मुंबई के स्टार्टअप गीगाडाइन एनर्जी ने यह बैटरी विकसित की है और उसे अंतरराष्ट्रीय पेटेंट मिलना अभी बाकी है। इस स्टार्टअप के संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी जुबीन वर्गीज ने कहा कि इसकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है और यह वर्तमान में उपयोग में आने वाली लीथियम आधारित बैटरी से अधिक कार्यसक्षम है। फिलहाल इलेक्ट्रिक वाहनों की कुल कीमत में 40 फीसदी तक उनकी बैटरी का ही दाम होता है। उन्हें सस्ता बनाने के लिए जरूरी है कि बैटरी का दाम घटे और यह तब संभव है, जब चार्ज करने का समय कम हो।
वर्गीज ने कहा कि 2030 तक भारत शत-प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन बिक्री हासिल करना चाहता है। आज इलेक्ट्रिक वाहनों के दाम का एक बड़ा हिस्सा बैटरी का होता है अतएव भारत संभवत: बैटरी विनिर्माण उद्योग में शीर्ष तक पहुंच सकता है। यह न केवल यह आर्थिक रूप से व्यवहारपरक है बल्कि टिकाऊ भी है। फिलहाल लीथियम आयन (एलआई) इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने का एक बड़ा स्रोत है।
वर्ष 2006 में जब एलआई बैटरी की मांग सामने आई थी, तब से लेकर 2016 तक इन बैटरियों ने दुनियाभर में एलआई बैटरी की मांग में 50 प्रतिशत का योगदान दिया। लेकिन ये बैटरियां चार्ज करने में लंबा वक्त लेती हैं, ऐसे में ये इलेक्ट्रिक वाहन चार्ज करने के लिए व्यवहारपरक नहीं हैं। (भाषा)