बंधुआ मजदूरी और बालश्रम के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले सत्यार्थी ने कहा कि बालश्रम के नाम पर हजारों कारखानों में लाखों बच्चों से न्यूनतम मजदूरी पर काम करवाया जाता है और कंपनी के मालिक वयस्क मजदूर के अनुसार अपने खाते की पूर्ति करता है। इसमें करोड़ों रुपये का हेरफेर हो रहा है लेकिन प्रशासनिक अमले का इस तरफ ध्यान नहीं है।
उन्होंने कहा देश में बाल अधिकारों अथवा बच्चों से जुड़ी समस्याओं को लेकर संसद के दोनों सदनों में आज तक एक दिन भी चर्चा नहीं हो पायी है। इससे हमारे राजनेताओं की इच्छाशक्ति का पता चलता है। शायद बच्चे वोटर नहीं हैं इसलिए इनके मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। इसके साथ ही आज तक किसी भी धर्म के धार्मिक गुरु ने बालश्रम, बाल तस्करी तथा बंधुआ मजदूरी जैसे मुद्दों को अपने संबोधन में शामिल नहीं किया है। समाज के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करने वालों में भी बच्चों को लेकर संवेदनशीलता की कमी है। (वार्ता)