कभी स्वच्छता के नाम पर तो कभी धर्म और मान्यताओं के नाम पर हम जल को अतना प्रदूषित कर गए, कि उसे पुन: स्वच्छ करना ही हमारे बस की बात न रही। पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा जलमग्न है, फिर भी करीब 0.3 फीसदी जल ही पीने योग्य है। विभिन्न उद्योगों और मावन बस्तियों के कचरे ने जल को इतना प्रदूषित कर दिया है कि पीने के करीब 0.3 फीसदी जल में से मात्र करीब 30 फीसदी जल ही वास्तव में पीने के लायक रह गया है। निरंत बढ़ती जनसंख्या, पशु-संख्या, ओद्योगीकरण, जल-स्त्रोतों के दुरुपयोग, वर्षा में कमी आदि कारणों से जल प्रदूषण ने उग्र रूप धारण कर लिया और नदियों एवं अन्य जल-स्त्रोतों में कारखानों से निष्कासित रासायनिक पदार्थ व गंदा पानी मिल जाने से वह प्रदूषित हुआ।