कोरोनिल से जुड़े मामले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने बाबा रामदेव को भेजा नोटिस

शुक्रवार, 9 सितम्बर 2022 (00:21 IST)
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि कोरोनिल के उपयोग को लेकर रामदेव के खिलाफ चिकित्सकों के विभिन्न संगठनों द्वारा दायर मुकदमों पर वह 6 अक्टूबर को सुनवाई करेगी। अदालत ने योग गुरु से कहा कि वह चिकित्सकों के संगठनों की याचिकाओं पर जवाब दायर करें जिनमें कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय में लंबित कथित रूप से समान याचिकाओं के कारण यहां सुनवाई नहीं रुकनी चाहिए।
 
कोरोनिल पतंजलि आयुर्वेद द्वारा विकसित एक दवा है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवाई के रूप में सरकार के पास पंजीकृत है। न्यायमूर्ति अनूप जयराम भम्भानी ने प्रतिवादियों रामदेव, पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और अन्य को वादियों (चिकित्सकों के संगठन) द्वारा दी गई अर्जियों पर नोटिस जारी किया और कहा कि मैं आपको कुछ समय दूंगा। हमें (उच्चतम न्यायालय में लंबित) रिट याचिका को देखना होगा। मैं आपके मामले पर किसी और दिन संक्षिप्त सुनवाई करुंगा।
 
अदालत ने आदेश दिया कि सारांश यह है कि वादी 26 अगस्त के आदेश पर स्पष्टीकरण चाहते हैं। उनका कहना है कि आदेश में दिए गए निर्देशों के कारण आधी सुनवाई के बाद इस मामले पर आगे की सुनवाई नहीं रुकनी चाहिए। नोटिस जारी करें। अगली तारीख से पहले अर्जियों पर जवाब दाखिल होने दें।
 
गौरतलब है कि चिकित्सकों के कई संगठनों/एसोसिएशन ने पिछले साल उच्च न्यायालय में अर्जी देकर आरोप लगाया था कि रामदेव बहुत हद तक लोगों को गुमराह कर रहे हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की मौत के लिए एलोपैथी जिम्मेदार है और दावा कर रहे हैं कि पतंजलि का कोरोनिल कोविड का इलाज है।
 
वादियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल ने दलील दी कि वहां सुनवाई कब होगी इस पर किसी का वश नहीं है और उच्चतम न्यायालय में तारीख कम्प्यूटर से तय होती है, उच्चतम न्यायालय में किसी अन्य द्वारा दायर याचिकाओं के कारण उच्च न्यायालय में सुनवाई नहीं रुकनी चाहिए।
 
प्रतिवादियों में से एक, पतंजलि की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इन्द्रबीर सिंह ने कहा कि उसने मौजूदा सुनवाई को उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में लाने के लिए आवेदन दे दिया है और उसके जल्दी ही सूचीबद्ध होने की संभावना है।
 
गौरतलब है कि अदालत ने 26 अगस्त को मौखिक आदेश में कहा था कि न्यायिक औचित्य और अनुशासन के अनुसार तो उच्चतम न्यायालय में कथित रूप से समान मुद्दे पर लंबित याचिकाओं पर कुछ स्पष्ट होने तक उसे अपने समक्ष होने वाली सुनवाई पर नियंत्रण रखना चाहिए।(भाषा)

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