प्रख्यात पर्यावरणविद् और गांधीवादी अनुपम मिश्र का निधन हो गया। उन्होंने सोमवार तडक़े अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अंतिम सांस ली। वह 68 वर्ष के थे। उनकी जानी-मानी प्रमुख रचनाएं राजस्थान की रजत बूँदें, आज भी खरे हैं तालाब और साफ माथे का समाज काफी चर्चित रही हैं।
मिश्र के परिवार में उनकी पत्नी मंजू मिश्र, एक बेटा, बड़े भाई और दो बहनें हैं। मिश्र गांधी शांति प्रतिष्ठान के ट्रस्टी एवं राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि के उपाध्यक्ष थे। मिश्र काफी दिनों से कैंसर से पीड़ित थे और पिछले दस दिसंबर को उन्हें दोबारा एम्स में भर्ती कराया गया था।
उल्लेखनीय है कि अनुपम मिश्र का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा में सन 1948 में हुआ था। उन्होंने लेखक, संपादक, छायाकार और गांधीवादी पर्यावरणविद् में काफी ख्याती प्राप्त की थी। पर्यावरण-संरक्षण के प्रति जनचेतना जगाने और सरकारों का ध्यानाकर्षित करने की दिशा में वह तब तक काम करते रहे, जब तक देश में पर्यावरण रक्षा का कोई विभाग नहीं खुला था।
आरंंभ में बिना सरकारी मदद के अनुपम मिश्र ने देश और दुनिया के पर्यावरण की जिस तल्लीनता और बारीकी से खोज-खबर ली है, वह कई सरकारों, विभागों और परियोजनाओं के लिए भी संभवत: संभव नहीं हो पाया है। उनकी कोशिश से सूखाग्रस्त अलवर में जल संरक्षण का काम शुरू हुआ जिसे दुनिया ने देखा और सराहा। सूख चुकी अरवरी नदी के पुनर्जीवन में उनकी कोशिश काबिले तारीफ रही है। इसी तरह उत्तराखण्ड और राजस्थान के लापोडिय़ा में परंपरागत जल स्रोतों के पुनर्जीवन की दिशा में उन्होंने अहम काम किया है।