भ्रष्टाचार रोकने में पाकिस्तान से पिछड़ा भारत

बुधवार, 27 जनवरी 2016 (18:08 IST)
नई दिल्ली। भ्रष्टाचार कम करने के मामले में वर्ष 2015 में चीन और रूस से बेहतर रहने के बावजूद भारत पड़ोसी देश पाकिस्तान से पिछड़ गया, जबकि डेनमार्क सबसे पाक साफ देश बनकर उभरा।
 
भ्रष्टाचार से जुड़ी गतिविधियों पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) की वर्ष 2015 की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है।
 
टीआई के एशिया प्रशांत क्षेत्र के निदेशक स्रिराक पल्पित के अनुसार, पिछले दो सालों में भ्रष्टाचार के मामले में भारत में कोई सुधार नजर नहीं आया और भ्रष्टाचार मापक इंडेक्स (सीपीआई) में 38 अंकों के साथ यह लगातार दूसरे वर्ष 76वें स्थान पर टिका रहा। 
 
हालांकि चीन और रूस से इसकी स्थिति बेहतर रहीं, पर पाकिस्तान से यह पिछड़ गया। वहीं पाकिस्तान ने अपनी हालत पहले से काफी दुरुस्त की और एक अंक की बढ़ोतरी के साथ 30वें नंबर पर रहा, जबकि चीन 37 अंकों के साथ 83वें स्थान पर और रूस 29 अंकों के साथ 119वें स्थान पर रहा। 
 
भ्रष्टाचार को कम करने के मामले में सबसे बेहतर प्रदर्शन डेनमार्क का रहा और वह 168 देशों की इस सूची में लगातार दूसरे वर्ष शीर्ष पर बना रहा जबकि सबसे बुरी हालत ब्राजील की रही है जो 5 अंकों की गिरावट के साथ 7 स्थान नीचे फिसलते हुए 76वें  स्थान पर पहुंच गया है। सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में उत्तर  कोरिया और सोमालिया भी रहे। इन दोनों ने इंडेक्स में 8-8 अंक खोए।
 
दूसरी ओर पिछले चार सालों में भ्रष्टाचार की गिरफ्त में बुरी तरह फंसने वाले देशों लीबिया, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, स्पेन और तुर्की का नाम रहा, जबकि यूनान, सेनेगल और ब्रिटेन ने इस दौरान भ्रष्टाचार को कम करने में अप्रत्याशित सफलता अर्जित की।
 
टीआई ने दुनिया के 168 देशों में सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार के स्तर को मापने के लिए एक पैमाना सीपीआई तैयार कर रखा है और इसमें अर्जित अंकों के हिसाब से ही देशों में भ्रष्टाचार के स्तर को आंका है। 
 
जिन देशों में भ्रष्टाचार कम हुआ है, उनमें उनमें प्रेस की स्वतंत्रता, आम लोगों तक बजट की सूचनाओं की पहुंच, सत्ता में लोगों की हिस्सेदारी और गरीबों और अमीरों में भेदभाव नहीं रखने वाली निष्पक्ष न्यायपालिका जैसी समानताएं देखी गईं, जबकि जिन देशों में भ्रष्टाचार का स्तर लगातार बढ़ता रहा, वहां गृहयुद्ध, कुशासन, पुलिस और न्यायपालिका जैसी सरकारी संस्थाओं की कमजोरी और प्रेस की स्वतंत्रता का हनन जैसी बातें आम रहीं। (वार्ता)

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