ये हैं 20 विधायक : प्रवीण कुमार (जंगपुरा), शरद कुमार (नरेला), आदर्श शास्त्री (द्वारका), मदनलाल (कस्तूरबा नगर), शिवचरण गोयल (मोतीनगर), अनिल कुमार बाजपेयी (गांधीनगर), सोम दत्त (सदर बाजार), अवतारसिंह (कालकाजी), विजेन्दर गर्ग (राजेन्द्र नगर), जरनैल सिंह (राजौरी गार्डन), संजीव झा (बुराड़ी), सरिता सिंह (रोहितास नगर), रमेश यादव (महरौली), राजेश ऋषि (जनकपुरी), राजेश गुप्ता (वजीरपुर), कैलाश गहलोत (नजफगढ़), अलका लांबा (चांदनी चौक), नितिन त्यागी (लक्ष्मीनगर), मनोज कुमार (कोंडली), सुखवीरसिंह (मूंडका)।
यह था पूरा मामला : आम आदमी पार्टी ने 13 मार्च 2015 को अपने 20 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। इसके बाद 19 जून को एडवोकेट प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद्द करने के लिए आवेदन किया। राष्ट्रपति की ओर से 22 जून को यह शिकायत चुनाव आयोग में भेज दी गई। शिकायत में कहा गया था कि यह 'लाभ का पद' है इसलिए आप विधायकों की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए।
इससे पहले मई 2015 में इलेक्शन कमीशन के पास एक जनहित याचिका भी डाली गई थी। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि विधायकों को संसदीय सचिव बनकर कोई 'आर्थिक लाभ' नहीं मिल रहा। इस मामले को रद्द करने के लिए आप विधायकों ने चुनाव आयोग में याचिका लगाई थी, वहीं राष्ट्रपति ने दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के संसदीय सचिव विधेयक को मंजूरी देने से इंकार कर दिया था। इस विधेयक में संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान था।
सरकार पर नहीं पड़ेगा असर : विधायकों की सदस्यता रद्द करने के बाद भी केजरीवाल सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि 70 सदस्यीय विधानसभा में केजरीवाल के 66 विधायक हैं और 20 की सदस्यता रद्द होने के बाद भी उसके विधायकों की संख्या 46 रहेगी, जबकि बहुमत के लिए 36 विधायकों की जरूरत है।