम्पूर्ण वर्ष की एक ऐसी ऋतु है जिसमें वातावरण में संतुलित तापमान सुखद अनुभूति कराता है। इस मास में त्रिदेव व उनकी शक्तियों से संबंधित सुखद पर्व आते है। भारतीय कलाओं, गीत, संगीत ,साहित्य में भी इस ऋतु को विशेष सम्मान प्राप्त है। वसंतऋतु की समानता व बहार हम सभी के जीवन में सकारात्मक सुख तथा उन्नति लाए। शुभ वसंत ऋतु।
 
©®सपना सी.पी.साहू "स्वप्निल"

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