लाउडस्पीकर के सियासी शोर से लेकर सोशल प्रभाव की पूरी पड़ताल, तेज साउंड पर कानून से लेकर नुकसान तक हर जानकारी

विकास सिंह
सोमवार, 2 मई 2022 (14:55 IST)
भोपाल। देश में लाउडस्पीकर को लेकर बहस तेज है। महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश तक लाउडस्पीकर को लेकर सियासत जारी है। महाराष्ट्र में मानों लाउडस्पीकर पर अब पूरी सियासत ही ठहर गई है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे ने मस्जिदों पर से लाडस्पीकर हटाने के लिए तीन मई तक का अल्टीमेटम दिया है। राज ठाकरे ने कहा है कि मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने के लिए दी गई तीन मई की समय सीमा के बाद जो कुछ भी होगा,उसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं रहूंगा। वहीं मनसे प्रमुख ने कहा कि चार मई से सभी हिंदू मस्जिदों के ऊपर के लाउडस्पीकर से दोगुनी आवाज में हनुमान चालीसा बजाएं। 

वहीं उत्तर प्रदेश में धार्मिक स्थलों पर अवैध तरीके से लगे लाउडस्पीकरों को हटा दिया गया है वहीं मध्यप्रदेश में लाउडस्पीकर को हटाने के लिए जल्द मौजूदा एक्ट में बदलाव की तैयारी हो रहा है। अवैध लाउडस्पीकर पर लगाम लगाने के लिए सरकार मौजूदा कानून में संशोधन कर अवैध तरीके से लगे लाउडस्पीकरों को हटाने की तैयारी में है। गृह विभाग ने अवैध तरीके से लगे लाउडस्पीकर को हटाने की प्रक्रिया को लेकर ड्राफ्ट बनाने पर मंथन शुरु कर दिया है।

लाउडस्पीकर के सहारे भले ही सियासी दल अपने वोट बैंक को साधने की पुरजोर कोशिश कर रही हो लेकिन क्या लाउडस्पीकर को तेज आवाज में बजाया जा सकता है। लाउडस्पीकर के साथ डीजे आदि से निकलने वाली ध्वनि को लेकर क्या है नियम इस पर भी अब बहस तेज हो गई है।    

सार्वजनिक लाउडस्पीकर पर क्या है नियम?-सार्वजनिक स्थानों पर लगे लाउडस्पीकर से सामान्य तौर पर  काफी तेज ध्वनि निकलती। अलग-अलग रिपोर्ट बताती हैं कि जिस तरह के लाउडस्पीकर मंदिरों और मस्जिदों में लगे होते हैं, उनसे करीब 100 से 120 डेसीबल साउंड पैदा होता है।  Noise Pollution Rules- 2000 में लाउडस्पीकर और सार्वजनिक स्थानों पर ध्वनि के स्तर पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए गए है। इसके साथ सार्वजनिक स्थानों पर लाउडस्पीकर लगाने के लिए प्रशासन की मंजूरी को जरूरी किया गया है। इसमें नियम है कि सार्वजनिक स्थानों पर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर नहीं बजाए जाएंगे।
ध्वनि प्रदूषण पर क्या है नियम?-ध्वनि प्रदूषण-अधिनियम और नियंत्रण (Noise Pollution Rules 2000) में अलग-अलग क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण के अलग-अलग नियम बनाए गए। जिसमें औद्योगिक क्षेत्र में दिन में 75 डेसीबल, रात में 70 डेसीबल, कमर्शियल क्षेत्र में दिन में 65 डेसीबल, रात में 55 डेसीबल, रहवासी क्षेत्र में दिन में 55 डेसीबल, रात में 45 डेसीबल और साइलेंट जोन (धर्मिक स्थल, शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल आदि के 100 मीटर के दायरे में) के 10 दिन में 50 डेसीबल, रात में 40 डेसीबल से अधिक की ध्वनि का उत्पन्न होना ध्वनि प्रदूषण के दायरे में आएगा।


राज्य सरकार के पास ये अधिकार होता है कि वो क्षेत्र के हिसाब से किसी को भी औद्योगिक, व्यावसायिक, आवासीय या शांत क्षेत्र घोषित कर सकती है. अस्पताल, शैक्षणिक संगठन और कोर्ट के 100 मीटर के दायरे में ऐसे कार्यक्रम नहीं कराए जा सकते, क्योंकि सरकार इन क्षेत्रों को शांत जोन क्षेत्र घोषित कर सकती है।

ध्वनि प्रदूषण पर कितना जुर्माना?-Noise Pollution Rules 2000 में ध्वनि प्रदूषण पर 01 हजार से एक लाख रूपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। लाउडस्पीकर से तय लिमिट से ज्यादा ध्वानि निकलने पर 10 हजार का जुर्माना और लाउडस्पीकर को सीज करने का प्रावधान है। इसके साथ डीजे आदि से 10 हजार से एक लाख तक रूपए का जुर्माना (सब्जेक्ट टू साइट पर निर्भर यानि डीजे का साइज) और सीज करने का प्रावधान है। 
 
कितना खतरनाक है तेज साउंड?-तेज आवाज से होने वाले मनुष्य के नुकसान पर ईनटी विशेषज्ञ डॉक्टर नितिन श्रीवास्तव कहते हैं कि तेज आवाज के कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं। साउंड कान के पर्दे पर ठकराने से कान के पर्दे के हेयरसेल (hair cells) व्राइबेट करते है और व्राइबेशन से करंट जनरेट होता है जो साउंड को मस्तिष्क तक पहुंचता है। इससे दो तरह के डैमेज हो सकता है। पहला फिजिकल डैमेज अगर 100 डेसीबल से उपर का साउंड कान के पर्दे पर पड़ेगा तो पर्दा लिमिट से ज्यादा वाइब्रेट करने पर फट सकता है। 
दूसरा अगर तेज आवाज लगातार कान के पर्दे पर पहुंचती है तो हेयर सेल ज्यादा वाइब्रेट होकर डैमेज हो जाते है और साउंड को इलेक्ट्रिक करंट में कन्वर्ट नहीं कर पाते जिससे कम सुनने की समस्या होती है। अगर पर्दा फटा है तो सर्जरी से सहीं हो सकता है लेकिन अगर हेयर (hair cells) डैमेज हो गए है, आसान शब्दों में कहे कान की नस कमजोर हो गई हो तो उसको सही नहीं किया जा सकता। इसके साथ गभवर्ती महिलाओं में पल रहे गर्भस्थ शिशु को तेज साउंड बहुत इफेक्ट करता है। 
 
क्या कहते हैं पर्यावरणविद् ?-पर्यावरणविद् सुभाषचंद्र पांडे कहते है ध्वानि प्रदूषण को रोकने के लिए पहले से बहुत कड़े प्रावधान है। Noise Pollution Rules 2000 ध्वनि प्रदूषण को रोकने में पहले से सक्षम है, लेकिन सवाल यह है कि सरकार या जिम्मेदार एजेंसियां जब तक इस पर अमल करने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाएगी तब तक आम जनता परेशान  होती रहेगी। 
सुभाषचंद्र पांडे आगे कहते हैं कि इसको इस बात से आसानी से समझा जा सकता है कि पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में दो साल में ध्वनि प्रदूषण को लेकर केसों की संख्या जोरी है। ऐसे में दुर्भाग्य की बात है कि जिम्मेदार संस्था पहले से बने नियमों को ही लागू नहीं कर पा रही है,अगर इन नियमों को अमलीजामा पहना दिया जाए तो आमजनमानस को बहुत बड़ी राहत मिल जाए। ऐसे में नए नियम बनाने की बात करना बेईमानी है।

सुभाष चंद्र पांडे कहते हैं कि मनुष्य के कान 85 डेसीबेल से अधिक की ध्वनि को संतुलित नहीं कर सकते है। वहीं ध्वनि प्रदूषण जलीय जीव जंतुओं को भी काफी नुकसान पहुंचाता है। अगर वाइल्ड एरिया में हो रहा है कि तो जंगली जंतुओं में नुकसान पहुंचा रहा है,ध्वनि प्रदूषण से जंगली जंतु हिंसक के साथ अक्रामक हो रहे है।

लाउडस्पीकर मौलिक अधिकार का उल्लंघन?-लाउडस्पीकर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि अगर किसी के पास बोलने का अधिकार है तो दूसरे के पास सुनने या सुनने से इनकार करने का अधिकार है। लाउडस्पीकर से जबरदस्ती शोर सुनने को बाध्य करना दूसरों के शांति और आराम से प्रदूषणमुक्त जीवन जीने के अनुच्छेद-21 में मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। अनुच्छेद 19(1)ए में मिला अधिकार अन्य मौलिक अधिकारों को हतोत्साहित करने के लिए नहीं है।

ध्वनि प्रदूषण को लेकर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि किसी को इतना शोर करने का अधिकार नहीं है जो उसके घर से बाहर जाकर पड़ोसियों और अन्य लोगों के लिए परेशानी पैदा करे। कोर्ट ने कहा था कि शोर करने वाले अक्सर अनुच्छेद 19(1)ए में मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की शरण लेते हैं। लेकिन कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर चालू कर इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता। 

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