खट्टर 1993 से 2007 तक मारुति उद्योग लि. से जुड़े रहे। वह कंपनी के प्रबंध निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए थे। सेवानिवृत्ति के बाद खट्टर ने कारनेशन ऑटो की शुरुआत की। इसके लिए 2009 में उन्हें 170 करोड़ रुपए का कर्ज मंजूर किया गया। प्राथमिकी में कहा गया है कि इस ऋण को 2015 में गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) घोषित कर दिया गया। यह निर्णय 2012 से प्रभावी बनाया।
इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि खट्टर ने बिक्री से प्राप्त इस राशि को बैंक के पास जमा नहीं कराया और बेईमानी और धोखाधड़ी से इसे अनुषंगियों और अन्य संबद्ध इकाइयों को स्थानांतरित कर दिया। प्राथमिकी में कहा गया है कि इस मामले में बैंक अधिकारियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। बैंक के अधिकारियों ने कथित रूप से स्टॉक का मासिक सत्यापन नहीं किया।
बैंक ने अपनी शिकायत में 5 आरोपियों का उल्लेख किया है। इसमें खट्टर ऑटो इंडिया प्राइवेट लि., कारनेशन रियल्टी प्राइवेट लि. और कारनेशन इंश्योरेंस ब्रोकिंग कंपनी प्राइवेट लि. का नाम भी शामिल है, लेकिन सत्यापन की प्रक्रिया में इनकी इस मामले में कोई प्रत्यक्ष भूमिका दिखाई नहीं दी।