राम वन गमन पथ पर भगवान राम से जुड़े 8 प्रमुख स्थान

सोमवार, 28 अप्रैल 2025 (16:55 IST)
-दिलीप कर्पे
Ram Van Gaman Path: श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास दिल्ली की दो दिवसीय राष्ट्रीय बैठक व सम्मेलन 19 व 20 अप्रैल को अयोध्या के कारसेवकपुरम में सम्पन्न हुआ। इसमें भाग लेने के लिए भारत के लगभग सभी प्रांतों व नेपाल के प्रतिनिधि मिलाकर 150 से अधिक क्षेत्रीय समितियों के संयोजक आए। इस राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय ने भारत में श्रीराम वनगमन तीर्थों की पहचान, इनके संरक्षण और विकास में इन तीर्थों के शोधकर्ता डॉ. रामअवतार के योगदान को ऐतिहासिक बताया।

उन्होंने कहा कि अभी बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहां शोध की आवश्यकता है। इनके विकास के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि, शासन व प्रशासन के सहयोग से इन्हें विकसित किए जाने की आवश्यकता है। धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं को भी इस कार्य से जुड़ना होगा जब यात्राएं बढ़ेंगी, व्यवस्था भी बेहतर होगी, महत्व भी बढ़ेगा तभी लक्ष्य भी पूर्ण होगा।
 
इस अवसर पर श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के संस्थापक और प्रबन्ध न्यासी तथा भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के रामायण सर्किट के अध्यक्ष डॉ. राम अवतार ने कहा कि यह राष्ट्रीय सम्मेलन में न्यास द्वारा अयोध्या में बनाये जा रहे भव्य अंतरराष्ट्रीय श्रीराम संग्रहालय की स्थापना की जा रही है इस से जुड़े विषयो पर शोधकर्ता, विशेषज्ञ व जमीन से जुड़े व्यक्ति अपनी बात कहेंगे। इस दो दिवसीय आयोजन में कुल 12  सत्र आयोजित किए गए। 

श्री तापी पुराण में इन स्थलों का विवरण मिलता है-
 
1. श्री नारदावर्त तीर्थ (वर्तमान नावथा) : यहां देवर्षि नारद ने, स्कन्द पुराण के तापी खंड को जल प्लावित कर दिया था, जिससे कुपित हुई मां ताप्ती को प्रसन्न करने के लिए, इसी स्थान पर तप के द्वारा अपने कृत्य का परिष्कार किया, तापी माहात्म्य का पुनरुद्धार हुआ और इसे तापी पुराण के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। नारदावर्त (वर्तमान - नावथा) नामक यह स्थान बुरहानपुर जिले की नेपानगर तहसील में, ताप्ती नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। उक्त प्रसंग का सविस्तार वर्णन, तापी पुराण में उद्धृत है।
 
2. श्रीसीतान्हानी : नेपानगर तहसील में ही, ताप्ती नदी के उत्तर में, असीरगढ़ की तलहटी के वन क्षेत्र में, यह स्थान स्थित है। यहां पर, माता सीता के स्नान के लिए, गौमुख से शुद्ध जल की धारा प्रकट हुई, जिसमें से आज भी निरंतर जल निसृत होता है और समीपवर्ती कुंड में एकत्रित होता है। यह सुरम्य स्थान, प्राचीन काल से ही, जन आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां बने हुए मंदिर का समय - समय पर जीर्णोद्धार होता रहा है और मध्यप्रदेश शासन के द्वारा, इस तीर्थ के संरक्षण और उन्नयन हेतु, योजना प्रारंभ हुई है।
 
3. श्री सीता गुफा : इसे क्षेत्र में आगे जाकर, सतपुड़ा की तलहटी के गहन वन में, एक प्राकृतिक झरने के नीचे स्थित, प्रागैतिहासिक कालीन गुफा है, जिसे सीता गुफा के रूप में जाना जाता है। जन मान्यता है कि इस स्थान को प्रभु श्रीराम ने माता सीता के विश्राम के लिए उपयुक्त जाना और उन्होंने यहीं विश्राम किया।
 
4. श्री रामझरोखा : ब्रध्नपुर (बुरहानपुर) नगर के ठीक बाहर, नारदावर्त से दस कोस की दूरी पर, मां ताप्ती के तट पर, यह दिव्य स्थान है। प्रभु श्रीराम ने, इसी स्थान पर, कुछ दिन विश्राम किया और इसी अवधि में, कन्या राशि में सूर्य ग्रहण पर्व उपस्थित होने पर, सनंदन मुनि के मार्गदर्शन में, अपने पिता महाराज दशरथ का सपिंड श्राद्ध भी किया और वह पिंड, तत्काल ही देवत्व को प्राप्त हो गया, जिसका उल्लेख तापी पुराण में वर्णित रामक्षेत्र माहात्म्य की प्रस्तुत पीडीएफ प्रति के पृष्ठ क्रमांक 12 और पृष्ठ क्रमांक 22 में उपलब्ध है। इस स्थल को श्री तापी पुराण में राम तीर्थ अथवा राघव तीर्थ कहा गया है। प्राचीन काल से अनेक महात्मा यहीं पर आकर समाधि लेते रहे हैं और वे दिव्य समाधियां आज भी यहीं विद्यमान है। यहीं पर श्रीराम ने बारह ज्योतिर्लिंगों का भी पूजन किया, वे बारह मंदिर आज भी विद्यमान है और उनका जीर्णोद्धार भी होता रहता है। वर्तमान में यह स्थान श्रीराम झरोखा धाम के नाम से विख्यात है। यहां प्राचीन चबूतरे पर स्थित मढ़ी में, चिर पुरातन काल से, श्री लक्ष्मण जी सहित भगवान् श्रीरामजानकी की, जटा-वल्कलधारी मूर्तियों में पूजा होती रही। वर्तमान में यहां पर भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ है। साधु संत निवास करते हैं और गौशाला भी है।
 
5. श्री मोहिनी संगम : श्रीराम झरोखा से आधे कोस की दूरी पर, यह तीर्थ विद्यमान है। इस स्थान पर, मोहिनी अप्सरा की तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान् महादेव प्रकट हुए और उसे इच्छित वरदान दिया। मोहिनी नदी के संगम पर स्थित इस स्थान पर, चिर पुरातन काल से, स्वयंभू शिवलिंग के पूजन होता है।
 
6. ओंकारेश्वर तामसवाड़ी : इसी वन गमन मार्ग पर, महाराष्ट्र की सीमा में प्रविष्ट होते ही, जलगांव जिले के रावेर नगर के निकट, श्री ओंकारेश्वर तामसवाड़ी स्थान प्रसिद्ध है, जहां भगवान् महादेव के पूजन हेतु प्रकट की हुई, श्रीराम के बाण से निसृत जलधारा का दर्शन होता है।
 
7. पयोष्णी (पूर्णा) संगम : इसके आगे श्री तापी पयोष्णी (पूर्णा) संगम है, जिसे तापी पुराण में दक्षिण प्रयाग की संज्ञा दी गई है। यह स्थान जलगांव जिले के मुक्ताई नगर में स्थित है।
 
8. श्री सीता रसोई (उनबदेव) : जलगांव जिले के ही, चोपड़ा नगर के निकट, सतपुड़ा की तलहटी के गहन वन में स्थित, इस सुरम्य स्थान पर, प्रभु श्रीराम के बाण प्रहार से निसृत उष्णोदक (गर्म पानी) का स्त्रोत है, जिसमें स्नान करने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। या जल चमत्कारी औषधीय गुणों से युक्त है और इसमें स्नान कर, अनेक रोगी लाभान्वित होते हैं। यहां श्री राम द्वारा पूजित महादेव मंदिर (जो वर्तमान में श्री रामेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है) विद्यमान है और समीप ही माता सीता की रसोई बनी हुई है। इस स्थान का दर्शन करने के लिए निरंतर श्रद्धालु आते रहते हैं।
श्री नारदावर्त तीर्थ से, श्री तापी : पयोष्णी संगम तक के ताप्ती तटक्षेत्र को, श्री तापी पुराण में राम क्षेत्र कहा गया है। इसके उपरांत भगवान् ने अपने मार्ग पर, श्री अगस्त्य मुनि द्वारा सूचित, पंचवटी की ओर प्रस्थान किया। श्रीराम क्षेत्र की प्रभु की यात्रा के यह आठ स्मृति स्थल आज भी विद्यमान है। पुरातन काल से ही, इन स्थानों पर दर्शनार्थी आते रहते हैं और पूजन, उत्सव आदि का क्रम आज भी अनवरत गतिमान है। उक्त प्रसंग से जुड़े हुए प्रमाण और जानकारी बुरहानपुर निवासी, पंडित श्रीलोकेश शुक्ल जी से प्राप्त कर वंहा पर प्रस्तुत की। उक्त संदर्भ के पर्याप्त पौराणिक साक्ष्य उपलब्ध है और उन्होंने श्रीराम वनगमन यात्रा में हुए उक्त स्थानों पर हुए प्रभु के प्रवास मार्ग से संगति स्थापित करने वाला एक मानचित्र भी दिया है, जिसमें मूल मार्ग में रामटेक की ओर से से ताप्ती तट क्षेत्र में प्रभु श्रीराम के प्रवेश और तापी - पूर्णा संगम के कुछ आगे से, उनके पुनः पूर्व से प्रसिद्ध वन गमन मार्ग पर प्रस्थान के यात्रा मार्ग को इंगित किया गया है।
 
महत्वपूर्ण यह है कि इस कार्य को करने व वंहा की अन्य जानकारी व प्रमाण एकत्र करने का दायित्व मुझे दिया गया, इन सभी प्रमाणों व अभिलेखों को न्यास को भेजा जाना है, ताकि इन से जुड़े साक्ष्यों आदि का अवलोकन और सत्यापन कर, प्रभु श्रीराम की वनवास यात्रा की इस कड़ी को भी, श्री राम वन गमन पथ के रूप में मान्यता प्रदान की जा सके। 
 
कोर ग्रुप में राज्य शिक्षक संघ के प्रान्त अध्यक्ष जगदीश यादव व मैंने शिक्षा में रामत्व अभियान की कार्य योजना को प्रस्तुत किया जिस पर सभी ने कहा कि इस अभियान की महती आवश्यकता है, ताकि अगली पीढ़ी को भी श्रीराम जी के आदर्श गुणों से अवगत करवाया जाए व श्रेष्ठ भारत के निर्माण में यह कार्य प्रेरक सिद्ध होगा। श्रीमती स्वाति कर्पे ने भी वनगमन पथ यात्रा के संस्मरण सुनाएं। आयोजन का समापन में अतिथि के रूप में स्वामी कमलनयन दास जी, न्यास अध्यक्ष विनोद गर्ग, डॉ रामावतार जी उपस्थित रहे। आभार स्वामी राजीव लोचन दास जी ने किया।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 

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