फूल पर कविता : हर पल मुस्कुराए

पुष्पा परजिया 
 
 तू ही तू सजता शादी के मंडप में 
कहीं तू रचता दुल्हन की मेहंदी में 
कहीं सजता तू दूल्हे के सेहरे में 
कहीं बन जाता तू शुभकामनाओं का प्रतीक
तो कहीं तुझे देख खिल उठती तक़दीर 
कहीं कोई इजहारे मुहब्बत करता ज़रिये से तेरे
तो कहीं कोई खुश हो जाता मजारे चादर बनाकर 
कहीं तेरे रंग से रंग भर जाता महफ़िलों में 


 
तो कहीं तू सुखकर बीती यादें वापस ले आता 
जब पड़ा होता बरसों किताबों के पन्नों में 
सूखने के बाद भी हर दास्तां ताजा कर जाता 
तुझे देख याद आ जाता किसी को अपना प्यारा सा बचपन 
तो कहीं तेरी कलियां दिखला देतीं खुशबुओं के मंजर
कभी तो तू भी रोता तो होगा क्यूंकि,
जब भगवन पर तू चढ़ाया जाने वाला,
कभी मुर्दे पर माला बनकर सजता होगा 
शायद फूलों को बनाकर ईश्वर ने इंसान को,
दिया संदेश यह 
जीवन में हर पल न देना,
साथ सिर्फ खुशियों का तुम 
लगा लेना ग़म को भी कभी गले से और,
दुखियों के काम आ जाना 
जैसे फूल कहीं भी जाए 
कांटों में रहकर भी वह हरपल मुस्कुराए,हर पल मुस्कुराए 
यहां तक की, जब बिछड़े वह अपने पेड़ से फिर भी वह दूसरों की शोभा बढ़ाए  
सदा मुस्कुराए इंसान के मन को भाए ..

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