नई दिल्ली। अगले वित्त वर्ष के बजट को लेकर अर्थशास्त्रियों, अधिकारियों और राजनीतिज्ञों के बीच हो रही चर्चाएं अर्थव्यवस्था के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र कृषि और ग्रामीण आय में सुधार की आवश्यकता के इर्द-गिर्द घूमती प्रतीत हो रही है और यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली कृषि को प्रोत्साहन देने में उदारता दिखाएंगे।
देश में हाल में हुए चुनावों से भी दिखा कि कृषि और ग्रामीण विकास की ओर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। चुनावों में देखने में आया कि किसानों के संकट के कारण मतदाताओं ने मजबूत स्थिति वाले राजनीतिक दलों से मुंह मोड़ लिया।
उदाहरण के लिए भाजपा को उन ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत कम समर्थन प्राप्त हुआ, जहां के किसान संकट से घिरे हुए थे। ऐसी जगहों के किसानों ने कांग्रेस जैसी अन्य पार्टियों का रुख किया। इसके अलावा किसानों की आत्महत्या का सबब बन रहे खाद्यान्न के कम दामों के कारण पिछले साल देश के अनेक भागों में कई संगठित किसान आंदोलन भी हुए।
कृषि देश के जीडीपी के 17 फीसदी के लिए उत्तरदायी है और देश के लगभग आधे श्रमबल की गुजर-बसर इसी के बल पर होती है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां अलाभकारी मूल्यों और खेती पर आने वाली उच्च लागत तथा व्यापक फसल बीमा के अभाव ने न सिर्फ किसानों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने की ओर धकेला है, बल्कि ये बड़े पैमाने पर किसानों के शहरों की ओर पलायन का भी कारण बने हैं। इसमें कोई अचरज की बात नहीं कि हाल में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 40 से ज्यादा अर्थशास्त्रियों के साथ चर्चा की तो उसमें ग्रामीण क्षेत्रों तथा कृषि क्षेत्र में जान डालने पर विशेष बल दिया गया।
एक सुझाव यह है कि कृषि उत्पादों की उत्पादकता को बढ़ाने की कोशिश करने की बजाए ग्रामीण आय बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए जिसमें अपेक्षा के अनुरूप वृद्धि नहीं हुई है। ऐसा माना जा रहा है वित्तमंत्री अरुण जेटली आगामी 1 फरवरी को प्रस्तुत किए जाने वाले बजट को तैयार करते समय इनमें से कई सुझावों को शामिल कर सकते हैं।
ऐसी उम्मीद की जा रही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सालभर रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित करने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम (मनरेगा) के परिव्यय में महत्वपूर्ण वृद्धि हो सकती है। दूसरा, सड़क निर्माण कार्य में तेजी लाने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत किए जाने वाले खर्च में भी बढ़ोतरी की जा सकती है। किसानों को बेहतर ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम और उज्ज्वला एलपीजी योजना का दायरा बढ़ाया जा सकता है।
चालू वित्त वर्ष में कृषि ऋण बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपए कर दिए गए हैं। अगले वर्ष भी इसमें पर्याप्त वृद्धि होना निश्चित है। यह सुनिश्चित किया जाना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि किसानों को फसल नहीं होने या कर्ज चुकाने में अक्षमता के कारण भीषण विपदा का सामना नहीं करना पड़े।
बैंकिंग प्रणाली में ऋण चुकता करने में लचीलेपन को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए। इसके अलावा फसल बीमा को ज्यादा व्यापक और आसानी से उपलब्ध होने वाला बनाना होगा। फसल बीमा योजना, जिसे इस साल 40 प्रतिशत फसल क्षेत्र को कवर करना था, वह वर्ष 2018-19 में बढ़कर 50 प्रतिशत तक हो जाएगा। लेकिन इसके अंतर्गत कवरेज को कहीं ज्यादा तेजी से व्यापक बनाना होगा।
अनेक खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना पर चल रहे काम के बीच जेटली खेती क्षेत्र में संबंधित अन्य गतिविधियों जैसे डेयरी या झींगा और मछलीपालन साथ ही साथ बागवानी उत्पादन को प्रोत्साहन दे सकते हैं। इससे परंपरागत फसलों पर निर्भरता में कमी आएगी। कृषि मंत्रालय पहले से ही फसल के बाद उपज के मूल्यवर्धन पर व्यापक बल दे रहा है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना इस प्रकार की ढांचागत सुविधाओं के सृजन के लिए अपनी निधि के 40 प्रतिशत अंश का आवंटन करती है।
कृषि क्षेत्र के महत्वपूर्ण घटकों में से एक सिंचाई, विशेषकर माइक्रो-सिंचाई पर भी व्यापक रूप से ध्यान केंद्रित किए जाने की संभावना है। इस क्षेत्र में साथ ही साथ समूचे कृषि क्षेत्र के लिए परिव्यय में वृद्धि किए जाने की संभावना है। वर्ष 2016-17 में कृषि के लिए परिव्यय 1,87,223 करोड़ रुपए था।
राजग सरकार पहले ही घोषणा कर चुकी है कि उसका लक्ष्य 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करना है। यह एक विशाल लक्ष्य है लेकिन अर्थव्यवस्था को उच्च प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए यह अनिवार्य है। चालू वित्त वर्ष में सकल वृद्धि दर 4 वर्षों में सबसे कम 6.5 प्रतिशत रहने की संभावना है।
पिछले कुछ वर्षों से कृषि संबंधी वृद्धि दर में असमानता देखी गई है। यह 1.5 प्रतिशत से लेकर 4.9 प्रतिशत तक रही है। ग्रामीण वृद्धि को प्रोत्साहन देने के लिए राजग सरकार बजट द्वारा उपलब्ध कराए गए अवसर का उपयोग कृषि क्षेत्र को पर्याप्त समर्थन और प्रोत्साहन देने में कर सकती है ताकि किसानों की विपदाओं को समाप्त हो सके और अंतत: अर्थव्यस्था के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में स्थायित्व लाया जा सके। (वार्ता)