लगातार दूसरी सर्दी में टिके रहने की तैयारियों का जायजा लेने के लिए सेनाध्यक्ष एमएम नरवणे दो दिनों से लद्दाख में ही डेरा डाल जवानों का उत्साह बढ़ा रहे हैं, पर उनकी चिंता का कारण भी चीनी सेना की अतिक्रमणकारी नीतियां हैं, जिसमें वह समझौतों और वायदों के बावजूद लगातार भारतीय इलाकों में अतिक्रमण कर रही है।
पिछले साल मई महीने में जब चीनी सेना द्वारा लद्दाख के हजारों किमी इलाके पर कब्जे की खबरें आई तो आनन-फानन में लद्दाख सेक्टर में एलएसी पर करीब दो लाख फौजियों को तैनात कर दिया गया। हालांकि गलवान वैली में एक भीषण मुठभेड़ को छोड़ कोई हिंसा की वारदात तो सामने नहीं आई, पर उकसाने वाली कार्रवाइयों के किसी भी समय खूनी संघर्षों में बदल जाने का डर अभी भी बना हुआ है।
कई दौर की वार्ताओं के बाद चीनी सेना कई इलाकों से पीछे हटने को मान गई। उसने कुछ इलाकों से ऐसा नाटक करते हुए अपने ढांचों को ढहा भी दिया पर ताजा खबरें कहती हैं कि वह उन सभी इलाकों में मात्र कुछ दूरी पर फिर आकर जम चुकी है जहां से दोनों पक्षों ने अपने सैनिक पीछे हटाने के समझौते किए थे। नतीजतन भारतीय पक्ष को भी अब सधे हुए कदमों से पुनः तैनाती करनी पड़ रही है।
लद्दाख से मोर्चे की दो अन्य खबरें चिंता में डालने वाली भी हैं। पहली यह कि भारतीय सेना अभी भी कई इलाकों में गश्त इसलिए नहीं कर पा रही है, क्योंकि चीनी सेना के साथ हुए समझौतों के बाद कई इलाके बफर जोन में बदल दिए गए। इनमें विशेषतः देपसांग, हाट स्प्रिंग्स, दमचोक और कोग्का ला दर्रे शामिल हैं, जहां गश्त न होने से भारतीय सेना नुकसान में जा रही है। जबकि शून्य से 40 से 50 डिग्री नीचे तापमान में दोनों ओर से सैनिकों की लगातार अदला-बदली की जा रही है।