एक बार गुरु नानक बगदाद गए हुए थे। वहां का शासक बड़ा ही अत्याचारी था। वह जनता को कष्ट तो देता ही था, उनकी संपत्ति लूटकर अपने खजाने में जमा भी कर लिया करता था। उसे जब मालूम हुआ कि हिंदुस्तान से कोई साधु पुरुष आया है तो वह नानकजी से मिलने उनके पास पहुंचा।
'आपके पूर्व ही मेरी मृत्यु होगी। मेरे मरणोपरांत, इस संसार में आपकी जीवन यात्रा समाप्त होने पर जब आप मुझसे मिलेंगे, तब इन पत्थरों को मुझे दे दीजिएगा,' नानक बोले।
नानक ने कहा, 'मुझसे क्षमा क्यों मांगते हो और मैं कौन होता हूं क्षमा करने वाला। वैसे भी तुमने मुझे को कोई कष्ट दिया नहीं कि तुम मुझसे क्षमा मांगो। अगर क्षमा मांगनी ही है तो अपने देश की जनता से मांगो जिसका तुमने खून चूसा है। तुम यदि समझ रहे हो कि तुमने गलत किया है तो वचन दो कि आज के बाद कभी अपनी प्रजा को कष्ट नहीं दोगे।'