8 सितंबर, 2025, की सुबह काठमांडू की सड़कों पर जो दृश्य उभरा, वह महज एक और राजनीतिक विरोध नहीं था; यह एक पूरी पीढ़ी का आक्रोश था। वह एक ऐसा क्षण था जब सदियों से संचित निराशा, आर्थिक असमानता और राजनीतिक भाई-भतीजावाद के खिलाफ युवा नेपालियों का धैर्य टूट गया। संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट की भव्य इमारतें धू-धू कर जल रही थीं, और हवा में पुलिस के आंसू गैस के गोले और प्रदर्शनकारियों के नारे गूंज रहे थे। अगले दिन, प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने न सिर्फ इस्तीफा दिया, बल्कि देश छोड़कर चले गए, जिससे सत्ता का एक नाटकीय शून्य पैदा हो गया। यह केवल एक सरकार का पतन नहीं था, बल्कि एक पूरी पीढ़ी का पुराने, जड़ हो चुके राजनीतिक ढांचे के खिलाफ एक हिंसक, अप्रत्याशित विद्रोह था।
यह उथल-पुथल भारत के लिए गंभीर सवाल खड़े करती है। नेपाल, जो भारत के साथ 1,751 किलोमीटर की खुली सीमा और 'रोटी-बेटी' का गहरा रिश्ता साझा करता है, उसकी अस्थिरता का सीधा असर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों पर पड़ता है। ऐसे में, यह विद्रोह भारत की 'पड़ोसी पहले' (Neighbourhood First) नीति के लिए एक बड़ी परीक्षा बन गया है। क्या नई दिल्ली का दृष्टिकोण, जो लंबे समय से नेपाल के सत्ता प्रतिष्ठान पर केंद्रित रहा है, अब पुराना पड़ गया है? क्या भारत इस नई पीढ़ी की आकांक्षाओं को समझने में विफल रहा है? यह रिपोर्ट इन्हीं प्रश्नों की पड़ताल करती है।
डिजिटल क्रांति का उदय: सोशल मीडिया से सड़कों तक विद्रोह की जड़ें: नेपोकिड्स और आर्थिक निराशा :
नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का लंबा इतिहास रहा है। 2008 में राजशाही के अंत के बाद से देश ने 14 सरकारें देखीं, जिनमें से कोई भी अपना पूर्ण कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। हालाँकि, इस बार का विद्रोह एक अलग प्रकृति का है। इसकी नींव किसी राजनीतिक दल ने नहीं, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर शुरू हुए एक सामाजिक अभियान ने रखी थी । 'नेपोकिड्स' (#NepoKids) नाम के इस अभियान ने राजनीतिक नेताओं के बच्चों की विलासितापूर्ण जीवनशैली को उजागर किया। सोशल मीडिया पर उनकी महंगी यात्राओं, ब्रांडेड कपड़ों और लग्जरी कारों की तस्वीरें और वीडियो वायरल हुए, जिनकी तुलना आम नेपाली युवाओं की बेरोजगारी और संघर्ष से की गई । यह अभियान नेपाल के 13-28 वर्ष के युवाओं (जेन Z) की आर्थिक निराशा और उस असमानता के खिलाफ उनके गुस्से को दर्शाता है, जिसने सालों से देश को जकड़ रखा है।
चिंगारी: सोशल मीडिया पर प्रतिबंध : विद्रोह का तात्कालिक ट्रिगर 4 सितंबर को सरकार का 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर प्रतिबंध था। सरकार ने इस कदम को 'पंजीकरण नियमों' के अनुपालन का हवाला देते हुए सही ठहराया, लेकिन आलोचकों ने इसे 'नेपोकिड्स' जैसे भ्रष्टाचार-विरोधी अभियानों को दबाने की साजिश बताया। यह प्रतिबंध एक सुलगती हुई आग में पेट्रोल डालने जैसा था। यह केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक हमला नहीं था, बल्कि एक ऐसी पीढ़ी पर सीधा हमला था जो तकनीक और विचारों की स्वतंत्रता के साथ बड़ी हुई थी। इस प्रतिबंध ने युवाओं के गुस्से को सड़कों पर उतार दिया और एक ऑनलाइन आंदोलन एक प्रत्यक्ष क्रांति में बदल गया।
डिजिटल से प्रत्यक्ष तक, आंदोलन का रूपांतरण : शुरुआत में, विरोध-प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे, जिनमें युवा इंस्टाग्राम पर मीम्स और रील्स के माध्यम से अपनी बात कह रहे थे और डिस्कॉर्ड जैसे निजी प्लेटफॉर्मों पर समन्वय कर रहे थे। लेकिन जब ये प्रदर्शनकारी संसद भवन की ओर बढ़े तो पुलिस ने उन पर गोलियां, रबर बुलेट्स और आंसू गैस का इस्तेमाल किया, जिसमें 19 लोगों की मौत हो गई। यह घटनाक्रम एक नए प्रकार की क्रांति के जन्म का प्रतीक है। पारंपरिक विरोध प्रदर्शनों के विपरीत, नेपाल का यह आंदोलन एक 'हाइब्रिड मॉडल' का प्रतिनिधित्व करता है, जो डिजिटल साधनों से शुरू होकर भौतिक दुनिया में फैल गया। इस आंदोलन का नेतृत्व किसी पारंपरिक राजनीतिक दल या नेता ने नहीं किया, बल्कि यह एक विकेन्द्रीकृत, सामूहिक और ऑनलाइन-समन्वित आंदोलन था। यह दक्षिण एशिया में विरोध की एक नई शैली का संकेत देता है जो पारंपरिक राजनीतिक ढांचे को बाईपास कर सीधे जनता के साथ संवाद करती है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध सिर्फ एक तात्कालिक ट्रिगर था; असली कारण दशकों से चला आ रहा भ्रष्टाचार और आर्थिक असमानता था।
अनियंत्रित विद्रोह: अराजकता से हिंसा और विध्वंस : पुलिस की गोलीबारी के बाद हिंसा तेज़ी से भड़की। प्रदर्शनकारियों ने सुप्रीम कोर्ट, संसद भवन और पूर्व प्रधानमंत्री ओली के आवास को आग लगा दी। स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्रालय के अनुसार, हिंसक प्रदर्शनों में मरने वालों की संख्या बढ़कर 30 हो गई, जबकि 1,061 लोग घायल हुए। आंदोलन के आयोजकों जैसे अनिल बनिया (हामी नेपाल) ने यह दावा किया कि उनके शांतिपूर्ण आंदोलन को 'बाहरी ताकतों' ने हाईजैक कर लिया था। यह घटनाक्रम दिखाता है कि आंदोलन अपने मूल शांतिपूर्ण उद्देश्यों से भटक गया, और विकेन्द्रीकृत नेतृत्व की कमी इस अराजकता का एक प्रमुख कारण बन गई।
जेल तोड़कर भागे कैदी: एक खतरनाक आयाम : हिंसा का सबसे खतरनाक और अप्रत्याशित पहलू जेलों में हुई तोड़फोड़ और हजारों कैदियों का भागना था। देश भर की जेलों से लगभग 15,000 कैदी भाग गए, जिससे सुरक्षा बलों को नियंत्रण पाने में भारी संघर्ष करना पड़ा। अकेले सिंधुली जेल से 471 कैदी, जिनमें 28 महिलाएँ भी शामिल थीं, भाग गए। इस घटना ने न सिर्फ नेपाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति को गंभीर बना दिया, बल्कि भारत की सीमा सुरक्षा के लिए भी एक गंभीर खतरा पैदा कर दिया, क्योंकि कुछ भागे हुए कैदी भारत में पकड़े गए थे। यह घटना इस बात को दर्शाती है कि कैसे आंदोलन का बिना-नेतृत्व वाला स्वरूप उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गया, जब आपराधिक तत्वों ने अराजकता का फायदा उठाया और उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए।
अनिश्चितता के नए दौर में नए नेतृत्व की तलाश : प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे के बाद भी विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है, क्योंकि प्रदर्शनकारी संसद भंग करने और एक नागरिक-नेतृत्व वाली सरकार की मांग पर अड़े हैं। जेन Z समूह के प्रतिनिधि राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और सेना प्रमुख अशोक राज सिग्देल के साथ अंतरिम सरकार के नेता के नाम पर बातचीत कर रहे हैं। अंतरिम सरकार के नेतृत्व के लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की, काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह और अन्य प्रमुख नामों पर विचार किया जा रहा है। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है। एक तरफ यह युवाओं द्वारा लोकतंत्र को मजबूत करने का प्रयास है, वहीं दूसरी तरफ, सरकारी संस्थानों पर हमला एक विरोधाभास प्रस्तुत करता है। क्या युवा पुराने और भ्रष्ट ढांचे को नष्ट करके एक नए लोकतंत्र का निर्माण कर रहे हैं, या वे अपनी ही लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रहे हैं?
भारत की दुविधा: क्या 'रोटी-बेटी' का रिश्ता काफी है? पारंपरिक संबंधों की सीमा : भारत और नेपाल के संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से गहरे हैं। 1950 की शांति एवं मैत्री संधि दोनों देशों के लोगों को खुली सीमा के पार मुक्त आवागमन की अनुमति देती है। भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जो उसके कुल व्यापार का लगभग 60% हिस्सा है। 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार $7.87 बिलियन था। नेपाल की जीडीपी का लगभग 26% हिस्सा भारत में काम करने वाले नेपालियों द्वारा भेजे गए धन (रिमिटेंस) से आता है। हालांकि, ये पारंपरिक और आर्थिक संबंध अकेले अब एक नई पीढ़ी के सामने पर्याप्त नहीं हैं।
सीमा विवाद और राजनीतिक संवेदनशीलता : भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद, विशेषकर कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को लेकर, लंबे समय से तनाव का कारण रहे हैं। 2020 में नेपाल द्वारा एक नया नक्शा जारी कर इन क्षेत्रों को अपना बताया गया, जिससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संवाद ठप हो गया। इस तनावपूर्ण माहौल में, बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी का बयान कि "अगर नेपाल भारत का हिस्सा होता तो शांति और खुशी होती," ने नेपाली युवाओं में आक्रोश फैला दिया। इस बयान ने भारत की 'बड़े भाई' की छवि को और मजबूत किया, जिससे नेपालियों की राष्ट्रीय अस्मिता पर चोट पहुंची।
भारतीय 'गोदी मीडिया' का नकारात्मक प्रभाव : विद्रोह के दौरान भारतीय 'गोदी मीडिया' की कवरेज ने भारत-विरोधी भावना को और भड़काया। कई नेपाली नागरिकों ने भारतीय पत्रकारों को 'अफवाह फैलाने वाला' और 'प्रचारक' कहकर उनसे बात करने से इनकार कर दिया। कुछ भारतीय चैनलों ने यह झूठा नैरेटिव चलाया कि नेपाल में 'हिंदू राष्ट्र' की मांग हो रही है, जबकि विद्रोह का मूल कारण भ्रष्टाचार और कुशासन था। यह घटना दर्शाती है कि भारत की विदेश नीति, जो पारंपरिक रूप से नेपाल के सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़ी रही है, अब अप्रभावी हो गई है। असली शक्ति और भावना अब सड़कों और सोशल मीडिया पर है, जिसका भारत ने सही आकलन नहीं किया। नेपालियों को इस बात का गर्व है कि वे कभी किसी के गुलाम नहीं रहे, और भारतीय राजनेताओं व मीडिया का हस्तक्षेप उन्हें अपमानजनक लगता है। यह विद्रोह दर्शाता है कि नेपाल की नई पीढ़ी भारत को एक 'समान भाई' के रूप में देखना चाहती है, न कि 'बड़े भाई' के रूप में।
भू-राजनीतिक शतरंज: चीन के लिए खुला मैदान? नेपाल में चीन का बढ़ता प्रभाव : नेपाल की सामरिक स्थिति (भारत और चीन के बीच) इसे दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक मोहरा बनाती है। चीन ने नेपाल में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत बड़े पैमाने पर निवेश किया है, जिसमें सड़कें और रेल परियोजनाएं शामिल हैं। हालांकि, नेपाल में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता इन परियोजनाओं को प्रभावित कर सकती है। इसके बावजूद, यह अस्थिरता चीन के लिए एक सुनहरा अवसर भी प्रस्तुत करती है। जब भारत की पारंपरिक कूटनीति विफल होती है और भारत विरोधी भावना बढ़ती है, तो एक रणनीतिक शून्य का निर्माण होता है। चीन इस शून्य को 'स्थिरता' और 'आर्थिक विकास' के वादे के साथ भरने के लिए तैयार है। चीन के बीआरआई जैसे बड़े बुनियादी ढाँचे निवेश भारत के पारंपरिक 'सॉफ्ट पावर' दृष्टिकोण के लिए एक सीधी चुनौती हैं।
नेपाल का जेन Z विद्रोह केवल एक स्थानीय घटना नहीं है। इसे श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देशों में भी देखी गई युवा असंतोष की व्यापक प्रवृत्ति के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यह दक्षिण एशिया में एक पीढ़ीगत बदलाव का संकेत है, जहां युवा भ्रष्टाचार और कुशासन से तंग आकर पुराने राजनीतिक ढांचे को चुनौती दे रहे हैं।
भारत के लिए एक नई रणनीति : भारत के लिए यह संकट एक चेतावनी और एक अवसर दोनों है। अपनी पारंपरिक 'पड़ोसी पहले' नीति को प्रभावी बनाने के लिए, भारत को एक आमूल-चूल बदलाव की आवश्यकता है। पारंपरिक कूटनीति से परे भारत को केवल नेपाल के अभिजात वर्ग के साथ संबंध बनाने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, सीधे उसके युवाओं के साथ संवाद स्थापित करना होगा। यह एक पीढ़ीगत बदलाव को स्वीकार करने की मांग करता है, जिसमें भारत को सिर्फ सरकार से ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों और उनके आकांक्षाओं से भी जुड़ना होगा।
सॉफ्ट पावर का पुनरुद्धार : भारत की पारंपरिक सॉफ्ट पावर (संस्कृति, धर्म, बॉलीवुड) नेपाल में अभी भी प्रभावी है, लेकिन यह अब अकेले पर्याप्त नहीं है। भारत को अपनी सॉफ्ट पावर को आर्थिक और डिजिटल शक्ति में बदलना होगा। इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं:
शिक्षा और कौशल विकास: भारतीय संस्थानों में नेपाली युवाओं के लिए विशेष शैक्षिक छात्रवृत्तियां और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करना।
डिजिटल सहयोग: आईटी, पर्यटन और स्टार्टअप जैसे क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करना और डिजिटल कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना।
संचार रणनीति: भारतीय मीडिया को अपनी नेपाल कवरेज में अधिक संवेदनशीलता और निष्पक्षता दिखाने के लिए प्रोत्साहित करना। यह एक प्रभावी संचार रणनीति का हिस्सा होगा, जो दोनों देशों के बीच गलतफहमी को दूर कर सके।
क्या भारत सुन रहा है : नेपाल का जेन Z विद्रोह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है। यह दर्शाता है कि भारत की विदेश नीति को केवल सरकारों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय लोगों की भावनाओं और आकांक्षाओं को भी शामिल करना होगा। यदि भारत ने नेपाल के युवाओं को साझेदार के रूप में स्वीकार किया और उनकी जरूरतों को समझा, तो यह संबंध और मजबूत होंगे। अन्यथा, हिमालयी बफर जोन में बढ़ती भारत विरोधी भावना चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी के लिए एक नया अवसर पैदा कर सकती है। नेपाल का जेन Z कह रहा है – 'यह हमारी बारी है'। अब सवाल यह है कि क्या भारत सुन रहा है?
Edited By: Navin Rangiyal