नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बीबीसी द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बनाए गए वृत्तचित्र को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) परिसर में प्रदर्शित करने के आरोप में निष्कासित छात्र नेता की अर्जी पर मंगलवार को संस्थान से जवाब तलब किया। अदालत ने टिप्पणी की कि डीयू के आदेश से ऐसा प्रतीत नहीं होता कि आदेश जारी करते समय खुली सोच के साथ पूरे प्रकरण पर विचार किया गया है।
न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने डीयू को अपना जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए 3 दिन का समय दिया। पीठ ने साथ ही यह भी कहा कि अनुशासनात्मक कार्रवाई करने वाले प्राधिकारियों को 'नेशनल स्टूडेंट्स् यूनियन ऑफ इंडिया' (एनएसयूआई) के राष्ट्रीय महासचिव व पीएचडी शोधार्थी लोकेश चुघ को अपना पक्ष रखने के लिए अवसर देना चाहिए था।
न्यायमूर्ति कौरव ने टिप्पणी की कि डीयू द्वारा खुली सोच के साथ मामले पर विचार करना चाहिए था, जो आदेश में प्रतिबिंबित नहीं होता। आप वैधानिक प्राधिकार हैं। आप विश्वविद्यालय हैं। जिस आदेश को चुनौती दी गई है उसमें ऐसा प्रतीत होता है कि विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया। चुनौती दिए गए आदेश में तर्क प्रतिबिंबित होना चाहिए था।
गौरतलब है कि इस महीने के शुरू में याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का रुख किया और गुजरात में वर्ष 2002 के दौरान हुए दंगों पर बीबीसी द्वारा तैयार वृत्तचित्र 'इंडिया : द मोदी क्वेश्चन- रिलेटेड टू द गोधरा राइट्स' को प्रदर्शित करने में कथित तौर पर संलिप्त होने पर 1 साल के लिए निष्कासित किए जाने के आदेश को चुनौती दी।
डीयू की ओर से पेश अधिवक्ता एम. रूपल ने हालांकि याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले अपनाई गई प्रक्रिया व दस्तावेजों को अदालत के समक्ष पेश करते हुए कहा कि अधिकारियों ने निष्कासन आदेश पारित करते हुए सभी पहलुओं पर गौर किया था।
इस पर अदालत ने कहा कि विश्वविद्यालय इस स्तर पर अनुपूरक कारण देने की कोशिश कर रहा है। इसके साथ ही अधिकारियों को जवाब दाखिल करने का आदेश देते हुए अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 24 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध कर दी।(भाषा)