न्यायालय ने 15 जनवरी के अपने फैसले में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उचित सैनिटेशन तक पहुंच को मौलिक अधिकार माना गया है। उच्चतम न्यायालय ने कई निर्देश जारी करते हुए उच्च न्यायालयों, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से सभी न्यायालय परिसरों और न्यायाधिकरणों में पुरुषों, महिलाओं, दिव्यांगजनों और ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग-अलग शौचालयों की सुविधा सुनिश्चित करने को कहा था। न्यायालय ने साथ ही चार महीने के भीतर स्थिति रिपोर्ट भी मांगी थी।
न्यायालय ने 15 जनवरी के अपने फैसले में कहा था कि उच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करेंगे कि सुविधाएं स्पष्ट रूप से चिन्हित हों तथा न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं, वादियों और न्यायालय के कर्मचारियों के लिए सुलभ हों। शीर्ष अदालत का फैसला अधिवक्ता राजीब कालिता द्वारा दायर जनहित याचिका पर आया।(भाषा)