दुनियाभर में मधुमेह का खतरा लगातार बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ इस समय दुनियाभर में 24 करोड़ 60 लाख लोग मधुमेह से पीड़ित हैं और वर्ष 2025 तक यह तादाद बढ़कर 38 करोड़ को पार कर जाएगी। अकेले भारत में क़रीब चार करोड़ मधुमेह के मरीज हैं और 2025 तक सात करोड़ होने की आशंका है। हर दसवें सेकेंड में मधुमेह से एक व्यक्ति की मौत होती है और तीसवें सेकेंड में एक नया व्यक्ति इसकी चपेट में आता है।
ग़ौरतलब है कि हर साल 14 नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस मनाया जाता है। 14 नवंबर को फ्रैडरिक बेंटिग का जन्मदिन है, जिन्होंने चार्लीज हर्बर्ट बेस्ट के साथ मिलकर 1921 में इंसुलिन की खोज की थी। उनके इस योगदान को याद रखने के लिए इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (आईडीएफ) द्वारा 1991 से हर साल 14 नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस मनाने की प्रथा शुरू की गई। इस दिन दुनिया के 140 देशों में कार्यक्रमों का आयोजन कर जनमानस को मधुमेह के प्रति जागरूक किया जाता है। हर साल इसकी थीम अलग रहती है।
साल 1991 में इसकी थीम थी- मधुमेह पर जनता को जागरूक करें। साल 1992 में मधुमेह विश्वव्यापी एवं सभी उम्र की समस्या, 1993 में किशोरावस्था में मधुमेह की देखभाल, 1994 में बढ़ती उम्र मधुमेह का रिस्क फैक्टर है, इसे कम कर सकते हैं, 1995 में बिना जानकारी मधुमेह के मरीज का भविष्य खतरे में होगा, 1996 में इंसुलिन ही जीवन का अमृत है, 1997 में विश्वव्यापी जागरूकता जरूरी है, 1998 में मधुमेह मरीजों के अधिकार सुरक्षित हैं, 1999 में मधुमेह के कारण राष्ट्रीय बजट पर खतरा है, 2000 में सही जीवन शैली से रोकें मधुमेह को, 2001 में मधुमेह में करें हृदय की देखभाल, 2002 में मधुमेह में करें आंखों की देखभाल, 2003 में मधुमेह मरीजों को गुर्दे की खराबी पर जागरूक करें, 2004 में मोटापा छुड़ाएं, मधुमेह से बचें, 2005 में मधुमेह में पैरों की देखभाल जरूरी है, 2006 में बच्चों को मधुमेह से बचाएं, 2007 में 264 क़दम चलें, 2008 में अब कुछ अलग कर दिखाने का समय है।
बच्चों और किशोरों को मधुमेह से बचाएं और 2009 से 2010 तक मधुमेह की शिक्षा व रोकथाम से संबंधित हैं। विश्व मधुमेह दिवस 2021-23 का थीम डायबिटीज केयर तक पहुंच, अगर अभी नहीं, तो कब? है। संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पारित कर साल 2007 में मधुमेह अभियान के लिए एक लोगो जारी किया गया था। यह लोगो नीले रंग का है, जो वैश्विक मधुमेह समाज की एकता को प्रदर्शित करता है।
चिकित्सकों के मुताबिक़ मधुमेह तीन प्रकार का होता है, टाइप 1 डायबिटीज, टाइप 2 डायबिटीज और गर्भावधि मधुमेह। यह एक असंक्रामक रोग है। इसमें रोग का प्रभाव जब शरीर के लिए लड़ने वाले संक्रमण, प्रतिरक्षा प्रणाली के खिलाफ होता है तो उसे टाइप 1 डायबिटीज कहा जाता है। टाइप 2 डायबिटीज सामान्य मधुमेह है। क़रीब 95 फीसद लोग इससे पीड़ित हैं। यह वृद्धावस्था में पाया जाता है। 80 फीसद से ज्यादा टाइप 2 डायबिटीज के मामले मोटापे की वजह से होते हैं, जो मधुमेह संबंधी मौत का कारण भी बनते हैं।
बीएमआई और टाइप 2 डायबिटीज के बीच उतार चढ़ाव वाला संबंध है। सबसे कम खतरा उनमें होता है जिनका बीएमआई यानी शरीर का वजन और लंबाई का अनुपात 22 किलोग्राम/2 होता है। अगर बीएमआई 35 किलोग्राम/एम2 से ज्यादा होता हो तो उनमें मधुमेह का खतरा 61 साल की उम्र तक रहता है।
यह खतरा बैठकर जिन्दगी बिताने वालों में बढ़ सकता है, जबकि व्यायाम करके इसमें कमी लाई जा सकती है। महिलाओं में 18 की उम्र और पुरुषों में 20 के बाद वजन के बढ़ने से टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। द नर्सेज हेल्थ स्टडी में 18 की उम्र के बाद जिन महिलाओं का वजन स्थिर यानी जिन्होंने 5 किलोग्राम वजन या इससे कम बढ़ाया या फिर वजन कहीं ज्यादा बढ़ाया, दोनों में तुलना की गई।
जिन महिलाओं में वजन 5 से 7.9 किलोग्राम बढ़ा उनमें डायबिटीज का खतरा 1.9 गुना बढ़ा और जिन महिलाओं में 8 से 10.9 किलोग्राम वजन बढ़ा उनमें यह खतरा 2.7 गुना ज्यादा हो गया। इसी तरह पुरुषों पर भी अध्ययन किया गया। थोड़े से वजन बढ़ने पर भी मधुमेह का खतरा बढ़ता देखा गया। वजन बढ़ने का मतलब भविष्य में मधुमेह की समस्या के रूप में देखा गया।
टाइप 2 डायबिटीज वाले उच्च आशंकित समूह वाले भारतीयों में वजन धीरे-धीरे 30 किलोग्राम तक बढ़ जाता है यानी यह 60 से 90 पहुंच जाता है, जिससे सालों तक उन्हें डायबिटीज से जूझना होता है। इसके विपरीत वजन में कमी करने से टाइप 2 डायबिटीज का खतरा कम होता है। मोटापे के साथ ही इंसुलिन में रुकावट व हाइपर इंसुलिनेमिया मोटापे से होता है और हाइपरग्लाइसेमिया से पहले ही नजर आ जाता है।
मोटापे की वजह से ग्लूकोज गड़बड़ा जाता है और इंसुलिन रुकावट बढ़ जाती है जिसकी वजह से हाइपरइंसुलिनेमिया की समस्या होती है। हाइपर इंसुलिनेमिया में हीपेटिक वेरी लो डेंसिटी ट्राइग्लिसराइड सिंथेसिस, प्लास्मिनोजेन एक्टिवेटर इनहिबिटर-1 सिंथेसिस, सिम्पैथिक नर्वस सिस्टम एक्टिविटी और सोडियम रीएब्जार्पशन का घनत्व बढ़ने लगता है।
इन बदलावों की वजह से मोटे लोगों में हाइपलीपीडेमिया और हाइपरटेंशन की समस्या होती है। कुछ महिलाओं में गर्भावधि मधुमेह गर्भावस्था में देर से विकसित होता है। हालांकि शिशु के जन्म के बाद यह प्रभाव खत्म हो जाता है। इस मधुमेह का कारण गर्भावस्था में हार्मोन्स का असंतुलन या इंसुलिन की कमी से होता है।
क़ाबिले-ग़ौर है कि साल 1924 में पहली बार इंसुलिन का इस्तेमाल मधुमेह पीड़ित 14 वर्षीय लोनार्ड थाम्सन के इलाज में किया गया। जिन मरीजों में इंसुलिन नहीं बनता, उनमें दवाइयों के जरिये इसे बनाया जाता है। जिन मरीजों में इंसुलिन बनता है, लेकिन काम नहीं करता, उनमें दवाइयों के जरिये इंसुलिन को सक्रिय किया जाता है। चिकित्सकों का कहना है कि खून में शुगर की मात्रा अगर 126 प्वाइंट या इससे ज्यादा है तो इसे मधुमेह माना जाता है, जबकि 98 प्वाइंट के नीचे हो तो इसे सामान्य माना जाता है।
अगर शुगर की मात्रा 98 प्वाइंट और 126 प्वाइंट के बीच है तो इसे प्री-डायबिटीज स्टेज माना जाएगा। मधुमेह एक ऐसा रोग है जिसमें मेटाबॉलिज्म और हारमोन असंतुलित हो जाता है। यह एक कॉम्पलैक्स डिसऑर्डर है। थकावट, वजन बढ़ना या कम होना, बेहद प्यास लगना और चक्कर आना इसके लक्षण हैं। मधुमेह आनुवांशिक हो सकता है, लेकिन खान-पान का विशेष ध्यान रखकर इसे क़ाबू किया जा सकता है। बदलते लाइफ स्टाइल और फास्ट फूड की बढ़ती दीवानगी मधुमेह को बढ़ावा दे रही है।
खाने में अत्यधिक वसा, कोल्ड ड्रिंक्स और एल्कोहल से मोटापा बढ़ रहा है, जिससे मधुमेह की आशंका बढ़ जाती है। एल्कोहल हार्मोन असंतुलन को बढ़ाती है और इससे भी मधुमेह का खतरा पैदा हो जाता है। मधुमेह को खत्म करने का अभी तक कोई इलाज नहीं है। जो इलाज है वह सिर्फ इसे नियंत्रित करने तक ही सीमित है। इसलिए बेहतर है कि इससे बचा जाए। व्यायाम और खान-पान पर विशेष ध्यान देकर मधुमेह के खतरे को कम किया जा सकता है।
(लेखिका स्टार न्यूज एजेंसी में संपादक हैं)
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