बजट में छिपा भाजपा के चुनावी गणित का रहस्य

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017 (17:32 IST)
नई दिल्ली। मोदी सरकार ने 1 फरवरी को ही बजट लाकर क्या वाकई 5 राज्यों में होने वाले चुनावों को अपने पक्ष में साधने की कोशिश की है? या फिर इसके पीछे वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनाव हैं ताकि मोदीजी की फिर एक बार ताजपोशी हो सके? 
राज्यों के चुनाव परिणामों को अपने पक्ष में लाने के केंद्र सरकार ने बजट में अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं का पिटारा खोल दिया है। इनमें से एक पीएम आवास योजना के तहत 2019 तक 1 करोड़ घर बनाने की बात कही गई है। विदित हो कि वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में उत्तरप्रदेश ही ऐसा राज्य है, जहां आबादी के एक चौथाई से ज्यादा यानी कि कुल 20 फीसदी लोगों के पास घर नहीं है। 
उत्तरप्रदेश में कानपुर ऐसा शहर है, जहां तकरीबन 80 हजार से ज्यादा लोग आज भी अपने घर का सपना देख रहे हैं, हालांकि मुंबई में 55 हजार और दिल्ली में 40 हजार से ज्यादा लोगों के पास भी घर नहीं हैं लेकिन घरविहीन लोगों की सबसे ज्यादा आबादी यूपी में है।
 
इसी तरह देश की सर्वाधिक युवा आबादी (20 साल तक की उम्र) भी सबसे ज्यादा यूपी में है। यह बहुत बड़ा वोट बैंक है, जो बेरोजगार लेकिन महत्वाकांक्षी है और महानगरों की ओर तेजी से पलायन कर रहा है। बजट में इसी आबादी को ध्‍यान में रखते हुए प्रधानमंत्री कौशल केंद्रों के विस्तार और अंतरराष्ट्रीय कौशल केंद्र खोलने की बात कही गई है। 
 
बजट में घोषणा की गई है कि सरकार 2018 तक देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचाना चाहती है लेकिन सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के 2015-16 के आंकड़े कहते हैं कि आज भी जम्मू-कश्मीर के बाद देश में सबसे ज्यादा बिजली की जरूरत यूपी को है। बिजली की यह कमी तकरीबन 12.5 फीसदी की है।
 
उल्लेखनीय है कि केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के 2014 के आंकड़ों के हिसाब से यूपी में 10,856 गांव ऐसे थे, जहां बिजली पहुंची ही नहीं थी। यूं तो देश के ज्यादातर राज्य बिजली की कमी से जूझ रहे हैं लेकिन यहां हालात बहुत बदतर हैं। प्राधिकरण ने वर्ष 2013 की एक रिपोर्ट में कहा है कि उत्तरप्रदेश बिजली का सबसे भूखा प्रदेश करार दिया गया था। ऐसे ही स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में भी यूपी देश में सबसे ज्‍यादा पिछड़ा राज्‍य है। इस राज्य में सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा पूरी तरह से बदहाल है। इसी के चलते बजट में 1.5 लाख स्वास्थ्य उपकेंद्रों को स्वास्थ्य वेलनेस केंद्रों में बदलने की बात कही गई है।
 
इस वर्ष के बजट में मनरेगा की राशि बढ़ाई गई है और बीते साल की राशि 38,500 करोड़ रुपए की जगह 48,000 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। यदि चुनाव वाले 5 राज्‍यों में मनरेगा से मिलने वाले रोजगार पर नजर डालें तो बीजेपी ने यहां भी यूपी के ही वोटर को साधने की कोशिश की है।
 
आंकड़ों के हिसाब से देखें तो 5 राज्‍यों में मनरेगा में रोजगार पाने वालों की स्‍थिति पता चलती है और उसमें भी यूपी की हालत बेहद खराब है। लेकिन बात अगर अकेले यूपी की करें तो यहां 82,03,073 ने मनरेगा के तहत काम की मांग की थी, लेकिन 68,54,523 लोगों को रोजगार मिला। इनमें से भी 1,85,782 परिवार ही 100 दिन का रोजगार पा सके। 
 
उत्तराखंड में 7,51,698 लोगों ने रोजगार मांगा लेकिन 6,77,755 लोगों को ही काम दिया जा सका। चुनाव का रास्ता देख रहे सभी 5 राज्यों में 1 करोड़ से ज्‍यादा ने रोजगार की डिमांड की थी लेकिन 85 लाख लोग ही काम हासिल कर पाए। उसमें भी केवल 2 लाख से कुछ ज्‍यादा लोगों को 100 दिन का रोजगार मिल सका।
 
मोदी सरकार अपनी कई योजनाओं और उनकी घोषणाओं में बहुत-सी प्लानिंग अगले कुछ साल में होने वाले लोकसभा चुनाव के हिसाब से करती दिखाई दे रही है। अगले चुनावी कार्यक्रम पर नजर डाली जाए तो जहां इस साल 2017 में गोवा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर में चुनाव हैं, वहीं अगले साल 2018 में 9 राज्यों- मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, नगालैंड, कर्नाटक, मेघालय, हिमाचल, त्रिपुरा और मिजोरम में चुनाव होने हैं जबकि 2019 में ही लोकसभा के लिए भी आम चुनाव होने हैं।

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