Prime Minister Narendra Modi visit to Canada: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कनाडा यात्रा, जो जी7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए हो रही है, भारत और कनाडा के बीच तनावपूर्ण रिश्तों को सुधारने का एक महत्वपूर्ण अवसर मानी जा रही है। हालांकि, इस यात्रा को लेकर दो विपरीत तस्वीरें उभर रही हैं। एक ओर इसे कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने का मौका माना जा रहा है, तो दूसरी ओर कनाडा का सिख समुदाय, विशेषकर खालिस्तान समर्थक इस यात्रा का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।
मोदी की कनाडा यात्रा का क्या महत्व है : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने जी7 शिखर सम्मेलन में अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया है, जो कनाडा के अलबर्टा में आयोजित हो रहा है। यह मोदी की एक दशक बाद कनाडा की पहली यात्रा है और इसे दोनों देशों के बीच रिश्तों को 'रीसेट' करने के अवसर के रूप में देखा जा रहा है। भारत, भले ही जी7 का सदस्य न हो, लेकिन दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के तौर पर उभर रहा है। कार्नी का यह निमंत्रण भारत के साथ आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने की उनकी व्यावहारिक सोच को दर्शाता है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी इस यात्रा को द्विपक्षीय और वैश्विक मुद्दों पर विचार-विमर्श का एक महत्वपूर्ण अवसर बताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुलाकात दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश, और लोगों के बीच संबंधों को नई दिशा दे सकती है।
भारत-कनाडा संबंधों में तनाव का इतिहास : भारत और कनाडा के रिश्ते हाल के वर्षों में काफी तनावपूर्ण रहे हैं। 2023 में कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सिख अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार की संलिप्तता का आरोप लगाया था। निज्जर, जो खालिस्तान आंदोलन से जुड़ा था। उसकी जून 2023 में वैंकूवर के एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। भारत ने इन आरोपों को 'बेतुका' और 'निराधार' बताते हुए खारिज कर दिया था। इसके जवाब में भारत ने कनाडा पर खालिस्तान समर्थकों को पनाह देने और उनके उग्रवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था।
इस विवाद ने दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों को गहरी चोट पहुंचाई। दोनों देशों ने एक-दूसरे के वरिष्ठ राजनयिकों को निष्कासित कर दिया और व्यापारिक वार्ताएं भी ठप हो गईं। अब मार्क कार्नी के नेतृत्व में कनाडा सरकार इस तनाव को कम करने और रिश्तों को सामान्य करने की दिशा में कदम उठा रही है।
आर्थिक संबंधों की मजबूती की उम्मीद : कनाडा की सरकार इस यात्रा को आर्थिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण मान रही है। भारत, जो तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और वैश्विक सप्लाई चेन का केंद्र है, कनाडा के लिए एक आकर्षक साझेदार है। 2023 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 9 बिलियन डॉलर का था। इसके अलावा, कनाडा के पेंशन फंड ने भारत में करीब 55 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। कनाडा में रहने वाले लगभग 20 लाख भारतीय मूल के लोग दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक सेतु का काम करते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि कार्नी का यह कदम यथार्थवादी और भविष्योन्मुखी है। भारत के साथ व्यापार और निवेश बढ़ाने से कनाडा को न केवल आर्थिक लाभ होगा, बल्कि यह दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली में भी मदद करेगा।
सिख समुदाय की नाराजगी और खालिस्तान का मुद्दा : हालांकि, इस कूटनीतिक पहल के बीच कनाडा का सिख समुदाय इस यात्रा को लेकर गहरी नाराजगी जता रहा है। निज्जर की हत्या और अन्य सिख कार्यकर्ताओं को मिल रही धमकियों के चलते कई सिख संगठन और व्यक्ति भारत सरकार को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं। सिख कार्यकर्ता मोनिंदर सिंह, जिन्हें पुलिस ने उनकी जान को खतरे की चेतावनी दी है, ने इस निमंत्रण को 'अपमानजनक' करार दिया। उनका कहना है कि यह दर्शाता है कि सिखों की सुरक्षा विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सामने महत्व नहीं रखती।
सिख समुदाय ने मोदी की यात्रा के दौरान ओटावा में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है। खालिस्तान आंदोलन, जो पंजाब को भारत से अलग करने की मांग करता है, कनाडा में सक्रिय है और इस यात्रा को अपने मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने का अवसर मान रहा है। कुछ आलोचकों का कहना है कि कार्नी मानवाधिकारों और सिख समुदाय की चिंताओं को नजरअंदाज कर आर्थिक हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
बड़ा सवाल, क्या यह यात्रा रिश्तों को सुधार पाएगी?
मोदी और कार्नी के बीच होने वाली मुलाकात में कई संवेदनशील मुद्दों, जैसे निज्जर हत्या की जांच, खालिस्तान आंदोलन, और दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी, पर चर्चा होने की संभावना है। मोदी ने 'कानून प्रवर्तन संवाद' पर सहमति जताई है, जो दोनों देशों के बीच सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा दे सकता है। हालांकि, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या यह यात्रा इन जटिल मुद्दों पर जमी बर्फ को पिघला पाती है।
प्रधानमंत्री मोदी की कनाडा यात्रा भारत और कनाडा के बीच संबंधों को बेहतर बनाने का एक सुनहरा अवसर है। यह यात्रा दोनों देशों के बीच आर्थिक और कूटनीतिक सहयोग को मजबूत कर सकती है, लेकिन खालिस्तान समर्थकों का विरोध और सिख समुदाय की नाराजगी इसे बड़ी चुनौती बना रही है। मार्क कार्नी और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की यह कूटनीतिक परीक्षा न केवल दोनों देशों के रिश्तों की दिशा तय करेगी, बल्कि यह भी दिखाएगी कि क्या आर्थिक हित और मानवाधिकारों के बीच संतुलन बनाया जा सकता है।