हिन्दुस्तान में अब हैं बंकरों के शहर और कस्बे भी...

एलओसी के सेक्टरों से। अभी तक हिन्दुस्तान में दरियाओं के शहर, मंदिरों की नगरी आदि के नाम से प्रसिद्ध शहरों तथा कस्बों से जनता परिचित थी, लेकिन अब उन्हें बंकरों के शहर और बंकरों के कस्बों के नाम से भी परिचित होना होगा। यह बंकरों के शहर तथा कस्बे कहीं और नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर में हैं, वे भी उस आग उगलती नियंत्रण रेखा पर जहां पिछले 69 सालों से ‘लघु युद्ध’ ने कभी रूकना गंवारा नहीं समझा।
 
अभी तक ऐसे कस्बों तथा शहरों की संख्या करीब 300 है जहां भूमिगत बंकरों में लोग रहने लगे हैं। उनके लिए यही अब दो मंजिला और उनके शानदार बंगले हैं। इन 300 के करीब कस्बों तथा शहरों में अनुमानतः 10000 बंकर हैं जबकि अगले वर्ष तक इन बंकरों के कस्बों तथा शहरों की संख्या बढ़कर दोगुनी हो जाएगी और बंकर भवनों की संख्या भी दोगुनी हो जाएगी।
 
ये बंकरों के कस्बे और शहर 814 किमी लंबी उस एलओसी पर हैं, जो भारत को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से अलग करती है तथा जो भारत-पाक बंटवारे के उपरांत से ही आग उगले जा रही है अर्थात इस 814 किमी लंबी एलओसी पर कभी पाक सेना ने गोलीबारी रोकी ही नहीं है।
 
नतीजतन अब इस सीमा के साथ सटे कस्बों, गांवों तथा शहरों के लोगों को अपने खूबसूरत घरों को छोड़ जमीन के भीतर बनाए जाने वाले बंकरों में रहना पड़ रहा है। इन कस्बों में चाहे कोई अमीर है या गरीब, चाहे किसी का एक कमरे का मकान है या फिर चार मंजिला इमारत लेकिन अब उन्‍हें सात फुट चौडे़, सात फुट लंबे और 11 फुट ऊंचाई वाले भूमिगत बंकर में ही रहना होगा।
 
करनाह, तंगधार, कुपवाड़ा, उड़ी, केरण आदि ऐसे कई नाम हैं कश्मीर सीमा के गांवों के जहां इन भूमिगत बंकरों का निर्माण किया गया है। कई और कस्बों में ऐसे बंकरों का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। माना कि कश्मीर सीमा पर पाक गोलाबारी में कमी आई है मगर कोई भी किसी प्रकार का खतरा मोल लेने को तैयार नहीं है।
 
असल में एलओसी के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाक गोलाबारी से बचाव का कोई और साधन नहीं है। वैसे भी इन बंकरों की अनुपस्थिति में सैकड़ों लोग मौत का ग्रास बन चुके हैं। इससे अधिक चौंकाने वाली बात क्या हो सकती है कि एक छोटी सी करनाह तहसील में वर्ष 1999 और 2000 में कम से कम तीन सौ जानें जा चुकी हैं। यह आंकड़ें अन्य कस्बों में और भी अधिक हैं।
 
फिलहाल बंकरों के कस्बों, गांवों तथा शहरों की स्थापना तो की गई है बावजूद इसके लोग अपने आपको सुरक्षित नहीं मानते। ऐसा इसलिए है क्योंकि कांक्रीट, लोहा, लकड़ी तथा बुलेट प्रूफ शीटों से बनाए जाने वाले यह बंकर सुरक्षित नहीं माने जा सकते।
 
कारण पूरी तरह से स्पष्ट है कि कम से कम 120 किग्रा के वजन का तोप का गोला अगर उसके ऊपर आकर गिरता है तो वह कम से कम एक मीटर गहरा तथा इससे कई गुणा अधिक चौड़ा खड्डा बनाता है और ऐसे में यह बंकर सिर्फ संतावना देने के लिए तथा गोलों के छर्रों से बचाव के लिए अच्छे माने जा रहे हैं।
 
फिर भी हमें इनसे कुछ आस अवश्य बंधती है, तंगधार का अब्दुल राऊफ का कहना है, लेकिन सेनाधिकारियों के अनुसार, कोई भी बंकर तोप के गोलों के सीधे निशाना बनने की सूरत में किसी का बचाव नहीं कर सकता। उनके अनुसर, सैनिकों को भी यही कठिनाई आ रही है।
 
हालांकि पाक गोलाबारी से बचाव का एक रास्ता संवेदनशील समझे जाने वाले गांवों के स्थानांतरण के रूप में निकाला जा रहा है मगर इसके पूरा होने की उम्मीद क्षीण है क्योंकि इस पर करोड़ों की धनराशि खर्च होगी और यह व्यावहारिक नहीं माना जा रहा।

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