मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में वन नेशन-वन इलेक्शन पर अब तेजी से आगे बढ़ती दिख रही है। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने के केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार की उपलब्धियों को बताते हुए कहा कि सरकार के इसी कार्यकाल में एक देश, एक चुनाव लागू करेंगे। गौरतलब है कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में अपने घोषणा पत्र में एक राष्ट्र एक चुनाव की प्रमुखता से कही थी।
लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी ने की वकालत-इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से दिए अपने भाषण में एक देश एक चुनाव की वकालत करते हुए कहा था कि बार-बार चुनाव होने से देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न हो रही है, इसलिए राष्ट्र को एक देश, एक चुनाव के लिए आगे आना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राजनीतिक दलों से लाल किले से और राष्ट्रीय तिरंगे को साक्षी मानकर राष्ट्र की प्रगति सुनिश्चित करने का आग्रह किया था।
एक राष्ट्र-एक चुनाव को लेकर कमेटी ने सौंपी रिपोर्ट-वहीं एक राष्ट्र एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनाई गई समिति अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है। इसमें अनुच्छेद 325 में संशोधन और 324 A लागू करने की सिफारिश की गई है। 191 दिनों तक विशेषज्ञों और स्टेकहोल्डर्स से चर्चा के बाद कमेटी ने 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट दी है। इसमें सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाकर 2029 तक करने का सुझाव दिया गया है, जिससे लोकसभा चुनाव के साथ ही इनके चुनाव भी कराए जा सकें। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हंग असेंबली या नो कॉन्फिडेंस मोशन की स्थिति में पांच साल में से बचे समय के लिए नए चुनाव कराए जा सकते हैं। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं, दूसरे चरण में सौ दिनों के भीतर ही स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं। इसके लिए चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के लिए एक वोटर लिस्ट तैयार कर सकता है।
इसके अलावा, विधि आयोग सरकार के सभी तीन स्तरों लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए 2029 से एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता है, वह सदन में अविश्वास प्रस्ताव या अनिश्चितकाल तक बहुमत नहीं होने की स्थिति में एकता सरकार का प्रावधान करने की सिफारिश कर सकता है।
वन नेशन-वन इलेक्शन पर क्या है पार्टियों का रूख-
वन नेशन-वन इलेक्शन में ये पार्टियां- भाजपा और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के अलावा अन्नाद्रमुक, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, अपना दल (सोनेलाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ने वन नेशन-वन इलेक्शन के प्रस्ताव का समर्थन किया।
विरोध में राजनीतिक पार्टियां-कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के अलावा क्षेत्रीय पार्टियों में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), तृणमूल कांग्रेस, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), द्रमुक, नागा पीपुल्स फ्रंट और समाजवादी पार्टी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का विरोध किया। अन्य दलों में भाकपा (माले) लिबरेशन, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने इसका विरोध किया. राष्ट्रीय लोक जनता दल, भारतीय समाज पार्टी, गोरखा नेशनल लिबरल फ्रंट, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) भी विरोध करने वाले राजनीतिक दलों में शामिल हैं।
इन पर्टियों ने नहीं खोले पत्ते- भारत राष्ट्र समिति, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जम्मू- कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, जनता दल (सेक्युलर), झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार), राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, तेलुगु देसम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए चुनौती-वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए तेजी से आगे बढ़ती मोदी सरकार के सामने कई चुनौतियां है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन के सहयोगियों को इसके लिए सहमत करना है। दरअसल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन ने भले ही तीसरी बार सरकार बनाई हो लेकिन यह 2014, 2019 की तुलना में बहुत अलग है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा को सदन में अकेले बल पर भी बहुमत प्राप्त था तो वहीं इस बार भाजपा सदन में अपने बल पर बहुमत के आंकड़े से बहुत दूर है, ऐसे में इस बार उसे गठबंधन के सहयोगियों के भरोसे ही सरकार चलाना है।
गठबंधन सरकार चला रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने पहले 100 दिन में कई बार अपने फैसलों से से पीछे भी हटना पड़ा है। ऐसे में एक राष्ट्र-एक चुनाव के संविधान में संशोधन करना पड़ेगा और इसके बाद इसे राज्य विधानसभाओं से पास कराना होगा, तब क्या मोदी सरकार ऐसे करा पाएगी यह बड़ा सवाल है।
इसके साथ वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए संसाधन भी जुटाना बड़ी चुनौती है। देश में ईवीएम और वीवीपैट से चुनाव होते हैं, जिनकी संख्या सीमित है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होने से इनकी संख्या पूरी पड़ जाती है। एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होंगे तो अधिक मशीनों की जरूरत पड़ेगी। इनको पूरा करना भी चुनौती होगी. फिर एक साथ चुनाव के लिए ज्यादा प्रशासनिक अफसरों और सुरक्षाबलों की जरूरत को पूरा करना भी एक बड़ा सवाल बनकर सामने आएगा।