पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी जंग अब रोचक होती जा रही है। बंगाल के दुर्ग पर पहली बार भगवा फहराने के लिए जहां भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है वहीं दस साल से सत्ता में काबिज मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर बंगाल के दुर्ग को अभेद बनाने की रणनीति बनाने में जुटे हुए है।
आमतौर पर सीधे सियासी आरोप-प्रत्यारोप से दूर रहकर अपने काम पर फोकस करने वाले प्रशांत किशोर ने पहली बार बंगाल में भाजपा के प्रदर्शन को लेकर सीधे भविष्यवाणी कर दी है। गृहमंत्री अमित शाह के दो दिनों के बंगाल दौरे के बाद प्रशांत किशोर ने दावा किया कि बंगाल में भाजपा दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पाएगी,वहीं दूसरे दिन भाजपा के 200 से अधिक सीट जीतने के दावे पर सवाल उठाते हुए भाजपा नेताओं को सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार करने की चुनौती दी कि अगर भगवा दल पश्चिम बंगाल में 200 सीटें हासिल करने में विफल रहा तो वे अपने पद छोड़ देंगे।।
For all the hype AMPLIFIED by a section of supportive media, in reality BJP will struggle to CROSS DOUBLE DIGITS in #WestBengal
PS: Please save this tweet and if BJP does any better I must quit this space!
आखिर प्रशांत किशोर के इन दावों के पीछे क्या आधार है और प्रशांत और उनकी टीम किस तरह बंगाल में ममता सरकार की हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रही है। इसको समझने के लिए प्रशांत किशोर के बंगाल के चुनावी रण को लेकर तैयार किए गए चुनावी व्यूह को समझना होगा।
बंगाल में बाहरी का हिट फार्मूला- बंगाल में भाजपा की एंट्री को रोकने के लिए प्रशांत किशोर ने तृणमूल कांग्रेस का पूरा चुनावी कैंपेन मां-माटी और मानुष को केंद्रित में रख कर बनाया है। बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत टीएमसी के हर बड़े और छोटे नेताओं की ओर से भाजपा के नेताओं को बार-बार बाहरी कहना इसी रणनीति का पहला और प्रमुख हिस्सा है। भाजपा नेताओं को बाहरी बताकर प्रशांत किशोर पूरे चुनाव को बंगाल की अस्मिता की मोड़ पर लाकर खड़ा करना चाह रहे है और जिसका सीधा फायदा चुनाव के समय में सीधे ममता बनर्जी को होने की उम्मीद है।
असल में बाहरी चुनावी दांव प्रशांत किशोर का हिट फॉर्मूला है। 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में जब प्रशांत किशोर नीतीश से सारथी थे तब नीतीश ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह को बाहरी बताकर भाजपा की जीत के अश्वमेध घोड़े को बिहार में रोक दिया था।
2014 में भाजपा के लिए काम कर चुके प्रशांत किशोर की इस अचूक रणनीति को भाजपा के रणनीतिकार भी अच्छी तरह समझते है इसलिए चुनाव के बहुत पहले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह तक लगातार बाहरी की काट के लिए बंगाल के महापुरुषों को याद कर रहे है और कदम-कदम पर बंगाल की स्थानीय संस्कृति और रीति रिवाजों को अपनाकर बंगाल के दिल में उतरने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए लेकिन इसी बाहरी का जवाब देने के फेर में वह कहीं न कहीं PK के जाल में फंसते हुए भी दिखाई दे रहे है।
डोर-टू-डोर कैंपेन से ममता सरकार की छवि गढ़ने पर फोकस- 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद बंगाल में भाजपा की एंट्री को रोकने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की कंपनी आईपैक (I-PAC) को चुना। प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी ने बंगाल में काम संभालने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार की छवि को नए सिरे से गढ़ने का काम शुरु किया है।
प्रशांत किशोर ने चुनाव से ठीक पहले ममता सरकार के काम को लोगों तक पहुंचाने पर फोकस किया। इसके लिए ममता सरकार ने चुनाव से ठीक पहले पूरे बंगाल में दुआरे-दुआरे पश्चिम बोंगो सरकार (हर द्वार बंगाल सरकार) अभियान चला रखा है। सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी का चार चरणों में चल रहा यह अभियान अगले साल 30 जनवरी तक चलेगा। इस अभियान के तहत ग्राम पंचायतों से लेकर शहरों के वार्डों तक शिविरों का आयोजन कर सरकार की 11 महत्वपूर्ण योजनाओं को घर-घर पहुंचाने का फोकस किया गया है।
सरकार की योजनाओं को लोगों के घर-घर पहुंचक सत्ता में वापसी करना प्रशांत किशोर का अजमाया हुआ हिट फॉर्मूला है। बंगाल से पहले दिल्ली में भी प्रशांत किशोर की सलाह पर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने डोर-टू-डोर कैंपेन चलाकर सत्ता में वापसी की थी।
बूथ मैनेजमेंट पर फोकस- भाजपा की जीत की असली ताकत उसका बूथ मैनेजमेंट है। बंगाल में भाजपा के बूथ मैनेजमेंट पर खुद सीधे तौर पर अमित शाह की निगरानी है। चुनाव से ठीक पहले अमित शाह ने अपने देश भर के चुने हुए सिपाहसालारों को बंगाल में तैनात कर दिया है। भाजपा के इसी बूथ मैनेंजमेंट की काट के लिए प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी आईपैक टीएमसी के बूथ को मजबूत करने को टारगेट कर लिया है।
बूथ पर फोकस करने के लिए और पार्टी के बूथ कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने का काम खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने हाथों में संभाल लिया है। प्रशांत किशोर अच्छी तरह जानते है कि अगर भाजपा को बंगाल में एंट्री से रोकना है तो पार्टी की चुनावी रणनीति को चुनावी बूथ स्तर तक लागू करना होगा। चुनाव से ठीक पहले ममता बनर्जी ने जिला और ब्लॉक समितियों में जो कई बड़े बदलाव किए है उसके पीछे प्रशांत किशोर की ही सलाह मानी जा रही है।
टिकट में लागू होगा PK फॉर्मूला- प्रत्याशियों का चयन चुनाव में जीत का सबसे बड़ा फॉर्मूला होता है। बंगाल में टीएमसी के टिकट बंटवारें में प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी की ओर से किया गया चुनावी सर्वे बहुत अहम रोल अदा करेगा। बंगाल में टीएमसी को चुनाव जीतने की जिम्मेदारी मिलने के बाद जब प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी आईपैक ने विधायकों के कामकाज में दखल देकर उनको सलाह देने का काम शुरु किया तो उसका कुछ विधायकों ने खुला विरोध भी किया और टीएमसी में एक बगावत की चिंगारी सुलगने लगी। बंगाल की राजनीति के जानकर भी यह मानते हैं कि ममता के करीबी रहे शुभेंद्र अधिकारी भी प्रशांत किशोर के कामकाज और उनके पार्टी में दखल से नाराज होकर भाजपा में शामिल हुए।