शाह ने औपनिवेशिक ब्रिटिश काल के दौरान कैदियों की पहचान संबंधी 1920 के कानून की जगह लेने वाले 'दंड प्रक्रिया (शिनाख्त) विधेयक, 2022' को लोकसभा में चर्चा एवं पारित करने के लिए रखते हुए कहा कि उक्त विधेयक को पृथक रूप से देखने के बजाय भावी मॉडल जेल मैनुअल के साथ देखना होगा।
उन्होंने कहा कि सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नया मॉडल जेल मैनुअल बना रही है। इसे राज्यों को भेजा जाएगा। इसमें कैदियों के पुनर्वास, उन्हें समाज में पुनर्स्थापित करने, जेल के अधिकारियों के बीच अनुशासन, जेल की सुरक्षा, महिला कैदियों के लिए अलग जेल और खुली जेल आदि प्रावधानों को समाहित किया गया है।
शाह ने गत 28 मार्च को सदन में 'दंड प्रक्रिया (शिनाख्त) विधेयक, 2022' पेश किए जाते समय विपक्षी सदस्यों द्वारा जताई गईं आपत्तियों के आलोक में कहा कि कृपया उक्त विधेयक को पृथक रूप में देखने के बजाय मॉडल जेल मैनुअल के साथ देखना होगा। 1902 के कानून की जगह नए कानून से अदालतों में दोषसिद्ध करने के लिए प्रमाणों को बढ़ाया जा सकेगा। शाह ने कहा कि यह विधेयक लाने का सही समय है जिसमें काफी देरी हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि 1980 में विधि आयोग ने अपनी 87वीं रिपोर्ट में बंदी शिनाख्त अधिनियम पर पुनर्विचार करने की सिफारिश सरकार को भेजी था। इस पर कई बार चर्चा हुई। हमने सरकार बनने के बाद राज्यों से चर्चा की, अनेक प्रकार के सुझाव लिए गए। सभी को समाहित करते हुए और दुनियाभर में अपराध प्रक्रिया में दोषसिद्धि के लिए इस्तेमाल अनेक प्रावधानों का अध्ययन करने के बाद यह विधेयक लाया गया है।
उन्होंने कहा कि इसमें मानवाधिकार हनन संबंधी सदस्यों की चिंताओं पर ध्यान दिया गया है। शाह ने कहा कि कानून में समय पर बदलाव नहीं करेंगे तो दोषसिद्धि की दर में हम पीछे रह जाएंगे। विधेयक में इस विधेयक में दोषियों और अपराध के मामले में गिरफ्तार लोगों का विभिन्न प्रकार का ब्योरा एकत्र करने की अनुमति देने की बात कही गई है जिसमें अंगुली एवं हथेली की छाप या प्रिंट, पैरों की छाप, फोटो, आंखों की पुतली, रेटिना और लिखावट के नमूने आदि शामिल हैं।