पुनर्वसु ऐसे सर्वे, आलेखों और पुस्तकों से पूरी तरह असहमत दिखे, जिनमें यह दावा किया जाता है कि हिन्दी तेजी से बढ़ रही है और आने वाले समय में चीन की मंदारिन भाषा से भी आगे निकल जाएगी। वे कहते हैं कि हिन्दी की स्थिति वैसी नहीं है, जैसा प्रचारित किया जा रहा है। उन्हें इस बात का भी मलाल है कि हम अपनी भाषा को उतना सम्मान नहीं देते, जितना बाहर के देशों में उनकी भाषा को मिलता है।