उन्होंने 18वीं लोकसभा में पहली बार संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अपने अभिभाषण में कहा कि 1 जुलाई से देश में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) भी लागू हो जाएगी। राष्ट्रपति ने कहा कि अंग्रेजी राज में गुलामों को दंड देने की मानसिकता थी और दुर्भाग्य से आजादी के कई दशकों बाद तक गुलामी के दौर की यही दंड व्यवस्था चलती रही।
दंड की जगह न्याय को प्राथमिकता होगी : राष्ट्रपति ने कहा कि इसे बदलने की चर्चा कई दशकों से की जा रही थी लेकिन यह साहस भी मौजूदा सरकार ने ही करके दिखाया है। अब दंड की जगह न्याय को प्राथमिकता होगी, जो हमारे संविधान की भी भावना है। इन नए कानूनों से न्याय प्रक्रिया में तेजी आएगी। आज जब देश अलग-अलग क्षेत्रों में गुलामी की मानसिकता से मुक्ति पा रहा है तब यह (न्याय व्यवस्था में बदलाव) उस दिशा में बहुत बड़ा कदम है और यह हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि भी है।
संशोधित कानून 1 जुलाई से लागू किए जाएंगे : देश में मौजूदा आपराधिक कानूनों भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में संशोधन करके 'दंड' के बजाय उनमें 'न्याय' को प्राथमिकता दी गई है और उनके स्थान पर संशोधित कानून, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) 1 जुलाई से लागू किए जाएंगे।
मुर्मू ने कहा कि सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के तहत शरणार्थियों को नागरिकता देना शुरू कर दिया है और इससे बंटवारे से पीड़ित अनेक परिवारों के लिए सम्मान का जीवन जीना सुनिश्चित हुआ है। जिन परिवारों को सीएए के तहत नागरिकता मिली है, मैं उनके बेहतर भविष्य की कामना करती हूं।
सीएए के तहत नागरिकता प्रमाण पत्र का पहला सेट 15 मई को दिल्ली में 14 लोगों को जारी किया गया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तराखंड और भारत के अन्य हिस्सों में शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की।(भाषा)