उन्होंने अंग्रेजी उद्घोषणा से अपने करियर की शुरुआत की थी। लेकिन जब वे आकाशवाणी के हिन्दी प्रभाग के लिए ऑडिशन देने गए तो उनसे कहा गया कि उनके उच्चारण में अंग्रेजी और गुजराती का आभास आता है। मगर अमीन सयानी उन लोगों में से नहीं थे, जो हतोत्साहित हो जाते और एक वक्त ऐसा भी आया, जब वे भारत के हर-दिल-अजीज रेडियो प्रस्तोता बन गए।
पेंगुइन द्वारा प्रकाशित किताब में उन्होंने बताया कि मैंने शुरुआती शिक्षा न्यू ईरा स्कूल में की थी जिसमें प्राथमिकी स्तर में गुजराती माध्यम का उपयोग होता था। 5वीं कक्षा से अंग्रेजी पर अधिक जोर दिया जाता था। उन्होंने बहुत कम उम्र में अपनी मां की पाक्षिक पत्रिका 'रहबर' में छोटे-छोटे लेख लिखने शुरू कर दिए, जो 3लिपियों देवनागरी, गुजराती और उर्दू में छपती थी।
सयानी ने बताया कि 13 साल की उम्र में वे अंग्रेजी में धाराप्रवाह उद्घोषक बन गए थे और बंबई ऑल इंडिया रेडियो के बच्चों के कार्यक्रम में शिरकत करना शुरू कर दिया था और बाद में रेडियो रूपक में भूमिका निभानी शुरू कर दी थी। कुछ समस्याओं के चलते उन्हें मुंबई में अपने स्कूल को छोड़कर ग्वालियर के सिंधिया स्कूल जाना पड़ा। आजादी के बाद वे मुंबई वापस आए और हिन्दी प्रभाग में ऑडिशन देने के लिए गए।
वे मुस्कुराए और कहा कि मैंने अपनी स्क्रिप्ट पूरे आत्मविश्वास से पढ़ी, लेकिन उनका उत्तर था, 'तुमने बहुत अच्छा पढ़ा लेकिन तुम्हारे उच्चारण में अंग्रेजी और गुजराती का आभास होता है इसलिए हम आपको नहीं रख सकते।'