क्या आप जानते हैं नाथू ला के हीरो को, जिसने उड़ा दिए थे सैकड़ों चीनियों के चिथड़े...
बुधवार, 17 जून 2020 (13:06 IST)
भारत और चीन के सैन्य रिश्ते हमेशा से ही तनावपूर्ण रहे हैं। डोकलाम, चूशुल, अरुणाचल और सिक्किम सहित 3 हजार किमी से भी लंबी सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हमेशा से ही दोनों देशों के सैनिक या अर्धसैन्य बल मुस्तैद रहते हैं।
यूं तो चीन के पास हमेशा से ही सबसे बड़ा सैन्य बल रहा है और दुर्भाग्यवश भारत को चीन के हाथों 1962 में मुंह की खानी पड़ी। लेकिन, भारतीय सेना के कुछ अधिकारियों ने चीन को ऐसा सबक सिखाया जिसने लाल सेना की नाक तोड़ दी थी।
दरअसल 1967 में चीन ने पाकिस्तान की मदद करने के लिए भारत को एक तरह से अल्टीमेटम दिया था कि वो सिक्किम की सीमा पर नाथू ला और जेलेप ला की सीमा चौकियों को खाली कर दे। उन दिनों उस क्षेत्र में तैनात सगत सिंह डिविजन कमांडर थे, उन्होने नाथू ला को खाली करने से इनकार कर दिया।
धमकी के बाद 27 अगस्त, 1967 को चीनी सैनिकों ने नाथू ला की ओर बढ़ना शुरू किया। उसके बाद से ही नाथू ला में भारत व चीन के सैनिकों के बीच हमेशा आपस में भिड़ंत चलती रहती थी। इन झड़पों को बंद करने के लिए ले. जनरल सगत के आदेश पर नाथू ला सेक्टर में 11 सितम्बर 1967 को भारतीय सैनिकों ने तारबंदी शुरू कर दी। इसके बाद चीनी सेना ने बगैर किसी चेतावनी के जोरदार फायरिंग करना शुरू कर दिया। भारतीय सैनिक खुले में खड़े थे और इस अप्रत्याशित हमले में लेफ़्टिनेट कर्नल रायसिंह सहित बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक हताहत हो गए।
स्थिति की गंभीरता देखते हुए डिविजन कमांडर सगतसिंह ने हाई कमांड से तोपखाने के प्रयोग की अनुमति मांगी (उस समय तोपखाने के इस्तेमाल की अनुमति सिर्फ सेना प्रमुख या प्रधानमंत्री ही दे सकते थे)। दिल्ली से कोई आदेश मिलता नहीं देख जनरल सगत ने तोपों से चीनियों पर फायर करने के आदेश दिए और देखते ही देखते चीन के 300 सैनिक मार गिराए गए।
चीनी सेना इन तरह के जवाब की उम्मीद नहीं कर रही थी और भारी नुकसान के कारण उन्हें पीछे लौटना पड़ा। इसके बाद तो भारतीय सेना के मन से 1962 का वह मिथ भी मिट गया और भारतीय सैनिकों को पहली बार लगा कि चीनी भी हमारी तरह ही हैं और वो भी पिट सकते हैं और हार भी सकते हैं।
माना जाता है कि 1962 की लड़ाई में चीन के 740 सैनिक मारे गए थे। यह लड़ाई करीब एक महीने चली थी और इसका क्षेत्र लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैला हुआ था। लेकिन नाथूला में 1967 में मात्र तीन दिनों में चीन को अपने 300 सैनिकों से हाथ धोना पड़ा और करीब 400 चीनी सैनिक गंभीर घायल हुए, ये बहुत बड़ी संख्या थी।
एक एक बड़ा फायदा यह हुआ कि भारत के जवान को पता लग गया कि वो भी चीनियों को मार सकता है और उसने मारा भी। उस समय अखबार में एक रक्षा विश्लेषक ने इसे इस तरह बयां किया कि 'दिस वाज़ द फ़र्स्ट टाइम द चाइनीज़ हैड गॉट अ ब्लडी नोज'।