फॉर्मूला दूध कंपनियां स्तनपान को हतोत्साहित करने के लिए शोषणकारी हथकंडे अपना रहीं
सोमवार, 13 फ़रवरी 2023 (23:25 IST)
नई दिल्ली। फॉर्मूला दुग्ध उद्योग के विपणन (मार्केटिंग) संबंधी हथकंडे शोषणकारी हैं, जो स्तनपान को हतोत्साहित करते हैं। 'द लांसेट' में प्रकाशित 3 शोधपत्रों की श्रृंखला में यह दावा किया गया है। डब्ल्यूएचओ ने एक बयान में कहा कि फॉर्मूला दूध का सघन विपणन काफी हद तक बेरोकटोक जारी है और इन उत्पादों की बिक्री का आंकड़ा अब प्रतिवर्ष 55 अरब अमेरिकी डॉलर के पास पहुंच गया है।
इसमें भ्रमित करने वाले दावों और राजनीतिक हस्तक्षेप से निपटने के लिए तुरंत सख्त कार्रवाई की अपील की गई है। ये शोधपत्र सुझाते हैं कि उद्योग का यह प्रभाव (जिसमें अहम स्तनपान समर्थक उपायों के खिलाफ लामबंदी (लॉबिंग) करना शामिल है) महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और अधिकारों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) में वैज्ञानिक और फॉर्मूला दुग्ध विपणन पर एक शोधपत्र के लेखक प्रोफेसर निगेल रोलिंस ने कहा कि नया शोध बड़ी फॉर्मूला दूध कंपनियों की व्यापक आर्थिक और राजनीतिक ताकत तथा सार्वजनिक नीति की गंभीर नाकामी पर प्रकाश डालता है, जो लाखों महिलाओं को अपने बच्चों को स्तनपान कराने से रोकती है।
रोलिंस ने कहा कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्रवाई की जरूरत है, ताकि महिलाएं जब तक चाहें, तब तक उन्हें स्तनपान के लिए बेहतर समर्थन दिया जा सके। उन्होंने कहा कि इसके साथ फॉर्मूला दूध के शोषणकारी विपणन से निपटने के लिए प्रयास किए जाएं।
लांसेट की शोधपत्रों की श्रृंखला में स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में स्तनपान के लिए अधिक समर्थन दिए जाने की सिफारिश की गई है, जिसमें पर्याप्त वैतनिक मातृत्व अवकाश की गारंटी देना शामिल है। इसमें कहा गया कि मौजूदा समय में 65 करोड़ महिलाएं के पास पार्याप्त मातृत्व सुरक्षा का अभाव है।
डेयर से लेकर फॉर्मूला दुग्ध उद्योग तक भ्रामक विपणन के दावे और रणनीति लामबंदी स्तनपान और शिशु देखभाल के बारे में चिंता बढ़ाकर माता-पिता की मुश्किलों में इजाफा कर देती है। 'वर्ल्ड हेल्थ असेंबली' ने 1981 में 'ब्रेस्ट-मिल्क सबस्टिट्यूट्स' के विपणन के लिए अंतरराष्ट्रीय कोड और अन्य प्रस्तावों को विकसित किया।
डब्ल्यूएचओ ने एक बयान में कहा कि फॉर्मूला दूध का सघन विपणन काफी हद तक बेरोकटोक जारी है और इन उत्पादों की बिक्री का आंकड़ा अब प्रतिवर्ष 55 अरब अमेरिकी डॉलर के पास पहुंच गया है।(भाषा)