भारत ने चीन से कई बार इस पर अपना कड़ा विरोध जताया है और इस तरह की गतिविधियों को तुरंत रोकने की मांग की है। भारत सरकार इन प्रोजेक्ट्स से भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और अखंडता पर पड़ने वाले प्रभावों की निगरानी कर रही है।
भारत ने किसी भी पिछली एससीओ बैठक या शिखर सम्मेलन में बीआरआई का समर्थन नहीं किया है। घोषणा-पत्र में कहा गया कि आठ सदस्य राष्ट्रों ने इस परियोजना के संयुक्त कार्यान्वयन पर जारी कार्य पर ध्यान दिया, जिसमें यूरेशियन आर्थिक संघ और बीआरआई के विकास को एक-दूसरे के साथ तालमेल में लाने के प्रयास भी शामिल हैं।
इसमें कहा गया है कि सदस्य देश यह मानते हैं कि यूरेशिया में आपसी सहयोग के लिए एक व्यापक, खुला, पारस्परिक लाभकारी और न्यायसंगत क्षेत्र बनाने के उद्देश्य से, इस क्षेत्र के देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और बहुपक्षीय संघों की क्षमताओं का उपयोग करना महत्वपूर्ण है और यह सब अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों और नियमों के अनुसार, तथा प्रत्येक देश के राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।”
सीपीईसी से है क्या कनेक्शन
घोषणा पत्र में कहा गया है कि इस संबंध में उन्होंने ग्रेटर यूरेशियन साझेदारी स्थापित करने की पहल दोहराई तथा बातचीत करने की अपनी तत्परता व्यक्त की।" भारत बीआरआई की कड़ी आलोचना करता रहा है, क्योंकि इस परियोजना में तथाकथित चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) शामिल है, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है। शिखर सम्मेलन में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि जो कनेक्टिविटी परियोजनाएं संप्रभुता को दरकिनार करती हैं, वे विश्वास और अर्थ दोनों खो देती हैं।
उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि कनेक्टिविटी की दिशा में हर प्रयास में संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांतों को बरकरार रखा जाना चाहिए। यह एससीओ चार्टर के मूल सिद्धांतों में भी निहित है। इस परियोजना की वैश्विक आलोचना भी हो रही है, क्योंकि इस पहल से संबंधित परियोजनाओं को क्रियान्वित करते समय कई देश ऋण के बोझ तले दब रहे हैं। इनपुट एजेंसियां Edited by : Sudhir Sharma